06 दिसम्बर(वेदांत समाचार)। शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी (Wasim Rizvi) ने इस्लाम धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपना लिया है. आज सुबह उन्होंने गाजियाबाद के डासना मंदिर में सनातन धर्म में शामिल कराया गया. अब वसीम रिजवी का नया नाम जितेंद्र नारायण त्यागी हो गया है. हिंदू धर्म में शामिल होने से पहले उन्होंने सनातन धर्म की अच्छाइयां गिनवाते हुए इसे दुनिया का सबासे बड़ा धर्म बताया. यूपी में जब से योगी सरकार (Yogi Government)सत्ता में आई है तब से वसीम रिजवी लगातार चर्चा में बने हुए हैं. कुरान की 26 आयतों को हटवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में का रुख करने के बाद वह लगातार चर्चा का केंद्र बने रहे. इस घटना के बाद शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमाओं ने फतवा जारी कर उन्हें इस्लाम से बाहर निकाल दिया.
मुस्लिम समुदाय के साथ ही वसीम रिजवी (Waseem Rizvi) का परिवार भी उनके खिलाफ हो गया था. उनकी मां और बहन ने उनसे रिश्ता तक तोड़ दिया. आज उन्होंने हिंदू धर्म को स्वीकार कर लिया है. वसीम रिजवी ने कहा था कि जब उन्हें इस्लाम से निकाल दिया गया है तो वह कौन सा धर्म स्वीकार करते हैं ये उनकी मर्जी है. सनातन धर्म (Santan Dharm) अपनाने के बाद वसीम रिजवी को जितेंद्र नारायण त्यागी नाम दिया गया है. वह माथे पर तिलक लगाए, गले में भगवा माला पहने और हाथ जोड़कर भगवान की पूजा करते नजर आए.
12वीं के बाद सऊदी अरब में की नौकरी
वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नायारण का जन्म शिया मुस्लिम परिवार में हुआ था. वसीम जब छठवीं कक्षा में थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था. रिजवी अपने भाई बहनों में सबसे बड़े थे. सभी की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई थी. मां की जिम्मेदारियों को कम करने के लिए वह 12वीं की पढ़ाई के बाद सऊदी अरब में एक होटल में काम करने लगे. इसके बाद उन्होंने जापान और अमेरिका में भी काम किया. घर के हालात को देखते हुए वसीम रिजवी ने लखनऊ वापस लौटकर अपना बिजनेस शुरू कर दिया. व्यापार के दौरान वह कई बड़े लोगों के संपर्क में आए. जिसके बाद उन्होंने नगर निगम चुनाव लड़ा. यही से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हो गई.
वसीम रिजवी मौलाना कल्बे जव्वाद के करीब आने के बाद शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य बन गए. 2003 में जब मुलायम सिंह ने यूपी की सत्ता संभाली तो वक्फ मंत्री आजम खान की शिफारिश पर सपा नेता मुख्तार अनीस को शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड का चेयरमैन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उसी दौरान हजरतगंज में एक जीमन को लेकर उनका मौलाना कल्बे के साथ विवाद हो गया. मौलाना कल्बे के विरोध के बाद अनीस को बोर्ड के चेयरमैन का पद छोड़ना पड़ा. साल 2004 में सपा सरकार ने मौलाना कल्बे जव्वाद की शिफारिश पर वसीम रिजवी को शिया वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बना दिया.
2007 में थामा था BSP का दामन
2007 में यूपी में जैसे ही सत्ता पलट हुई तो वसीम रिजवी ने भी सपा का दामन छोड़कर बीएसपी का हाथ थाम लिया. 2009 में कार्यकाल पूरा होने के बाद एक बार फिर से नए शिया वक्फ बोर्ड का गठन हुआ. उस दौरान मौलाना कल्बे ने वसीम रिजवी के बाद अपने बहनोई जमालुद्दीन को वक्फ बोर्ड का नया चेयरमैन बना दिया. वसीम रिजवी को बोर्ड का सदस्य बना दिया गया. यहीं से वसीम रिजवी और मौलाना कल्बे जव्वाद के रिश्तों में दरार आ गई. इनके बीच सियासी वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई.
शिया वक्फ बोर्ड पर 2010 में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद जमालुद्दीन को पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद वसीम रिजवी को एक बार फिर से वक्फ बोर्ड की कमान मिल गई. 2012 में सपा सरकार के सत्ता में आने के 2 महीने बाद ही वक्फ बोर्ड को भंग कर दिया गया. आजन खान से करीबी रिश्ते होने की वजह से वसीम रिजवी 2014 में फिर से वक्फ बोर्ड के चेयरमैन बन गए. जिसके बाद मौलाना कल्बे जव्वाद ने सपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 2017 में जब यूपी में बीजेपी की सरकार आी तो वसीम रिजवी के तेवरों में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला. 18 मई 2020 को उनाक वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का कार्यकाल पूरा हो गया. जिसके बाद वह दोबारा चेयरमैन नहीं बने.
वसीम रिजवी पर भ्रष्टाचार के आरोप
वसीम रिजवी पर वक्फ की कई संपत्तियों को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. जिसके बाद उन पर कई FIR दर्ज हुईं. योगी सरकार ने वक्फ संपत्तियों की जांच CBCID को सौंप दी. फिलहाल इस मामले को सीबीआई देख रही है. वसीव रिजवी पर कुल 11 केस दर्ज हैं. उन पर शिया वक्फ की संपत्तियां गैर कानूनी तरीके से खरीदने, बेचने और ट्रांसफर करने का आरोप है. इस सबके बीच अब वह इस्लाम छोड़कर हिंदू बन गए हैं.
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