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कोयला जलाकर 95 हजार टन ‘लेड’ वायुमंडल में घोल रहे चीन-भारत, ये कितना खतरनाक? रिसर्च में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

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वाराणसी,16 अप्रैल 2025। दो दशक पहले विश्व ने पेट्रोल व डीजल में जहरीला भारी तत्व लेड (घुलित सीसा) का इस्तेमाल प्रतिबंधित किया था। निश्चित रूप से यह ऐतिहासिक निर्णय इंसानी खतरे को टाल गया, लेकिन एक बार फिर यह संकट अलग रूप में दुनिया के सामने है।

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने अटलांटिक महासागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में लेड की मात्रा आठ गुना बढ़ने की पुष्टि की है। यह लेड वायुमंडल व नदियों के माध्यम से समुद्र में पहुंच रहा है। इस हैवी मेटल की मौजूदगी मछलियों के मस्तिष्क, प्रजनन और वृद्धि को खत्म कर रही हैं।

इंसानों में न्यूरो और किडनी की समस्याएं बढ़ रहीं

मछलियों के सेवन से इंसानों में न्यूरो और किडनी की समस्याएं हो रही हैं। बच्चों में विकास संबंधित समस्याएं चिकित्सा विज्ञान की चिंता बढ़ा रही है। बीएचयू (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) में पिछले दिनों आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में पुरा छात्र और राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. सुनील कुमार सिंह ने बताया कि लेड कई माध्यमों से समुद्र में पहुंच रहा है। इसमें थर्मल पावर प्लांटों में बेहिसाब कोयला जलाना प्रमुख है। वर्ष 2023-24 में भारत ने कोयला जलाकर 12 हजार टन लेड वायुमंडल में भेजा, जबकि चीन ने 83 हजार टन लेड का उत्सर्जन किया। हालांकि, दोनों देश तीन दशक पहले कोयला से लेड का उत्सर्जन चार गुना कम कर रहे थे।हवा के जरिए लेड गंगा और दूसरी नदियों से होते हुए बंगाल की खाड़ी में पहुंच रहा है। शाेध के दौरान हुगली नदी से मॉरीशस तक समुद्र में सतह से पांच किलोमीटर गहराई से कुल 510 नमूने लिए गए थे। इनमें लेड की मात्रा करीब 114 पिको मोलर यानी एक लीटर में 24 नैनो ग्राम मिली है, जो एकदम नहीं होनी चाहिए।डॉ. सुनील कहते हैं कि थर्मल पावर प्लांट, सीमेंट उद्योग, स्टील उद्योग और कोयला जलाने वाले स्थानों से लेड वायुमंडल में जा रहा है, जो हवा से कहीं भी पहुंच रहा है। कार की बैट्री में भी लेड का प्रयोग बढ़ा है। हल्दी और मिर्च में भी लेड क्रोमेट (पीला रासायनिक यौगिक) मिला रहे हैं। इस शोध को इंग्लैंड के जर्नल एल्सेवियर मरीन पोल्युशन बुलेटिन ने मार्च 2025 में प्रकाशित किया है।

वाहनों का धुआं भी वायुमंडल में लेड वृद्धि का कारण

डॉ. सुनील कहते हैं कि बंगाल की खाड़ी में लेड बढ़ने का कारण गंगा व ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली काे माना जा सकता है। फैक्ट्रियों के अपशिष्ट, जिनमें बैट्री, पेंट और अन्य लेड युक्त उत्पादों के कचरे होते हैं जो नदी-नालों से समुद्र में पहुंच रहे हैं। वाहनों का धुआं (खासकर पुराने इंजन) के जरिए वायुमंडल में गया लेड हवा से समुद्र में पहुंच रहा है और बारिश के साथ नीचे गिरता है।समुद्र में खनिजों की खोदाई और तेल रिसाव के दौरान लेड जैसे धातु समुद्र में मिल जाते हैं। बता दें कि 1930 में लेड का इस्तेमाल पेट्रोल-डीजल में काफी बढ़ गया था। इंसानों में गंभीर बीमारियां होने लगीं तो इस्तेमाल पर राेक लगी। वर्ष 2006 तक पूरे विश्व में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया।

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