कोरबा, करतला 29 अक्टूबर (वेदांत समाचार) । कोरबा जिला के विकास खंड करतला का बरपाली गांव एक ऐसा पंचायत है, जहां लगभग प्रत्येक परिवार का कोई न कोई सदस्य यहां स्थित चिता पहरी की तराई क्षेत्र में शासकीय भूमि पर बेजा किया हुआ है और बात केवल बेजा कब्जा तक ही सीमित नहीं है बल्कि वहां पर आलीशान भवन का निर्माण भी किया जा रहा है। यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चल रहा है लेकिन 12-15 वर्षों के दौरान किये गए बेजा कब्जा ने पूर्व के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। वैसे तो बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ लोगों को अधिक आवास की जरूरत होती है और यह नियम जरूरत मंदो के लिए लागू होता है लेकिन बरपाली के हालात इससे अलग हैं। यहां के कई लोग इसे अपने लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बनाने लग गए हैं और कब्जा किये गए भूमि को विक्री करते देखे जा सकते हैं।जो अधिक सक्षम हैं वे भूमि पर मकान बनाकर बेचने का गोरख धंधा प्रारंभ कर दिये हैं। कुछ दलालों के माध्यम से ऐसा ब्यवसाय काफी पनपने भी लगा है।
वैसे कानूनन गांव में अथवा शहरों में पंचायत तथा नगर निकाय द्वारा आवास हीन परिवार को एक सीमित दायरे में मकान बनाने के लिए शासकीय भूमि आबंटित किया जाता है गरीबी रेखा के निचे जीवन यापन करने वाले लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास निर्माण के लिए शासन द्वारा निर्धारित रकम भी दिये जाते हैं लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बरपाली में अभी तक जिन्होंने बेजा कब्जा किया है उनमें से 80% लोग ऐसे हैं जिनके पास रहने के लिए अच्छे मकान हैं, उनमें कुछ शासकीय सेवक हैं, कुछ ब्यापारी हैं और सभी सम्पन्न माने जाते हैं। लेकिन अफसोस इस बात का है कि सभी लोग बहती गंगा में अपना हाथ धोना चाहते हैं क्योंकि यहां न तो पंचायत समिति की चलती है न राजस्व विभाग की। ग्राम पंचायत में तो खैर वोट बैंक की राजनीति का बोल बाला होता है और कमोबेश सभी इस प्रकार की राजनीति के शिकार होते हैं लेकिन राजस्व विभाग की चुप्पी तथा आंख बंद कर लेना समझ से परे लगता है। अन्य स्थानों की बात तो मैं नहीं करता लेकिन बरपाली के वर्तमान सरपंच एवं सचिव ने स्थानीय तहसीलदार को बेजा कब्जा की भूमि पर प्रधानमंत्री आवास का निर्माण कर उसे किसी अन्य को बेच दिये जाने की लिखित शिकायत की है कुछ लोगों के द्वारा बेजा कब्जा किये गए जमीन को भी किसी दूसरे को बेचने का मामला भी सामने आया है जिसकी शिकायत सरपंच ने की है लेकिन अभी तक कोई वांछित कार्यवाही नहीं हुई है। यदि ग्राम पंचायत बरपाली में किये गए बेजा कब्जा के संबंध में विस्तृत जांच की जाय तो यहां अनेक चौकाने वाले तथ्य प्रकाश में आयेंगे क्योंकि सबसे अधिक बेजा कब्जा शासकीय कर्मचारियों के द्वारा किया गया है जबकि शासन स्पष्ट आदेश है कि कोई भी शासकीय सेवक के खिलाफ यदि बेजा कब्जा करना सिद्ध होता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जा सकती है। यहां तक कि उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ सकता है लेकिन यहां किसी को भी कानून का कोई डर नहीं है।
उल्लेखनीय बात यह भी है कि यहां के बेस कीमती जमीनों पर कुछ ब्यापारियों का बेजा कब्जा है जहां उनका ब्यवसाय फल फूल रहा है इनके बारे में भी पंचायत समिति तथा तहसील कार्यालय में अनेकों बार लिखित शिकायत की गई है लेकिन बात अभी भी अटकी हुई है। कोई भी अधिकारी इनके ऊपर हाथ डालना चाहता ही नहीं मामला आपस में ही सुलझा लिया जाता है। आज चिता पहरी जिस पर कुछ वर्ष पूर्व तक आसपास के लोग तफरीह के लिए घूमने जाते रहे हैं वह चारों ओर से घिर गया है। ऊपर जाने के सारे रास्ते बंद हो गए हैं जहां पहले चिता का निवास स्थान था आज वह मैदान में तब्दील होने के कगार पर है। यदि इस पहाड़ी को नहीं बचाया गया तो एक सुरम्य स्थल मैदान तो बनेगा ही साथ ही यह पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी कोई नहीं बचा पायेगा इसलिए ग्राम पंचायत और राजस्व विभाग दोनों को सयुंक्त रूप से बेजा कब्जा को नियंत्रित करने का प्रयास करना होगा।
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