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सोने से कम नहीं है ये चीज, अनिल अग्रवाल ने कहा सबका भला कर देगा!

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मुंबई,18 अप्रैल 2025 : अगर आप भी सोने की बढ़ती कीमतों से खरीदने में हिचकिचा रहे हैं तो ये खबर आपके काम की साबित हो सकती है. ज्यादार लोग इन दिनों में सोने का विकल्प तलाशने में लगे हैं जो उन्हें आने वाले समय में सोने जैसा तगड़ा रिटर्न दे सके. ऐसे में वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने सोने का विकल्प बताया है. उन्होंने बताया है कि अगर अभी ये मेटल कोई खरीद ले तो उसे आगे जाकर तगड़ा रिटर्न मिल सकता है. अनिल अग्रवाल को इस मेटल में सोने जैसे तेजी देखने को मिल रही है तभी वो इसकी तुलना सोने से कर रहे हैं. आइए जानते हैं आखिर क्या है न्यू एज सोना?

क्या है अगला सोना?
तांबे की कीमतों में हाल के दिनों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है और यह 10,000 डॉलर प्रति टन के पार पहुंच गई है. इसकी वजह है इसकी बढ़ती उपयोगिता—चाहे वो इलेक्ट्रिक वाहन हों, रिन्यूएबल एनर्जी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या रक्षा क्षेत्र, हर जगह कॉपर की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसी को देखते हुए अडानी और जेएसडब्ल्यू जैसे बड़े समूह भी इस क्षेत्र में कदम रख चुके हैं. हिंडाल्को और हिंदुस्तान कॉपर भारत की प्रमुख निर्माता कंपनियां हैं. अनिल अग्रवाल ने इसे “अगला सोना” बताया है.

कॉपर इस नेक्स्ट गोल्ड
अग्रवाल ने X पर एक फोटो शेयर करते हुए लिखा है कॉपर अगला सोना है. आगे उन्होंने लिखा है कि बैरिक गोल्ड, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सोना उत्पादक कंपनी है, अब अपना फोकस बदल रही है. कंपनी अब सिर्फ “बैरिक” के नाम से जानी जाएगी, क्योंकि उसका मुख्य ध्यान अब तांबे की खनन पर है. तांबा आज की आधुनिक तकनीक में बेहद अहम बन गया है—चाहे वो इलेक्ट्रिक वाहन हों, रिन्यूएबल एनर्जी की संरचना, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या रक्षा उपकरण—हर क्षेत्र में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है. इसी वजह से तांबे को अब “सुपर मेटल” कहा जाने लगा है.

क्यों बढ़ रही है डिमांड
अनिल अग्रवाल के मुताबिक, तांबे की खदानों को फिर से शुरू किया जा रहा है. इनको गलाने के लिए नई भट्टियां भी तैयार की जा रही हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि तांबे की डिमांड काफी तेजी से बढ़ रही है. भारत में भी क्रिटिकल और ट्रांजिशन मेटल्स के क्षेत्र में बहुत संभावनाएं हैं. ऐसे में ये निवेशकों के लिए अच्छा समय है क्योंकि डिमांड बढ़ने से तांबे की कीमतें आने वाले समय में और भी बढ़ सकती हैं. इसलिए तांबे में निवेश करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है और इसे सोने के तुलना की जा रही है.

क्यों जरुरी है कॉपर
तांबा उतना ही जरूरी है जितना की लिथियम और कोबाल्ट, इनका इस्तेमाल रिचार्जेबल बैटरी, सेलफोन, एलईडी लाइट और फ्लैट-स्क्रीन टीवी में होता है. भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर तांबा आयात करता है. आने वाले समय में इसमें डिमाडं बढ़ने से आयत भी बढ़ सकता है.

कितना होता है उत्पादन
भारत में रिफाइंड तांबे का वार्षिक उत्पादन करीब 5.55 लाख टन है, जबकि घरेलू मांग 7.5 लाख टन से ज्यादा है. इस अंतर को भरने के लिए भारत सालाना लगभग 5 लाख टन तांबा आयात करता है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2030 तक तांबे की मांग दोगुनी हो सकती है. फिलहाल, भारत में प्रति व्यक्ति खपत 0.6 किलोग्राम है, जो वैश्विक औसत 3.2 किलोग्राम से काफी कम है. चिली, पेरू, चीन और कांगो तांबे के प्रमुख उत्पादक देश हैं.

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