Vedant Samachar

Kesari Veer Review: कहानी जानदार, पर खराब निर्देशन और लीड की बुरी एक्टिंग ने घोंट दिया दम

Vedant samachar
7 Min Read

मुंबई : बड़े पर्दे पर इतिहास को जीवंत करना बिलकुल भी आसान काम नहीं है. ‘छावा’ की सफलता के बाद अब हमीरजी गोहिल के जीवन पर बनी ‘केसरी वीर’ थिएटर में रिलीज हो चुकी है. हमीरजी गोहिल को गुजरात में एक जननायक के तौर पर पूजा जाता है, लेकिन देश के बाकी हिस्सों के लिए वो एक ‘अनसुने हीरो’ ही रहे हैं. उन्होंने महज 16 साल की उम्र में ही मातृभूमि और धर्म की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया था. इस प्रेरणादायक कहानी पर बनी इस फिल्म से बहुत कुछ सीखने और देखने की उम्मीद थी, लेकिन अफसोस, निर्देशक प्रिंस धीमान और लीड एक्टर्स सूरज पंचोली तथा आकांक्षा शर्मा ने मिलकर इन उम्मीदों पर पूरी तरह पानी फेर दिया.

कहानी
कहानी उस दौर की है जब तुगलक साम्राज्य का सूबेदार जफर खान गुजरात में मंदिरों को ध्वस्त कर रहा था और लोगों पर धर्म बदलने का दबाव बना रहा था. हमीरजी गोहिल (सूरज पंचोली), जो अर्थिला गांव के एक युवा राजा हैं, इन अत्याचारों के खिलाफ खड़े होते हैं. हमीरजी गोहिल, गुजरात के राजाओं को एकजुट करके जफर खान के खिलाफ लड़ने की पुरी कोशिश करते हैं. अपने 200 सैनिकों के साथ वो विशाल तुगलक सेना का सामना करते हैं, जिसमें वेगड़ा भिल (सुनील शेट्टी) उनका साथ देते हैं. किस तरह से अपनी वीरता और रणनीति से हमीरजी सोमनाथ मंदिर और हिंदू आस्था की रक्षा के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ते हैं, ये जानना हो तो आप थिएटर में जाकर ‘केसरी वीर’ देख सकते हैं.

जानें कैसी है फिल्म
हमीरजी गोहिल की बहादुरी और बलिदान की कहानी निःसंदेह प्रेरणा से भरी है, इसमें कोई दो राय नहीं. लेकिन अफसोस, ‘केसरी वीर’ देखते हुए हम इस महान गाथा से जुड़ ही नहीं पाते हैं. फिल्म में ऐसे कई सीन हैं, जिन्हें देखकर बार-बार ‘बाहुबली’, ‘पद्मावत’ की याद आती है. ऐसे लगता है जैसे निर्देशक ने बस इन बड़ी फिल्मों से प्रेरणा नहीं ली, बल्कि कुछ सीन्स को सीधा ‘कॉपी-पेस्ट’ कर दिया है. और तो और, कहानी के बीच में बिना किसी जरूरत के अचानक बजने वाले गाने, फिल्म के मूड को पूरी तरह खराब कर देते हैं.

सीरियल जैसा निर्देशन
फिल्म ‘केसरी वीर’ के निर्देशन की कमान प्रिंस धीमान ने संभाली है और कनुभाई चौहान और क्षितिज श्रीवास्तव के साथ मिलकर स्क्रिप्ट भी लिखी है. प्रिंस धीमान का अनुभव मुख्य रूप से टीवी सीरियलों में रहा है, और यही बात इस फिल्म में बुरी तरह खली. ऐसा लगता है मानो उन्होंने एक बड़ी फिल्म को भी टीवी सीरियल की तरह ही ट्रीट कर दिया हो. एक निर्देशक की जिम्मेदारी होती है कि वो अपने एक्टर्स से बेहतरीन काम निकलवाए और दर्शकों को फिल्म के आखिरी पल तक बांधे रखे. अफसोस, प्रिंस इन दोनों ही कसौटियों पर बुरी तरह फेल हुए.

फिल्म देखते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे निर्देशक ने ‘बाहुबली’ और ‘पद्मावत’ जैसी सफल फिल्मों से ‘सीधे कॉपी’ किया है. ‘बाहुबली’ में प्रभास के पहाड़ों से कूदने वाले शॉट्स की सीधी नकल सूरज पंचोली करते हैं. वहीं, ‘पद्मावत’ में दीपिका पादुकोण द्वारा शहीद कपूर की पगड़ी बांधने वाले दृश्य की हूबहू नकल इस फिल्म में आकांक्षा शर्मा द्वारा सूरज पंचोली की पगड़ी बांधने वाले सीन में की गई है.

सबसे बड़ी बात, हमीरजी गोहिल और उनकी सेना की अपनी एक अनूठी युद्ध शैली थी, लेकिन ऐसे लग रहा है कि फिल्म में इसे दिखाने के बजाय सीधे मराठाओं की गोरिल्ला तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. यही वजह है कि फिल्म में कोई नयापन नजर नहीं आता, ओरिजिनालिटी पूरी तरह गायब है. ये ‘कॉपी-पेस्ट’ वाला निर्देशन ही फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी बनकर उभरा, जिसने एक जानदार कहानी को पूरी तरह फीका और बोरिंग कर दिया है.

कमजोर एक्टिंग
प्रिंस धीमान के कमजोर निर्देशन को मुख्य कलाकारों की खराब एक्टिंग का पूरा साथ मिला है. सूरज पंचोली और आकांक्षा शर्मा के चेहरों पर तो जैसे कोई एक्सप्रेशन ही नहीं आता. खुशी, दुख, गुस्सा, दर्द… हर फीलिंग को वो एक ही बेजान अंदाज में दिखाते हैं. साफ दिखता है कि उन्हें अपने किरदारों को गहराई से समझने या उन्हें पर्दे पर सही से दिखाने का मौका नहीं मिला, या शायद उनमें वो दम ही नहीं था. हालांकि, विवेक ओबेरॉय और सुनील शेट्टी जैसे अच्छे एक्टर अपनी भूमिकाओं में अच्छे लगे हैं. उन्होंने अपना काम ईमानदारी से किया है, लेकिन अफसोस, वो भी इस फिल्म को नहीं संभाल पाए.

देखें या न देखे
आज से 13 साल पहले, हमीरजी गोहिल पर एक गुजराती फिल्म बनी थी. उस फिल्म में न तो महंगे स्पेशल इफेक्ट्स थे, न ही कान को परेशान कर देने वाला शोर-शराबा, और न ही कोई भव्य संगीत. लेकिन उस फिल्म में सच्चाई थी, उस फिल्म में निर्देशक की अथक मेहनत थी और कलाकारों का दमदार अभिनय था. जहां ‘केसरी वीर’ में हमीरजी की आखिरी लड़ाई को जंगल में बेतुके तरीके से दिखाया गया, वहीं पुरानी गुजराती फिल्म ने सोमनाथ मंदिर के समुद्री तट के पास हुई असल लड़ाई को बखूबी पेश किया था. जाहिर है, समंदर किनारे घना जंगल होना तर्क से परे है, और यह छोटी सी चूक ही बता देती है कि नए मेकर्स ने इतिहास से कितनी बड़ी छेड़छाड़ की है. क्लाइमेक्स सीन में मंदिर का सिर्फ एक झलक मिलना भी निराशाजनक है, जबकि पूरी लड़ाई उसी के इर्द-गिर्द घूमती थी.

‘केसरी वीर’ जैसा ऐतिहासिक विषय, एक महान योद्धा की कहानी को बड़े पर्दे पर लाने का एक सुनहरा मौका था. लेकिन अफसोस, ये अवसर खराब निर्देशन, कमजोर अभिनय और तथ्यों से बेपरवाह छेड़छाड़ की भेंट चढ़ गया. किसी भी ऐतिहासिक फिल्म को बिना किसी लाग-लपेट के, तथ्यों के साथ पूरी ईमानदारी से बनाना चाहिए. उसे धर्म के नाम पर विद्वेष फैलाने के बजाय, हमारे गौरवशाली इतिहास और उसके नायकों के बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए. उम्मीद है कि भविष्य में फिल्म निर्माता ऐसी गलतियों से बचेंगे और इतिहास को उसकी असलियत, उसकी गरिमा के साथ पर्दे पर दिखाएंगे, न कि सिर्फ दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए भावनाओं से खेलेंगे.

Share This Article