भविष्य की दुनिया में गतिशीलता का मतलब ही इलेक्ट्रिक मोबिलिटी होगा? इंडोनेशिया से इंडिया तक की ये है कहानी

नई दिल्ली ,29 मार्च 2025: इलेक्ट्रिक व्हीकल… जी हां, भविष्य की दुनिया में गतिशीलता का मतलब ही इलेक्ट्रिक मोबिलिटी होगा. एक समय में इलेक्ट्रिक ट्रेन ही ऐसा यातायात साधन था जो बिजली से चलता था और बड़ी आबादी के काम आता था. लेकिन अब कहानी इससे आगे जा चुकी है. सड़कों पर इलेक्ट्रिक स्कूटर और कार से लेकर थ्री-व्हीलर्स, लोडिंग गाड़ी, बस और ट्रक तक बिजली और बैटरी से चल रहे हैं. इसे लेकर सबसे बड़ा तर्क ये है कि ये पर्यावरण की रक्षा और प्रदूषण को कम करने में काम आते हैं. लेकिन क्या ये सच में ऐसा करते हैं?

सद्गुरु ने कही थी ये बड़ी बात
कुछ वक्त पहले आध्यात्मिक लीडर सद्गुरु ने कहा था कि इलेक्ट्रिक व्हीकल से सिर्फ शहरों और कस्बों में गाड़ियों से निकलने वाले धुंए में कमी आएगी. ये शहरी प्रदूषण को कम कर सकता है. इससे शहरों और कस्बों में हवा की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है, लेकिन जब इसकी बड़ी तस्वीर को देखते हैं, तब पता चलता है कि अगर हम पूरी तरह से इलेक्ट्रिक व्हीकल पर शिफ्ट हो जाते हैं, तो भी भारत जैसे देश के लिए ये इको-फ्रेंडली नहीं बन सकेगा. ये लंबी अवधि में पर्यावरण की कोई मदद नहीं करेगा.

सद्गुरू की बात को ही आगे बढ़ाने का काम इंडस्ट्री एक्सपर्ट और सोकुडो इलेक्ट्रिक के चेयरमैन प्रशांत वशिष्ठ करते हैं. उनका कहना है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल के लिए सबसे जरूरी बैटरियों का निर्माण है. दुनिया में अभी जो ईवी बैटरी इस्तेमाल हो रही हैं उनके निर्माण में लीथियम, कोबाल्ट और निकिल जैसे दुर्लभ खनिजों का इस्तेमाल हो रहा है. इन्होंने पर्यावरण से जुड़ी कई चिंताओं को पैदा किया है.

इंडोनेशिया और निकिल की कहानी
ईवी और पर्यावरण पर उसके असर को देखना है तो इंडोनेशिया की कहानी देखने लायक है. ईवी बैटरी के लिए जिस निकिल का इस्तेमाल होता है, इंडोनेशिया दुनिया में इसके सबसे बड़े रिजर्व एरिया में से एक है.निकिल इलेक्ट्रिक व्हीकल की रेंज बढ़ाने में काम आने वाली धातु है. ईवी की डिमांड बढ़ने से इंडोनेशिया में निकिल का खनन तेजी से बढ़ा है जिससे अब पर्यावरण संबंधी चिंताएं पैदा होने लगी हैं.

डीडब्ल्यू की एक खबर के मुताबिक निकिल उत्पादन के चलते इंडोनेशिया में 75,000 हेक्टेयर के जंगल साफ हो चुके हैं. 10 साल पहले जो निकिल प्लांट सिर्फ 2 थे अब उनकी संख्या 27 हो चुकी है. इस तरह निकिल की वजह से यहां सिर्फ पर्यावरण की ही नहीं जल प्रदूषण, वनों की कटाई, मानवाधिकार और सामाजिक तनाव की समस्याएं भी देखने को मिल रही हैं.

इंडिया और कोयले से बनती बिजली
भारत ने 2030 तक ई-मोबिलिटी का लक्ष्य तय किया है. यहां तेजी से इलेक्ट्रिक व्हीकल का कारोबार बढ़ भी रहा है. ऐसे में इसके लिए इलेक्ट्रिसिटी की डिमांड भी बढ़ रही है. ये भारत के लिए चिंता की बात है क्योंकि यहां 70 से 75 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले यानी जीवाश्म ईंधन से होता है.

देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी भले अपनी नई इलेक्ट्रिक कार Maruti Suzuki eVitara को लॉन्च करने जा रही हो, लेकिन कंपनी के चेयरमैन आर. सी. भार्गव कई मौकों पर भारत में इलेक्ट्रिसिटी के कोयले से उत्पादन को लेकर चिंता व्यक्त कर चुके हैं. उनका कहना है कि ईवी से जो पॉल्युशन कम होता है और पर्यावरण की जो रक्षा होती वह कोयला बिजली उत्पादन की वजह स ना के बराबर हो जाती है.

हालांकि भारत ने सोलर और रिन्यूएबल एनर्जी पर फोकस करना शुरू किया है. फिर भी इसका कंट्रीब्यूशन देश के टोटल एनर्जी कंज्पशन में काफी कम है. ऐसे में प्रशांत वशिष्ठ का कहना है कि अगर बैटरी बनाने और बिजली पैदा करने में पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने पर काम किया जाए, तब संभव ईवी पारंपरिक पेट्रोल-डीजल वाहनों की तुलना में अधिक पर्यावरण-अनुकूल ऑप्शन साबित होंगे.