देहरादून 02 दिसम्बर (वेदांत समाचार)। दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के कई देशों में जानलेवा कोरोना महामारी के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के चलते जहां हड़कंप की स्थिति है, वहीं नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की पहल पर दक्षिण अफ्रीका से चीतों को भारत लाए जाने का मामला एक बार फिर अधर में लटक गया है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम को इसी सप्ताह दक्षिण अफ्रीका जाना था जहां से 10 चीतों को भारत लाए जाने की तमाम प्रक्रिया पूरी करनी थी। संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम को दक्षिण अफ्रीका भेजे जाने का फैसला टाल दिया गया है।
देश में विलुप्त हो चुके चीतों की चहलकदमी एक बार फिर जंगलों में दिखाई दे, इसके लिए एनटीसीए की पहल पर दक्षिण अफ्रीका से 40 चीतों को भारत लाए जाने की योजना बनाई गई। दोनों देशों की सरकार के बीच इस पर सहमति भी बन चुकी है। हालांकि इन चीतों को देश में लाए लाने की प्रक्रिया दो साल से जारी है लेकिन कोरोना संकट के चलते मामला लटकता रहा है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के डीन एवं वरिष्ठ वन्यजीव विज्ञानी डॉ लवाईवी झाला के मुताबिक, कोरोना को लेकर स्थितियां सामान्य होगी तो संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम को नए सिरे से दक्षिण अफ्रीका भेजने पर कोई निर्णय लिया जाएगा।
डॉ. झाला ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका से 40 चीतों को लाया जाना है, जिसमें पहले चरण में 10 चीते लाए जाएंगे। चीतों को फिलहाल मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर चिड़ियाघर में रखा जाएगा जिसके लिए तमाम व्यवस्थाओं को भी पूरा कर लिया गया है।
पूरी दुनिया में बचे हैं सिर्फ 12,400 चीतें
आंकड़ों पर नजर डालें तो पूरी दुनिया में सिर्फ 12400 चीतें ही बचे हैं जिसमें सबसे अधिक 2,500 चीते नामीबिया के जंगलों में पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण अफ़्रीका और ईरान जैसे देशों में चीते पाए जाते हैं। जहां तक भारत का सवाल है तो वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक, साल 1952 में चीते देश से पूरी तरह से विलुप्त हो गए थे। एक बार फिर देश के जंगल चीतों से आबाद हों, इसके लिए नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की ओर से लंबे समय से कवायद जारी है। चीतों को बसाने को लेकर एनटीसीए की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई थी जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चीतों को बसाने की अनुमति दी।
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