Vedant Samachar

RAIPUR: “सायबर कैफ़े”:दुनिया की ख़बरें सुनने या जानने का माध्यम वही फोन और रेडियो हुआ करता

Vedant Samachar
7 Min Read

सायबर कैफ़े। शहर के ब्राह्मण पारा इलाके में सत्तीबाजार चौक के पास एक पुराना सायबर कैफ़े था। वह कैफ़े देखने में कबाड़नुमा था, जैसे किसी पुराने ज़माने की याद दिलाता हो।

रायपुर,24 फ़रवरी 2025 (वेदान्त समाचार)/ सड़कों पर बसंत की हल्की धूप थी, जब 2008 में मैं कुकरी पारा के किराए के मकान में रहा करता था। शहर उस समय तकनीक के लिहाज से बस अपनी जगह बना रहा था। न स्मार्टफ़ोन थे, न ही घर-घर इंटरनेट। मनोरंजन के साधन के नाम पर मेरे पास सिर्फ़ एक नोकिया 1600 कीपैड वाला फोन था, जिसके जरिए समय काटने का उपाय ढूंढता था। तब तक दुनिया की ख़बरें सुनने या जानने का माध्यम वही फोन और रेडियो हुआ करता था। दिन का अधिकांश समय मालवीय रोड स्थित नवभारत चुन्नी सेंटर पर सेल्समैन की नौकरी में गुजरता था, जहाँ सुबह से शाम तक ग्राहकों की आवाजाही में लगे रहते थे तब मैं गर्मी के दिनों में पार्ट टाइम काम कर रहा था।

उस दौर में एक और खास बात थी—सायबर कैफ़े। शहर के ब्राह्मण पारा इलाके में सत्तीबाजार चौक के पास एक पुराना सायबर कैफ़े था। वह कैफ़े देखने में कबाड़नुमा था, जैसे किसी पुराने ज़माने की याद दिलाता हो। उसकी दीवारें कुछ धूसर सी, एक पुरानी खिड़की से लटकती हुई पर्दे, और काउंटर के पीछे बैठे कैफ़े का मालिक। नाम अब याद नहीं आ रहा, लेकिन वह कैफ़े मेरे लिए उस वक्त की टेक्नोलॉजी की खिड़की था। 10 रुपये का शुल्क देकर मैं एक घंटे तक इंटरनेट की दुनिया में उतर जाता था। हालांकि तब मुझे इंटरनेट की बारीक समझ नहीं थी, पर यह एक नई खोज जैसा लगता था।

वहाँ जाकर अक्सर मैं कंप्यूटर पर ‘टाइपिंग मास्टर’ का गेम खेलता, जिससे धीरे-धीरे कंप्यूटर की बेसिक जानकारी हासिल हो सके। कैफ़े में बैठे लोग अलग-अलग मकसद से आते थे। कुछ लोग तो वहाँ सिर्फ़ इंग्लिश फ़िल्में देखने के लिए बैठते, जबकि कुछ सिर्फ़ शांति से अपने काम निपटाने के लिए। इंटरनेट की गति इतनी धीमी होती थी कि एक पेज लोड करने में कुछ मिनट लग जाते, लेकिन उस धीमेपन में भी एक सुकून था। एक समय की सीमा थी—एक घंटे में जितना सीखना था, उतना सीखना होता था।

सायबर कैफ़े की छोटी-सी जगह में अलग-अलग लोग आते-जाते रहते थे। कभी कोई कॉलेज का लड़का अपनी असाइनमेंट के लिए जानकारी जुटा रहा होता, तो कोई ऑफिस का काम निपटा रहा होता। कभी-कभी लोग दोस्ती का हाथ बढ़ाते, किसी से नज़रें मिल जातीं, और फिर एक-दो बातें शुरू हो जातीं। उस समय का वातावरण, वह धीमा इंटरनेट, और लोगों के चेहरे पर एक खोजी भावना, सब कुछ एक साथ मिलकर उस जगह को खास बनाते थे।

लेकिन मुझे वह जगह सिर्फ़ कंप्यूटर सीखने के लिए नहीं, बल्कि खुद को थोड़ा सुलझाने के लिए भी खींचती थी। मुझे मालूम था कि काम के साथ-साथ मेरी अंग्रेज़ी कमजोर है, इसलिए आकांक्षा प्रोफेशनल क्लास में अंग्रेज़ी स्पीकिंग का कोर्स भी कर रहा था। सुबह 8 से 9 बजे तक वहाँ पढ़ाई होती और उसके बाद मैं 9:23 पर नवभारत चुन्नी सेंटर के लिए निकल जाता। पूरा दिन ग्राहकों के बीच बेचने, बतियाने, और दिनचर्या में घुल-मिल जाने का काम होता था, लेकिन सायबर कैफ़े में बिताया वह एक घंटा मेरी ज़िन्दगी का सबसे सुकून भरा समय होता था।

आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो एहसास होता है कि हम कितनी तेजी से बदल गए हैं। 2008 का वह धीमा इंटरनेट अब हमारे हाथों में तेज रफ्तार वाला स्मार्टफ़ोन बन चुका है। अब तो सिर्फ़ कुछ सेकंड्स में हम दुनिया की किसी भी कोने की जानकारी हासिल कर सकते हैं। मगर उस समय की वह खोज, वह कशिश, वह सादगी अब कहीं खो गई है। तकनीक ने हमें बहुत कुछ दिया है, लेकिन एक तरह से हम उससे बंध भी गए हैं। अब न तो वही धैर्य बचा है, न ही सीखने की वह ललक, जो एक घंटा सायबर कैफ़े में बिताने के दौरान महसूस होती थी।

हाल ही में जब बाबा रामदेव और पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने डिजिटल व्रत रखने की बात कही, तो मुझे तुरंत वह पुराने दिन याद आ गए। हममें से कितने लोग आज यह समझते हैं कि कभी-कभी तकनीक से दूर रहना कितना ज़रूरी है? उस वक़्त जब इंटरनेट की गति धीमी थी, तो हमारा जीवन उतना ही सजीव था। अब जब हर चीज़ हमारी मुट्ठी में है, तो हम उस आनंद से कहीं दूर होते जा रहे हैं।

सायबर कैफ़े में बिताए वह पल, वह धुंधला-सा कमरा, वह कंप्यूटर की पुरानी स्क्रीन—सब कुछ अब एक याद बनकर रह गए हैं। उस वक़्त रायपुर की गलियों में घूमा करता था, और अब 2025 में वही गलियाँ अपने ही अंदाज़ में बदल गई हैं। तब हम साइबर कैफ़े में जाते थे, अब इंटरनेट हर किसी के हाथ में है। शायद इसी बदलाव का नाम ही जीवन है।

वह पुराना सायबर कैफ़े अब नहीं है, लेकिन वह जगह और भवन अब भी वहाँ पर वैसी ही मौजूद है जो मेरे लिए वह जगह, वह दौर, हमेशा ज़िंदा रहेगा।

लेखक परिचय
एम बी बलवंत सिंह खन्ना
जन्म 18 जुलाई 1989
जन्म स्थान- ग्राम हिर्री पोस्ट ससहा थाना पामगढ़ जिला जांजगीर चाँपा छत्तीसगढ़।
वर्तमान निवास- गोल्फ ग्रीन कॉलोनी पुरानी धमतरी रोड रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा- बी ए (गुरु घासीदास एवं बिलासपुर विश्वविद्यालय बिलासपुर) , एम एस डब्ल्यू(कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय काठडीह रायपुर)
वर्तमान कार्य क्षेत्र- संचालक आखर पी आर कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड रायपुर छत्तीसगढ़।

Share This Article