छत्तीसगढ़ के गोबर के दीप से जगमगाएगा अयोध्या का राम मंदिर

छत्तीसगढ़ के गोठानों में गोबर से यूं तो कई चीजें बनाई जा रही हैं, लेकिन दीपावली पर्व को देखते हुए इन दिनों सबसे ज्यादा मांग है, यहां बनाए जाने वाले दीपों की। खास बात यह है कि रायपुर के गोठानों में तैयार होने वाले गोबर के दीपों से इस साल अध्योध्या का राममंदिर भी जगमगाएगा। अयोध्या राममंदिर सज्जा समिति से जुड़े सेवकराम सिंह ने एक लाख दीपों का आर्डर रायपुर की ‘एक पहल’ सेवा समिति को दिया है।

इसकी आपूर्ति दीपावली के एक सप्ताह पहले करनी है। इसे देखते हुए समिति द्वारा संचालित गोठानों में काम करने वाली स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा दीप बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है। समिति के उपाध्यक्ष रितेश अग्रवाल ने बताया गोठानों में गोबर से तीन प्रकार के दीप तैयार किए जा रहे हैं। डिजाइनर दीप, 12 दीपों वाली थाली और सादा दीप। अयोध्या के सेवकराम ने सादा दीप का आर्डर दिया है। इसकी कीमत दो रुपये प्रति दीप है।

उन्होंने बताया कि एक शिविर में सेवकराम से मुलाकात हुई थी। इसी दौरान हुई चर्चा में जब उन्हें पता चला कि रायपुर में गोबर से दीप बनाए जा रहे हैं, तो वे रोमांचित हो गए। कुछ दिनों बाद ही उन्होंने एक लाख दीप का आर्डर दे दिया। इस दौरान सेवकराम ने बताया कि वे दीपावली पर अयोध्या के राममंदिर में इन दीपों को प्रज्वलित कराएंगे। रितेश ने बताया कि छत्तीसगढ़ के अलावा आसपास के राज्यों से भी गोबर के दीप के आर्डर आ रहे हैं। समूह की महिलाएं इसे बनाने में लगातार जुटी हुई हैं।

महिलाओं को मिल रहा रोजगार

रितेश ने बताया कि गोबर से लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां भी बनाई जा रही हैं। इससे महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। वह घर की जिम्मेदारियां निभाने के साथ ही आमदनी कर परिवार को सुदृढ़ बना रही हैं। गोबर से उन्होंने बताया कि वाट्सएप ग्रुप में भी आर्डर लिए जा रहे हैं।

खाद के रूप में भी कर सकेंगे उपयोग

रितेश बताते हैं कि गोबर के दीप से पर्यावरण का भी संरक्षण होगा। दीपावली बीतने के बाद इन दीपों का उपयोग खाद के रूप में भी किया जा सकेगा। इसका बुरादा बनाकर पौधों में डाला जा सकता है।

इस तरह होते हैं तैयार

गोठान में काम करने वाली महिलाओं ने बताया कि गोबर को कंडा बनाने के बाद उसका पावडर बना लिया जाता है। उसमें लकड़ी का बुरादा और गोंद डालकर पेस्ट बना लेते हैं, जिसे मशीनों में डालकर दीप तैयार कर लिया जाता है। सूखने के बाद इन दीपों को चूने के पानी में डुबो दिया जाता है, ताकि उसमें आग न लगे।

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