कोरबा,12 मार्च 2025। नगर निगम के सभापति चुनाव ने बीजेपी के भीतर की खींचतान को खुलकर उजागर कर दिया है। पार्टी द्वारा तय किए गए प्रत्याशी हितानंद अग्रवाल की हार और नूतन सिंह की अप्रत्याशित जीत ने यह साबित कर दिया कि संगठन के भीतर ही नेतृत्व को लेकर गहरी दरारें मौजूद हैं। इस घटनाक्रम से जहां कांग्रेस को अप्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना बढ़ गई है, वहीं बीजेपी के आंतरिक संघर्ष ने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच असमंजस पैदा कर दिया है।
कैसे फूटा असंतोष का ज्वालामुखी?
- पर्यवेक्षक का मनमाना रवैया: चुनावी पर्यवेक्षक रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा ने स्थानीय पार्षदों की राय लिए बिना ही हितानंद अग्रवाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया, जिससे असंतोष भड़क गया।
- हितानंद अग्रवाल पर संदेह: पार्टी के कई पार्षदों ने उन पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयसिंह अग्रवाल के करीबी होने और भीतरघात के आरोप लगाए।
- स्थानीय बनाम बाहरी नेतृत्व का टकराव: बीजेपी के एक धड़े को कोरबा में बढ़ते छत्तीसगढ़िया नेतृत्व से समस्या है, जिसके चलते स्थानीय नेतृत्व को कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं।
- मंत्री लखनलाल देवांगन पर निशाना: यह पूरा घटनाक्रम उनके प्रभाव को कम करने की साजिश के रूप में भी देखा जा रहा है।
क्या है असली खेल?
बीजेपी के भीतर सत्ता का संघर्ष अब खुलकर सामने आ चुका है। पार्टी के फैसले के खिलाफ पार्षदों की बगावत यह दर्शाती है कि संगठन की पकड़ ढीली हो रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस इस स्थिति का पूरा फायदा उठाने के लिए तैयार बैठी है।
अब पार्टी ने पूरे मामले की जांच की जिम्मेदारी गौरीशंकर अग्रवाल को दी है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या बीजेपी अपनी अंदरूनी कलह को सुलझा पाएगी या फिर यह विवाद पार्टी की जड़ों को कमजोर कर देगा? आने वाले दिनों में कोरबा की राजनीति में बड़े उलटफेर देखने को मिल सकते हैं।