रायपुर ,10अप्रैल 2025 (वेदांत समाचार) :रायपुर में किताबें और बातें कार्यक्रम में लेखक देवदत्त पटनायक ने कहा शास्त्रों में हिन्दुत्व जैसे शब्द नहीं है, ये बाहरी शब्द है। लोग रामराज्य की बात करते हैं, लेकिन बैकुंठ की बात कोई नहीं करता।
पटनायक ने बिजनेस सूत्र पर कहा कि हजारों साल से हम बिजनेस कर रहे हैं। लेकिन वॉर रुम स्ट्रेटजी, मार्केट पेनिट्रेशन, क्रश कम्पीटिशन, डॉमिनेट द मार्केट यह हिंसा की भाषा इस्ट इंडिया कंपनी से आई। पूरी दुनिया में MBA कॉलेज पढ़ाया जा रहा है कि बिजनेस इस वॉर।
यह माना जाता है जैसा विश्वास वैसा व्यवहार वैसा व्यापार अगर आपको लगता है कि जिंदगी रणभूमि है तो आप हमेशा हिंसा करते रहोगे। आज के समय में यही बिजनेस सूत्र है।
अगर आप शार्क टैंक में रह रहे हो तो आप बैकुंठ का निर्माण नहीं कर पाओगे। बैकुंठ में लक्ष्मी विराजमान है। हम बैकुंठ का निर्माण क्यों नहीं कर सकते। हम रामराज्य की बात करते हैं, लेकिन बैकुंठ की बात कोई नहीं करता। क्योंकि आपको रणभूमि पसंद है। अगर आपको रणभूमि पसंद है तो बैकुंठ का निर्माण कभी नहीं कर पाओगे।
इस दौरान दैनिक भास्कर ने राइटर देवदत्त पटनायक से खास बातचीत की, पढ़िए पूरा इंटरव्यू…
सवाल- हिंदुत्व जैसे शब्द पर पॉलिटिकल पार्टियों में आपस में डिबेट रहती है। क्या शास्त्रों में ऐसे कोई शब्द का उल्लेख है?
जवाब- 2 साल पहले तक हिंदुत्व था। अभी सनातन धर्म इस्तेमाल हो रहा है। समय के साथ यह शब्द भी बदलते रहते हैं। हिंदुइज्म हमेशा रहेगा। शास्त्रों में हिंदुत्व जैसे शब्द नहीं है। यह बाहर के शब्द है।
सवाल- हिंदू देवी-देवताओं में ऐसे कौन से देवता है, जिससे लोगों को आपके साथ और सीखना चाहिए?
जवाब- हमें विष्णु जी के बारे में सोचना है। लोग राम राज्य की बात करते हैं, लेकिन बैकुंठ का निर्माण नहीं कर पाते, क्यों नहीं कर पाए, इसके बारे में थोड़ा सोचना चाहिए।
सवाल- इतने सारे देवी-देवता हैं, जिनके बारे में आप किताबें लिखते हैं। फैक्चुअल एविडेंस क्या है? क्या आपने कभी रिसर्च की?
जवाब- जैसे शब्दों के माध्यम से अर्थ जाता है, वैसे ही देवी-देवताओं के माध्यम से हमारे पास ज्ञान आता है। देवी-देवताओं की कथाओं को पंचम वेद कहा गया है। विश्वास की बातों में प्रणाम नहीं ढूंढते हैं। विश्वास का कोई प्रमाण नहीं होता। कोर्ट जो भी बोल दे, लेकिन विश्वास की बात विश्वास होती है। विश्वास की दुनिया कथाओं और माइथोलॉजी की दुनिया है। यहां सच और झूठ की बात नहीं होती।
सवाल-क्या कोई ऐसे देवी- देवता भी है, जिनके बारे में लोग नहीं जानते। आप किताब लिखेंगे या आपको जानकारी हो?
जवाब- हर गांव में अलग-अलग देवी-देवता हैं, जिनके बारे में लोग नहीं जानते। महाराष्ट्र में जो देवी-देवता हैं, उन्हें उत्तर भारतीय नहीं जानते। उत्तर भारत दक्षिण भारत के देवी-देवताओं के बारे में नहीं जानता। वैसे ही पश्चिम भारत के देवी-देवताओं के बारे में उत्तर भारत के लोगों को नहीं पता है। हर कोने में अलग-अलग देवी-देवता है। लेकिन हमें लगता है कि केवल उत्तर भारत में ही देवी-देवता रहते हैं।
सवाल- कहां जाता है कि किसी ग्रंथ को किसी देवता ने लिखा, तो वह फर्स्ट कॉपी कहां है? वह कैसे लोगों के बीच आई?
जवाब- कोई भी कथा, कथाकार के मन से आती है। ब्रह्मा पहले कथाकार थे।
सवाल- क्या देवी देवताओं की मान्यताओं को बिजनेस की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, आपका क्या मानना है?
जवाब- पैसे को भी हम मान्यता देते हैं। एक दिन पैसा आता है और चला जाता है। अगर आप मानेंगे नहीं तो कागज का कोई मूल्य नहीं है। विश्वास करते हैं कि इस पेपर का मूल्य 500 रुपए है। लेकिन एक दिन कोई डिसाइड करता है। उसका मूल्य चला जाता है। वैसे ही समय के साथ देवी-देवताओं का मूल्य आता और जाता रहता है।