कांग्रेस नेता इश्तियाक की याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने कहा जनहित नहीं व्यक्तिगत है…

0 एनएच का मुआवजा कम मिलने पर शेख इश्तियाक ने किया था दायर


कोरबा/बिलासपुर 24 अगस्त ( वेदांत समाचार )। नेशनल हाइवे में जमीन अधिग्रहण के एवज में कम मुआवजा मिलने पर हाईकोर्ट में दाखिल की गई कांग्रेस नेता की जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि व्यक्तिगत लाभ के लिए यह जनहित याचिका नहीं है।

गौरतलब है कि पतरापाली से कटघोरा के मध्य भारतमाला परियोजना के अंतर्गत नेशनल हाइवे की योजना पर कार्य जारी है। इसके लिए नेशनल हाइवे क्षेत्र में आने वाली विभिन्न गांवों की भूमि का अधिग्रहण कर उसका मुआवजा वितरण को लेकर कई तरह की बातें सामने आई। इसी कड़ी में कटघोरा क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता पुरानी बस्ती निवासी शेख इश्तियाक पिता अब्दुल रहमान की भी जमीन नेशनल हाइवे में अधिग्रहित हुई लेकिन मुआवजा को लेकर वे संतुष्ट नहीं है। कम मुआवजा मिलने के कारण इस पूरे मामले को लेकर द्वारा एक जनहित याचिका बिलासपुर हाईकोर्ट में विगत दिनों दायर की गई थी। उन्होंने भारत सरकार के सड़क मंत्रालय सचिव, नेशनल हाइवे अथारिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन, छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग सचिव, कोरबा कलेक्टर एवं एसडीओ को प्रतिवादी बनाया। शेख इश्तियाक द्वारा जनहित याचिका में कहा गया कि 15 जुलाई 2019 को एसडीओ (राजस्व) भूअधिग्रहण अधिकारी कटघोरा के द्वारा भूमिअधिग्रहण के एवज में अवार्ड पारित किया गया। पारित अवार्ड में शहर व गांव की जमीन को लेकर काफी अंतर है।


मुआवजा निर्धारण अधिकारी एसडीओ पर उन्होंने मुआवजा सही ढंग से निर्धारण नहीं करने की बात कहते हुए अपने अधिवक्ता बीपी शर्मा के माध्यम से याचिका दायर की। इस जनहित याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। सुनवाई करते हुए एक्टिंग चीफ जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा व न्यायाधीश एनके चंद्रवंशी ने कहा है कि यह व्यक्तिगत लाभ के लिए दायर की गई याचिका है जिसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। भूअधिग्रहण अधिनियम-1956 के अंतर्गत मध्यस्थ नियुक्त कर याची अपनी समस्या का समाधान कर सकता है लेकिन अकेले के लिए जनहित याचिका दाखिल नहीं कर सकता। न्यायालय ने एक अन्य प्रकरण आशुतोष अग्रवाल विरूद्ध भारत सरकार के प्रकरण में 6 दिसंबर 2019 को दिए फैसले का न्याय दृष्टांत देते हुए कहा है कि याची द्वारा धारा 1956 के तहत पृथक से वाद लाकर समाधान करा सकता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि भू-अर्जन अधिनियम तहत जिस दर से भू-अर्जन अधिकारी ने मुआवजा निर्धारण किया है उसी मूल्य से मुआवजा प्राप्त होगा और जनहित याचिका को खारिज कर दिया।

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