Vedant Samachar

करीब 2 करोड़ रुपये की लागत से 8 किलोमीटर लंबी नहर लाइनिंग के निर्माण कार्य में ठेकेदार ने वन विभाग की अनुमति के बिना दर्जनों बेशकीमती सागौन के पेड़ गिरा दिए

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बीजापुर,27मई 2025 (वेदांत समाचार)। जिले के मद्देड तालाब से किसानों तक पानी पहुंचाने के लिए बनाए जा रहे नहर लाइनिंग प्रोजेक्ट में बड़ा पर्यावरणीय उल्लंघन सामने आया है। करीब 2 करोड़ रुपये की लागत से 8 किलोमीटर लंबी नहर लाइनिंग के निर्माण कार्य में ठेकेदार ने वन विभाग की अनुमति के बिना दर्जनों बेशकीमती सागौन के पेड़ गिरा दिए।

मशीन से काटे गए विशालकाय पेड़
स्थानीय लोगों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, ठेकेदार ने चैन माउंटिंग मशीन से हरे-भरे सागौन और अन्य फलदार पेड़ों को निर्ममता से काट डाला। पूछताछ में सुपरवाइजर कैलाश ठाकुर ने पहले पेड़ों के खुद गिरने की बात कही, लेकिन बाद में स्वीकार किया कि यह काम जल संसाधन विभाग के उप अभियंता गुलाम दस्तागिर के निर्देश पर किया गया।

उप अभियंता का चौंकाने वाला बयान
जब उप अभियंता दस्तागिर से इस पर सवाल किया गया तो उन्होंने साफ कहा “नहर के बीच में जो भी पेड़ आएंगे, उन्हें गिरा दिया जाएगा। मुझे इसके लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं।”

उनका यह बयान न केवल भारतीय वन अधिनियम, 1927 के खिलाफ है, बल्कि पर्यावरणीय संवेदनशीलता की भी अनदेखी करता है।

वन विभाग ने बताया गंभीर मामला
इस संबंध में वन मंडलाधिकारी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बिना अनुमति पेड़ काटना कानूनन अपराध है। उन्होंने कहा: “यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि कानून का उल्लंघन भी है। पेड़ों को बिना अनुमति काटा जाना गंभीर मुद्दा है और इसके लिए संबंधित ठेकेदार और विभाग पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।”

उन्होंने यह भी कहा कि निर्माण कार्य के दौरान पेड़ों को बचाने के लिए स्थानांतरण या वैकल्पिक मार्ग अपनाना चाहिए था।

क्या कहता है कानून?
भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत बिना अनुमति पेड़ काटना अपराध है। दोषियों के खिलाफ पर्यावरण कोर्ट में मामला दर्ज किया जा सकता है। ठेकेदार और संबंधित अधिकारी दोनों जिम्मेदार माने जा सकते हैं।

ठेकेदार की जिम्मेदारी क्या है?
किसी भी निर्माण कार्य से पहले यदि पेड़ हटाने की आवश्यकता हो, तो इसके लिए सरकारी अनुमति लेना अनिवार्य है। वन विभाग की स्वीकृति के बिना पेड़ काटने पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं हो सकता। बेशकीमती सागौन जैसे वृक्षों को बिना अनुमति काटना न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की लूट है, बल्कि कानून और जिम्मेदारी की खुली अनदेखी भी है। इस प्रकरण की स्वतंत्र जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई ज़रूरी है, ताकि आने वाले समय में विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहे।

अब यह देखना है कि पेड़ गिराने वालों को कानून कब गिराएगा?

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