मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मानना है कि भारत के नक्शे में सिर्फ एक अलग राज्य के रूप में एक भौगोलिक क्षेत्र की मांग नहीं थी, बल्कि इसके पीछे सदियों की पीड़ा थी। ये छत्तीसगढ़िया सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने की मांग थी। आम छत्तीसगढ़िया की तासीर और उनकी अपेक्षाएं बिलकुल अलग हैं, बरसो की उपेक्षा और तिरस्कार, पिछड़ेपन का दंश के बावजूद अपनी आस्मिता और स्वामिमान को बचाकर चलना यहां की खासियत है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इन्हें समझने में जरा भी देर नहीं लगी। उन्होंने छत्तीसगढ़ में न केवल सांस्कृतिक उत्थान के लिए छत्तीसगढ़ के त्यौहारों को महत्व दिया बल्कि छत्तीसगढ़ के किसानों, मजदूरों सहित सभी वर्गाे के हितों को और अधिक मजबूत करने के लिए न्याय योजनाओं की श्रृखला शुरू की। उनके विकास के छत्त्ीसगढ मॉडल में है माटी की सौंधी महक।
मुख्यमंत्री बघेल के विकास के छत्तीसगढ़ माडल में आवश्यक अधोसंरचना विकास के साथ-साथ लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है, विकास का संतुलित स्परूप ही इस मॉडल की विशेषता है। उन्होंने आम छत्तीसगढ़िया की आखों में खुशहली और उनके चेहरे चमक में लाने के लक्ष्य को लेकर सरकार बनते ही कई ऐतिहासिक फैसले लिए। उन्होंने बरसों से छत्तीसगढ़ के साथ हुए अन्याय को न्याय योजनाओं के जरिए न्याय देने की पहल की है। चाहे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना हो, चाहे किसानों की कर्ज मुक्ति की बात हो या धान का वाजिब मूल्य देने की बात हो, अपने वायदे से वे कभी नहीं डिगे। उन्होंने हमेशा साहसिक फैसले लेकर छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया दोनो के हितों की रक्षा की।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विकास के छत्तीसगढ़ी माडल में सबके लिए न्याय की अवधारणा है। यहां सिर्फ किसानों, मजदूरों, श्रमिकों के लिए ही न्याय नहीं है, न्याय की बयार, वनवासियों, और मध्यम वर्ग और उद्यमियों तक भी पहुंच रही है। हर वर्ग को राहत पहुंचाने के लिए अनेक फैसले लिए गए हैं। अन्नदाता किसानों का मान बढ़ाने के लिए न्याय की पहल की गई किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य दिलाने के लिए राजीव गांधी किसान न्याय योजना की शुरूआत हुई। मध्यम वर्ग को न्याय देने के लिए छोटे भू-खंडों के क्रय विक्रय के साथ ही भूमि के क्रय विक्रय की गाइड लाइन दरों में 30 प्रतिशत की कमी के साथ ही रियल इस्टेट सेक्टर को नया बूूम देने के लिए 75 लाख तक के मकानों की खरीदी पर पंजीयन राशि में छूट दी गई। वनवासियों को न्याय देने की पहल के तहत वनोपजों की संग्रहण मजदूरी तथा समर्थन मूल्य में वृद्धि के साथ समर्थन मूल्य पर खरीदी जाने वाली लघु वनोपजें 7 से बढ़ाकर 52 की गयी, जिसके कारण 13 लाख से अधिक आदिवासियों और वन आश्रित परिवारों को लाभ मिल रहा है। उद्योगों को राहत देने कई फैसले लिए गए।
पिछले ढाई सालों पर नजर डालें तो राज्य में विकास का एक अलग स्वरूप नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ विकास का मॉडल देश में एक अलग पहचान के रूप में स्थापित हो रहा है। इस विकास मॉडल के केन्द्र में गांव और किसान हैं। गांवों के गौरव को फिर से जगाने और हर हाथ को काम से जोड़ने का लक्ष्य रखकर सुराजी गांव योजना और गोधन न्याय योेेेजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना और राजीव गांधी भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना जैसी योजनाए प्रारंभ की गई है। लाख उत्पाद और मछली पालन को कृषि का दर्जा दिया गया। कोदो-कुटकी का समर्थन मूल्य घोषित करने के साथ ही लघु धान्य फसलों को बढ़ावा देने के लिए मिलेट मिशन भी शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
मुख्यमंत्री बघेल का कहना है कि नरवा-गरवा-घुरवा-बारी को छत्तीसगढ़ के सर्वांगीण विकास से, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अस्मिता से जोड़ना निश्चित तौर पर यह हमारी प्राथमिकता है। हम छत्तीसगढ़ के बुनियादी विकास की बात करते हैं और उसी दिशा में सारे प्रयास किए गए हैं, जिसके कारण आर्थिक मंदी और कोरोना जैसे संकट के दौर में भी, छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था अपनी पटरी पर बनी रही। जब देश और दुनिया के बाजारों में सन्नाटा था, तब छत्तीसगढ़ में ऑटो-मोबाइल से लेकर सराफा बाजार तक में उत्साह था। हमारे कल-कारखाने भी चलते रहे और गौठान भी। हमारे फैसले छत्तीसगढ़ को न सिर्फ तात्कालिक राहत देते हैं बल्कि दूरगामी महत्व के साथ, चौतरफा विकास के रास्ते खोलते हैं।
देश में पहली बार किसानों को विभिन्न फसलों के लिए इनपुट सब्सीडी देने की शुरूआत हुई। न्याय की यह बयार यहीं नहीं रूकी। गोधन न्याय योजना में इसे और बढ़ाया गया पशुपालकों और ग्रामीणों से गोबर खरीदी का काम शुरू हुआ। इस योजना से लगभग 76 प्रतिशत भूमिहीन कृषि मजदूर लाभान्वित हो रहे हैं। इससे इन वर्गाे को जहां आय का जरिया मिला वहीं गांव की महिला समूहों को वर्मी कम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट से जोड़कर उन्हें भी स्वावलंबन से जोड़ा गया है। सुराजी गांव योजना में बनाए गए गौठानों में रूरल इंडस्ट्रियल पार्क की अवधारणा ने यहां ग्रामोद्योग और परम्परागत हस्तशिल्पियों के रोजगार का नया द्वार खोल दिया है। यहां प्रोसेसिंग प्लांट लगाने के साथ ही इन उत्पादों की मार्केटिंग के लिए व्यापारियों की भी मदद ली जा रही है।
ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को मजबूत करने के लिए खेती किसानी के साथ-साथ कृषि आधारित उद्योंगों को प्राथमिकता दी जा रही है। सभी विकास खंडों में फूड पार्क बनाने का लक्ष्य रखा गया है। लघुवनोपज से वनवासियों को अधिक से अधिक लाभान्वित करने के लिए इन वनोपजों के वेल्यूएडिशन पर जोर दिया जा रहा है। कोरोना काल में देश में सबसे अधिक लघु वनोपज का समर्थन मूल्य पर संग्रहण छत्तीसगढ़ में किया गया। सुराजी गांव योजना में गौठानों में रूरल इंड्रस्ट्रीयल पार्क के जरिए ग्रामीणों और युवाओं को उत्पादक गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है। गांवों में सिंचाई क्षमता के विकास के लिए नरवा कार्यक्रम हाथ में लिया गया है।
पिछले ढाई सालों में ऐसे अनेक छोटे-बड़े नवाचार हुए हैं, जिसका लाभ लोगों को मिल रहा है। डेनेक्स कपड़ा फैक्ट्री से लेकर वनोपज संग्रह में महिला स्व-सहायता की भूमिका, देवगुड़ी के विकास से लेकर स्थानीय उपजों के वेल्यूएडिशन तक बहुत से काम किए गए हैं। छत्तीसगढ़ के कोयले से अगर बिजली बनती है तो उसके लाभ में सीधे हिस्सेदारी आम जनता की होनी चाहिए। यही वजह है कि घरेलू बिजली उपभोक्ताओं के लिए बिजली बिल हाफ योजना लागू की गई है। इस योजना के तहत प्रदेश के 39 लाख से अधिक घरेलू उपभोक्ताओं को विगत 27 महीने में 1822 करोड़ रू. का लाभ मिल चुका है।
कोरोना से लड़ने के लिए प्रदेश में बड़े पैमाने पर स्वस्थ्य सुविधाएं विकसित की गयी। कोरोना काल में देश के 10 राज्यों को आक्सीजन की सप्लाई की गई। कांकेर, कोरबा तथा महासमुंद में नए मेडिकल कॉलेज भी खोलने की स्वीकृति दी गयी है। बस्तर में कुपोषण मुक्ति से लेकर मलेरिया उन्मूलन तक सफलता का नया कीर्तिमान रचा गया है। मुख्यमंत्री हाट-बाजार क्लीनिक योजना, मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना और दाई-दीदी मोबाइल क्लीनिक जैसी पहल का लाभ लाखों लोगों को मिला है।
प्रदेश की नई औद्योगिक नीति में पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करने के प्रावधान किए गए हैं। हर विकासखंड में फूडपार्क स्थापित करने की दिशा में कार्यवाही शुरू की गयी है। गरीब परिवारों के बच्चों को अंगेजी माध्यम में शिक्षा देने के लिए स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना शुरू की गई है, जिसके तहत 172 शालाओं का संचालन किया जा रहा है। कोरोना से जिन बच्चों के पालकों का निधन हुआ है, उन बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने के लिए ‘महतारी दुलार योजना’ शुरू की गई है।
प्रदेश के ग्रामीण अंचल, वन अंचल, बसाहटों, कस्बों और शहरों में रहने वाले लोगों का जीवन आसान बनाने के लिए आगामी दो वर्षों में 16 हजार करोड़ की लागत से सड़कों का नेटवर्क बनाया जा रहा है। सिर्फ एक साल 2020-21 में ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ के तहत प्रदेश में 4 हजार 228 किलोमीटर सड़कें बनाई गईं। इतना काम पिछले किसी एक साल में नहीं हुआ। पूरे ढाई साल में 8 हजार 545 किलोमीटर सड़कें बनाई, जो एक बड़ी उपलब्धि है।
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