सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि महिलाएं भी नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा दे सकती हैं जो कि 14 नवंबर को होने वाली है. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश देश की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को सेनाओं में सेवा करने का मौका देगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में ‘सोच को एक बड़ी समस्या’ करार दिया. कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं और पुरुषों को एक समान अवसर देने में सोच सबसे बड़ी समस्या है. अभी तक इस एकेडमी में सिर्फ पुरुषों को ही एडमिशन मिलता है. आइए आपको इस एकेडमी के बारे में बताते हैं.
किसी को भी नहीं मालूम वजह
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सरकार को चेतावनी दी और कहा कि अब उसे बदल जाना चाहिए. दिल्ली स्थित एडवोकेट कुश कालरा की तरफ से रिट पीटिशन दायर की गई थी. इसमें मांग की गई थी कि महिलाओं को भी एनडीए का एग्जाम देने की मंजूरी दी जाए. सेना की तरफ से सुनवाई में शामिल काउंसल ने कहा है कि यह एक नीतिगत फैसला है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नीतिगत फैसला लैंगिक भेदभाव पर आधारित है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए सेना की भी आलोचना की क्यों अभी तक महिलाओं को एनडीए उग्जाम देने की मंजूरी नहीं दी गई है. न तो सरकार ने और न ही सेना की तरफ से इस बात की जानकारी दी गई है कि क्यों एकेडमी में लड़कियों के एडमिशन को मंजूरी नहीं है.
हर साल कितने ऑफिसर्स
हर साल यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) के एग्जाम के तहत एनडीए में एडमिशन होता है. केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया है कि तीनों सेनाओं में भर्ती के लिए एनडीए ही एक सेंटर प्वाइंट है. औसतन 1470 ऑफिसर्स हर साल कमीशन होते हैं. इसमें से 670 ऑफिसर्स इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) और एनडीए से आते हैं जबकि कुछ ऑफिसर्स ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (OTA) से आते हैं. ओटीए वो जगह है जहां पर महिलाओं और पुरुषों को एक साथ कमीशन दिया जाता है. इससे अलग 453 ऑफिसर्स शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के जरिए नॉन-टेक्निकल और टेक्निकल विंग में जाते हैं.
आर्मी, एयरफोर्स और नेवी ऑफिसर्स की शुरुआती ट्रेनिंग
नेशनल डिफेंस एकेडमी यानी एनडीए महाराष्ट्र के पुणे के खड़कवासला में स्थित है. एक ऐसा इंस्टीट्यूट जहां पहुंचना हर युवा का सपना होता है लेकिन कुछ किस्मत वालों का ही सपना पूरा हो पाता है. एक ऐसा इंस्टीट्यूट है जहां पर तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद 18 साल का एक युवा जेंटलमैन कैडेट एक ऑफिसर में तब्दील होता है. इस इंस्टीट्यूट में देश के भावी मिलिट्री ऑफिसर्स को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर भी मजबूत बनाया जाता है. एनडीए दुनिया की पहली ऐसी मिलिट्री एकेडमी है जहां पर सेनाओं के तीनों अंगों आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के ऑफिसर्स को एक साथ ट्रेनिंग दी जाती है.
क्यों चुना गया खड़कवासला को
जिस जगह पर एनडीए है वहां, पर झील भी है, पहाड़ी रास्ते भी और दूसरे सभी पुराने मिलिट्री संस्थान भी मौजूद हैं इसलिए खड़कवासला को इस एकेडमी के लिए चुना गया. एक जनवरी 1949 को एनडीए ने ज्वाइंट सर्विसेज विंग यानी जेएसडब्ल्यू के तौर पर संचालन शुरू किया. उस समय यह उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी में ही स्थित था.
16 जनवरी 1955 को एनडीए का उद्घाटन हुआ और इंडियन मिलिट्री एकेडमी से अलग होने की घटना को ‘ऑपरेशन बदली’ नाम दिया गया. साल 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सूडान में भारतीय सैन्य दल के लिए जो राशि दान की गई थी, उसी राशि से एनडीए की बिल्डिंग का निर्माण हुआ. इसलिए मेन बिल्डिंग को सूडान ब्लॉक कहा जाता है.
कोर्समेट्स हैं तीनों सेनाओं के मुखिया
एनडीए का गठन एक प्रयोग के तौर पर हुआ था जिसके तहत यह देखना था कि क्या अलग-अलग संस्कृति और पृष्ठभूमि से आने वाले युवा एक साथ आकर एक तय समय में सही ट्रेनिंग पूरी कर पाते हैं या नहीं. एनडीए ने अभी तक देश को 13 आर्मी चीफ, 11 नेवी चीफ और 9 एयरफोर्स चीफ दिए हैं. इंडियन आर्मी चीफ जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, वायुसेना प्रमुख चीफ एयरचीफ मार्शल आरके भदौरिया और नेवी चीफ एडमिरल करमबीर सिंह, एनडीए के एक कोर्स 56 के पासआउट हैं. 44 साल बाद तीनों को एक साथ काम करने का मौका मिला है. तीनों ने साल 1976 में एनडीए को ज्वॉइन किया था.
कैसा है एनडीए का स्ट्रक्चर, मिलती है JNU की डिग्री
तीन वर्ष की पढ़ाई पूरी करने के बाद कैडेट्स को जेएनयू से बैचलर ऑफ आर्ट्स यानी बीए या फिर बैचलर ऑफ साइंस यानी बीएससी की डिग्री मिलती है. एनडीए में भारतीय कैडेट्स के अलावा 27 देशों के 700 कैडेट्स को भी एक साथ ट्रेनिंग दी जाती है. एनडीए में 18 स्क्वाड्रन हैं जिन्हें पांच बटालियंस में बांटा गया है. एनडीए में स्थित स्क्वाड्रंस की बिल्डिंग के निर्माण में देश के 18 राज्यों ने पांच-पांच लाख रुपए अनुदान में दिए थे. इसलिए बिल्डिंग्स को सम्मान के तौर पर राज्यों के नाम दिए गए हैं. साल 1950 तक एनडीए का मोटो यानी ध्येय वाक्य इंग्लिश में था और कुछ इस तरह से था, ‘सर्विस बीफोर सेल्फ’. बाद में इसे संस्कृत भाषा में बदल दिया गया और अब ‘सेवा परमो: धर्मा,’ नया ध्येय वाक्य है.
राठौर से लेकर शर्मा तक
विंग कमांडर राकेश शर्मा जो कि चांद पर पहुंचने वाले पहले भारतीय थे, उन्हें एनडीए में ही ट्रेनिंग मिली थी. उन्होंने साल 1966 में एनडीए ज्वॉइन किया था. लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) राज्यवर्धन सिंह राठौर जिन्होंने वर्ष 2004 के ओलंपिक को देश का पहला व्यक्तिगत पदक दिलाया था, इसी एकेडमी के छात्र रहे हैं. राठौर एनडीए के 77वें बैच के कैडेट थे. 11 जनवरी 1949 को 190 कैडेट वाला पहला कोर्स समाप्त हुआ था. इसके बाद अगले कोर्स के लिए 172 कैडेट्स की ट्रेनिंग की शुरुआत आठ दिसंबर 1950 को हुई.
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