मथुरा,18 फ़रवरी 2025/ वृंदावन में 12 दिन बाद फिर से संत प्रेमानंद महाराज ने रात्रिकालीन पदयात्रा शुरू की। सोमवार शाम से ही पदयात्रा मार्ग पर भीड़ जुटने लगी थी। रात में सड़क पर भक्तों ने रंगोली बनाई, दीपक जलाए। संत प्रेमानंद महाराज को देखते ही भक्तों के चेहरे पर खुशी छा गई।
दरअसल, 4 फरवरी को NRI ग्रीन सोसाइटी के लोगों ने प्रेमानंद महाराज की पदयात्रा के दौरान बजने वाले ढोल और आतिशबाजी का विरोध किया था। इसके बाद संत प्रेमानंद महाराज ने 6 फरवरी से अपनी रात्रिकालीन पदयात्रा स्थगित कर दी थी। इसके बाद से संत प्रेमानंद महाराज श्री कृष्ण शरणम् सोसाइटी से रात 2 बजे की जगह सुबह 4 बजे कार से केली कुंज आश्रम जाने लगे थे।
रविवार को NRI ग्रीन सोसाइटी के अध्यक्ष आशु शर्मा ने प्रेमानंद महाराज से हाथ जोड़कर माफी मांगी। कहा- सोसाइटी के लोग पश्चाताप कर रहे हैं। ब्रजवासियों ने भी उसने पदयात्रा शुरू करने की अपील की। इसके बाद संत प्रेमानंद महाराज ने अपनी रात्रिकालीन पदयात्रा शुरू की।
इस सूचना के बाद प्रेमानंद महाराज के अनुयायी मायूस हो गए। लोगों ने पदयात्रा स्थगित किए जाने की वजह खोजी। पता चला कि एनआरआई ग्रीन अपार्टमेंट सोसाइटी के लोगों ने प्रेमानंद महाराज के रात्रि दर्शन को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था।
शाम होते ही जुटने लगे थे भक्त
12 दिन बाद आज रात 2 बजे संत प्रेमानंद महाराज एक बार फिर जैसे ही श्री कृष्ण शरणम् सोसाइटी से बाहर निकले तो भक्त उत्साहित हो गए। राधा-रानी की जय जयकार से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। पूरे रास्ते में रंगोली बनाई गई थी। भक्तों का कहना था कि महाराज जी तो राधा रानी की सेवा करते हैं, ब्रजवासी तो उनके प्राण हैं। फिर लोगों ने क्यों विरोध किया था। महाराज के स्वागत में पदयात्रा मार्ग को फूलों से सजाया गया था। इतना ही नहीं कई भक्तों ने उनके दोबारा पदयात्रा शुरू करने की खुशी में दीपक जलाए। ऐसा लग रहा था जैसे दीपावली मनाई जा रही हो।
संत प्रेमानंद महाराज ने पदयात्रा को लेकर फूल,तस्वीर,चाय-नाश्ता वाले दुकानदारों का कहना था- पदयात्रा स्थगित होने से उनका रोजगार ठप हो गया था। फूल बेचने वाले सूरज ने बताया कि आज कई दिन बाद अच्छी मात्रा में फूल बिके हैं। चाय का ठेला लगाने वाले राज ने बताया कि वह महाराज जी के भक्त हैं। महाराज जी की पदयात्रा पर आने से रोजगार तो चलेगा ही सबसे महत्वपूर्ण उनके दर्शन हो जाएंगे।
NRI ग्रीन सोसाइटी के लोगों ने किया स्वागत
संत प्रेमानंद महाराज पुराने रास्ते से पदयात्रा करते हुए जब NRI ग्रीन सोसाइटी के बाहर पहुंचे तो वहां भी सोसाइटी के लोगों ने उनका स्वागत किया। रंगोली बनाई और राधा नाम का संकीर्तन किया। यह वही सोसाइटी है जिसके निवासियों ने रात्रि कालीन पदयात्रा के दौरान बजने वाले ढोल और आतिशबाजी का विरोध किया था।
अब प्रेमानंद जी के बचपन से लेकर प्रसिद्ध कथावाचक और संत बनने की कहानी…
13 साल की उम्र में प्रेमानंद जी महाराज ने घर छोड़ दिया था
प्रेमानंद महाराज का कानपुर के अखरी गांव में जन्म और पालन-पोषण हुआ। यहीं से निकलकर वो इस देश के करोड़ों लोगों के मन में बस गए। उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे बताते हैं- मेरे पिता शंभू नारायण पांडे और मां रामा देवी हैं। हम 3 भाई हैं, प्रेमानंद मंझले हैं। प्रेमानंद हमेशा से प्रेमानंद महाराज नहीं थे। बचपन में मां-पिता ने बड़े प्यार से उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा था।
हर पीढ़ी में कोई न कोई एक बड़ा साधु-संत निकला
गणेश पांडे बताते हैं- हमारे पिताजी पुरोहित का काम करते थे। मेरे घर की हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत होकर निकलता है। पीढ़ी दर पीढ़ी अध्यात्म की ओर झुकाव होने के चलते अनिरुद्ध भी बचपन से ही आध्यात्मिक रहे। बचपन में पूरा परिवार रोजाना एक साथ बैठकर पूजा-पाठ करता था। अनिरुद्ध यह सब बड़े ध्यान से सभी देखा-सुना करता था।
शिव मंदिर में चबूतरा बनाने से रोका, तो घर छोड़ दिया
बचपन में अनिरुद्ध ने अपनी सखा टोली के साथ शिव मंदिर के लिए एक चबूतरा बनाना चाहा। इसका निर्माण भी शुरू करवाया, लेकिन कुछ लोगों ने रोक दिया। इससे वह मायूस हो गए। उनका मन इस कदर टूटा कि घर छोड़ दिया।
घरवालों ने उनकी खोजबीन शुरू की। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि वो सरसौल में नंदेश्वर मंदिर पर रुके हैं। घरवालों ने उन्हें घर लाने का हर जतन किया, लेकिन अनिरुद्ध नहीं माने। फिर कुछ दिनों बाद बची-खुची मोह माया भी छोड़कर वह सरसौल से भी चले गए।
नंदेश्वर से महराजपुर, कानपुर और फिर काशी पहुंचे
आज जिन प्रेमानंद महाराज के भक्तों में आम आदमी से लेकर सेलिब्रिटी तक शुमार हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई सिर्फ 8वीं कक्षा तक हुई है। 9वीं में भास्करानंद विद्यालय में एडमिशन दिलाया गया था, लेकिन 4 महीने में ही स्कूल छोड़ दिया।
इसके बाद वह भगवान की भक्ति में लीन हो गए। सरसौल नंदेश्वर मंदिर से जाने के बाद वह महराजपुर के सैमसी स्थित एक मंदिर में कुछ दिन रुके। फिर कानपुर के बिठूर में रहे। बिठूर के बाद काशी चले गए।
संन्यासी जीवन में कई दिन भूखे रहे
काशी में उन्होंने करीब 15 महीने बिताए। उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज से गुरुदीक्षा ली। वाराणसी में संन्यासी जीवन के दौरान वो रोज गंगा में तीन बार स्नान करते। तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान-पूजन करते।
दिन में केवल एक बार भोजन करते। प्रेमानंद महाराज भिक्षा मांगने की जगह भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे। अगर इतने समय में भोजन मिला तो उसे ग्रहण करते, नहीं तो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज ने कई दिन बिना कुछ खाए-पीए बिताया।