कोरबा। सहारा इंडिया में अपने जमा किए गए रुपयों की वापसी के लिए वर्षों से भटक रहे निवेशकों एवं काम करने वाले कार्यकर्ताओं के द्वारा मानसिक, आर्थिक एवं सामाजिक रूप से प्रताड़ित होकर पुन: कलेक्टर से गुहार लगाई गई है। विगत 5 वर्षों से सहारा इंडिया द्वारा मेच्योर हो चुके खातों का भुगतान नहीं किया जा रहा है। इस संबंध में मंगलवार को सहारा के कार्यकर्ताओं व जमाकर्ताओं ने कलेक्टोरेट पहुंचकर विभिन्न बिन्दुओं पर शिकायत करते हुए सहयोग की अपेक्षा जताई है।
आवेदकों ने बताया कि सहारा-सेबी का विवाद का बहाना कर जमाकर्ताओं व कार्यकर्ताओं को दिग्भ्रमित किया गया है। पिछले 10 वर्षों से सहारा कार्यालय में जो भी लेन-देन चल रहा है, वो सहारा क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी में है जबकि सहारा-सेबी का विवाद रियल स्टेट एवं हाउसिंग के अंतर्गत योजनाओं में है और उसका इस प्रकरण से कोई लेना-देना नहीं है फिर भी गुमराह किया जा रहा है। 20-25 वर्षों से सहारा में सेवा दे रहे कार्यकर्ताओं के समक्ष अब रोजगार का संकट है। लंबित कमीशन एवं मेच्योर हो चुके भुगतान राशि को रि-इनवेस्ट करके कागज के बदले कागज दिया जा रहा है। टीडीएस का भी ब्यौरा नहीं दे रहे हैं। यह भी शिकायत है कि समस्याओं को संस्था के मुख्यालय तक संबंधित लोगों द्वारा नहीं पहुंचाया जा रहा है और स्थानीय प्रबंधन कुछ नहीं कर सकने का हवाला देता है। कोरोना महामारी में भी जमा राशि का भुगतान नहीं मिलने से कई लोगों का ईलाज नहीं हो पाया और मौत हो गई। विवाह, चिकित्सा और शिक्षा सहित अन्य बड़ी आवश्यकताओं पर भुगतान के आग्रह को दरकिनार कर दिया गया। कई जमाकर्ता एवं सहारा कार्यकर्ताओं की मौत होने के बाद भी उनके नामिनी को मृत्यु दावा का भुगतान नहीं किया जा रहा है जबकि सहारा कार्यालय के अधिकारी व स्टाफ का भुगतान निरंतर हो रहा है। इसके अलावा एमआईएस की रकम जिसमें समाज के वृद्धजनों का जीवन-यापन होता है, उसका भी भुगतान नहीं किया जा रहा है।
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