महिला समानता के लिए अब भी है जागरूकता की जरूरत

जबलपुर, 26 अगस्त (वेदांत समाचार)  महिला समानता की बात हर जगह होती है, लेकिन आज भी समाज में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। उन्हें संवैधानिक तौर पर तो अधिकार मिल गए हैं, लेकिन घर की चार दिवारों में आज भी उनके अधिकारों का कोई मूल्य नहीं है। उन्हें आज भी परिवार के अन्य सदस्यों के हिसाब से अपने निर्णय लेने होते हैं।

26 अगस्त को महिला समानता दिवस मनाया जा रहा है। वैसे तो इस दिन को मनाने की शुरूआत अमेरिका से हुई, लेकिन यह दिन हर महिला के लिए खास है, फिर वो अमेरिका की हो या भारत की। महिला समानता को बढ़ावा देने के लिए महिला सशक्तिकरण, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं ताकि महिलाओं को समानता का अधिकार मिल सके। घर से लेकर दफ्तर तक हर जगह महिलाओं को समानता की जरूरत है। कहीं तो महिलाओं को समान माना जाता है, लेकिन कहीं-कहीं आज भी उन्हें लिंग भेद का सामना करना पड़ता है। महिला समानता के लिए स्कूल और कॉलेजों में चलाए जाते हैं जागरुकता कार्यक्रम। ताकि लोग इन पर विचार करें और अपने नजरिए को बदलें।

ऐसे हुई शुरूआत : 

अमेरिका में 26 अगस्त 1920 को पहली बार महिलाओं को मतदान करने का अधिकार मिला, इसके साथ ही महिलाओं को समानता का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करने वाली महिला वकील बेल्ला अब्जुग के प्रयास से 1971 से 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

कन्या भ्रूण हत्या, महिला सशक्तिकरण थीम के जरिए करते हैं जागरुक :

 संभागीय बाल भवन के संचालक गिरीश बिल्लोरे ने बताया कि महिलाओं को समानता का अधिकार मिला है। महिलाओं ने अपनी श्रेष्ठता हर एक क्षेत्र में साबित की है। महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया काफी हद तक बदला है। इसके लिए प्रयास लगातार जारी है। बाल भवन में बच्चे पोस्टर, स्लोगन आदि के माध्यम से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तिकरण का संदेश देते हैं। बच्चे लगातार इसके प्रति लोगों को जागरुक करने का काम कर रहे हैं।

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