माना जाता है कि इसी दिन मां लक्ष्मी ने भूलोक पर भगवान विष्णु और शिव जी आंवले के रूप में एक साथ पूजा की और इसी पेड़ के नीचे बैठकर खाना भी खाया था..
कार्तिक माह में कई त्योहार होते हैं और हर एक त्योहार का अपना एक खास महत्व होता है. दीपावली के बाद आवंला नवमी के त्योहार को मनाया जाता है. शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है. इस खास दिन आवंले के पेड़ की पूजा की जाती है. आपको बता दें कि स्वस्थ रहने की कामना के साथ आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है.
आंवला नवमी में आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर ही पूजा-अर्चना के बाद भोजन किया जाता है. इस दिन आंवले को भी प्रसाद के रूप में खाने का महत्व है. इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. इस दिन किया गया कार्य शुभ माना जाता है और अक्षय फल देने वाला होता है. आपको बता दें कि इस बार आंवला नवमी 12 नवंबर 2021, शुक्रवार को होगी.
श्रीकृष्ण भगवान से है नाता
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन आंवला या अक्षय नवमी को मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन से द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था. द्वापर में भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर जन्म लिया था. इतना ही नहीं भगवान श्रीकृष्ण ने भी आंवला नवमी के दिन ही वृंदावन-गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था.यही कारण है कि आंवला नवमी के दिन से वृंदावन परिक्रमा भी प्रारंभ होती है.
आंवला नवमी की पूजा विधि
अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है. वृक्ष की हल्दी कुमकुम आदि से पूजा करके उसमें जल और कच्चा दूध अर्पित करें. इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा करते हुए तने में कच्चा सूत या मौली आठ बार लपेटी जाती है. पूजा के बाद इसकी कथा पढ़ी और सुनी जाती है. पूजा खत्म होने के बाद परिवार और मित्रों आदि के साथ वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किए जाने का महत्व है.
जानिए क्या है कथा
आंवला नवमी अनेकों फल देने वाला है. ऐसे में इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराना लाभदायक माना जाता है, इसके साथ ही पहले उन्हें सोने का दान दिया जाता था. एक बार एक सेठ ब्राह्माणों को आदर सतकार इस दिन देता था, तो उसके पुत्रों को ये सब अच्छा नहीं लगता था, इसके लिए वह पिता से झगड़ा भी किया करते थे.
ऐसे में घर में होने वाली इस लड़ाई से परेशान होकर सेठ ने एक बार घर छोड़ दिया और दूसरे गांव में जाकर रहने लगा.उसने वहां जीवनयापन के लिए एक दुकान लगा ली. यहां उसने दुकान के आगे आंवले का एक पेड़ लगाया. भगवान की कृपा हुई और उसकी दुकान खूब चलने लगी.
खास बात ये थी परिवार से दूर होने पर भी वह यहां भी आंवला नवमी का व्रत-पूजा करने लगा तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देने लगा. दूसरी तरफ पुत्रों का व्यापार पूरी तरह से ठप्प हो गया है, और उनको अपनी गलती का अहसास हुआ. उनकी समझ में यह बात आ गई कि हम पिताश्री के भाग्य से ही खाते थे. इसके बार बेटे अपने पिता के पास गए और अपनी गलती की माफी मांगने लगे. फिर पिता की आज्ञानुसार उन्होंने भी आंवला के पेड़ की पूजा की इसके प्रभाव से उनके घर में भी पहले जैसी खुशहाली आ गई.
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