पुराना टेंडर रद्द, सीजीएमएससी की एमडी ने नए के लिए मांगी अनुमति
रायपुर,09 मार्च 2025 (वेदांत समाचार) । लंबे समय तक विवादों में रहने के बाद छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन (सीजीएमएससी) ने मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए जारी पुराना टेंडर निरस्त कर दिया है। सीजीएमएससी की एमडी पदमिनी भोई ने स्वास्थ्य सचिव अमित कटारिया को लिखित रूप से सूचित करते हुए चारों मेडिकल कॉलेजों के लिए अलग-अलग टेंडर की अनुमति मांगी है।
एमडी ने स्वास्थ्य सचिव को भेजे पत्र में स्पष्ट किया कि निर्धारित दर से 544 करोड़ रुपये अधिक होने के कारण यह टेंडर निरस्त किया जा रहा है। इसके बाद, मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर से सलाह मांगी गई है कि चारों मेडिकल कॉलेजों के टेंडर को किस रूप में आगे बढ़ाया जाए।
500 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाले का आरोप
छत्तीसगढ़ में बन रहे चार मेडिकल कॉलेजों की इमारतों के निर्माण में 500 करोड़ रुपये से अधिक के भ्रष्टाचार की योजना बनाई जा रही थी। सीजीएमएससी ने जानबूझकर चारों मेडिकल कॉलेजों के टेंडर को क्लब कर 1020 करोड़ रुपये का टेंडर जारी किया, जिससे केवल दो कंपनियां ही क्वालिफाई कर पाईं। इन कंपनियों ने वास्तविक दर से 53% और 58% अधिक रेट कोट किया।
जानकारों के अनुसार, यह एक सुनियोजित साजिश थी ताकि प्रतिस्पर्धा कम हो और मनपसंद कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा सके। यह वही तरीका है, जो नया रायपुर में मुख्यमंत्री, मंत्रियों के आवास और विधानसभा भवन के निर्माण में अपनाया गया था।
वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा
58% अधिक रेट: चारों मेडिकल कॉलेजों के टेंडर क्लब करने के कारण केवल दो कंपनियां टेक्निकल बिड में सफल रहीं। इन कंपनियों ने सीजीएमएससी के अनुमानित रेट से 53% और 58% अधिक दर पर टेंडर भरा।
1500 करोड़ का टेंडर: यदि इनमें से किसी एक कंपनी को ठेका मिल जाता, तो सरकारी खजाने को 500 करोड़ रुपये का नुकसान होता, क्योंकि 1020 करोड़ के बजाय 1500 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करना पड़ता।
आरबीआई का 28% बिलो रेट: नया रायपुर में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की बिल्डिंग 28% बिलो रेट में बनी, जबकि राज्य में मेडिकल कॉलेजों के टेंडर 53% अधिक दर पर दिए जा रहे थे।
सीजीएमएससी पर उठ रहे सवाल
सीजीएमएससी को स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण का अनुभव नहीं है। हाल ही में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण की गुणवत्ता इतनी खराब रही कि दो साल में ही दीवारों का प्लास्टर टूटने लगा और बिजली व जल आपूर्ति ठप हो गई। सीएमओ को दबाव डालकर इन केंद्रों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया था।
चारों मेडिकल कॉलेजों की फाइनेंशियल बिड खोलने के लिए 6 जनवरी से अब तक पांच बैठकें बुलाई जा चुकी हैं, लेकिन विवादों के चलते कई सदस्य उपस्थित नहीं हुए, जिससे बैठकें स्थगित करनी पड़ीं।
अलग-अलग टेंडर क्यों जरूरी?
विशेषज्ञों का मानना है कि चारों मेडिकल कॉलेजों के लिए अलग-अलग टेंडर किए जाने चाहिए, क्योंकि:
स्थान की भौगोलिक भिन्नता: मनेंद्रगढ़ पहाड़ी क्षेत्र है, जबकि जांजगीर और कवर्धा समतल क्षेत्र हैं। अतः इन स्थानों के लिए लागत अलग-अलग होनी चाहिए।
क्वालिटी मॉनिटरिंग: अलग-अलग टेंडर होने से निर्माण कार्य की गुणवत्ता की निगरानी बेहतर तरीके से की जा सकती है।
कंपिटिशन बढ़ेगा: एक ही टेंडर होने से प्रतिस्पर्धा कम होती है, जिससे टेंडर की लागत बढ़ जाती है।
भविष्य की रणनीति
अब स्वास्थ्य विभाग और मेडिकल एजुकेशन कमिश्नर की राय के बाद तय होगा कि नए टेंडर कैसे जारी किए जाएंगे। सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह पारदर्शी प्रक्रिया अपनाए और भ्रष्टाचार से बचते हुए मेडिकल कॉलेजों के निर्माण कार्य को सुचारू रूप से पूरा करे।