शहीद कर्नल विप्लव कैसे हुए सेना में भर्ती, परिवार से हाल ही में हुई थी आखरी मुलाकात…

रायगढ़ 15 नवंबर (वेदांत समाचार)।। मणिपुर में शनिवार को एक आतंकी हमले में शहीद हुए 46 असम राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल विप्लव त्रिपाठी का पूरा परिवार देश सेवा से जुड़ा रहा है। बतया जा रहा है कि कर्नल विप्लव को सेना ज्वाइन करने के लिए दादा ने किया प्रेरित था। इस हमले के बाद से कर्नल त्रिपाठी का परिवार शोक में डूबा हुआ है। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा है कि एक पूरा का पूरा परिवार देश सेवा के लिए बलिदान हो गया। कर्नल त्रिपाठी के दादा किशोरी मोहन त्रिपाठी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और अपने दादा से ही प्रेरित होकर ही उन्होंने सेना की वर्दी पहनने की ठानी थी।

कर्नल त्रिपाठी 1994 में जब 14 साल के थे, तब उनके दादा किशोरी मोहन त्रिपाठी का निधन हो गया था। `देश की सेवा करने के लिए विप्लव ने भारतीय सेना को ज्वॉइन किया। उनके पिता एक सीनियर जर्नलिस्ट हैं और मां एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने अपना जीवन देश की सेवा करते हुए त्याग दिया। हमें उन पर गर्व है।` विप्लव अपने दादा किशोरी मोहन के काफी करीब थे और जब ज्ञानी जैल सिंह देश के राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने दादा के साथ राष्ट्रपति भवन का दौरा भी किया था।

कर्नल त्रिपाठी रीवा सैनिक स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। 30 मई 1980 को जन्मे विप्लव ने मध्य प्रदेश के रीवा स्थित सैनिक स्कूल से पढ़ाई की थी, उनके पिता सुभाष त्रिपाठी (76) एक सीनियर जर्नलिस्ट हैं और स्थानीय हिंदी अखबार के एडिटर हैं। वहीं, उनकी मां आशा त्रिपाठी रिटायर्ड लाइब्रेरियन हैं। कर्नल विप्लव त्रिपाठी ने सैनिक स्कूल रीवा से स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी, उनके बाद उनके भाई अनय त्रिपाठी ने भी इसी स्कूल से स्कूली शिक्षा प्राप्त की। स्कूल की पढ़ाई के बाद विप्लव ने नेशनल डिफेंस एकेडमी में एडमिशन लिया और उसके बाद देहरादून में इंडियन मिलिट्री एकेडमी ज्वॉइन की। 2001 में विप्लव रानीखेत में कुमाऊं रेजिमेंट में बतौर लेफ्टिनेंट कमीशन हुए। उसके बाद उन्होंने वेलिंगटन के डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज से कमांड का कोर्स पास किया।

विप्लव के छोटे भाई अनय त्रिपाठी ने भी रीवा सैनिक स्कूल से पढ़ाई की थी। वो भी आर्मी में हैं और इस समय शिलॉन्ग में लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक पर पोस्टेड हैं।

कर्नल त्रिपाठी के पूरे परिवार ने इस साल मणिपुर में दिवाली मनाई थी, तब क्या पता था कि एक सप्ताह बाद भी ये हंसता-खेलता परिवार सदा-सदा के लिए बिखर जाएगा। दिवाली मनाने के बाद उनके माता-पिता 6 नवंबर को रायगढ़ लौट आए थे।