भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मंगलवार को देश में वित्तीय समावेशन की सीमा को मापने और सुधारने के लिए एक फाइनेंशियल इंक्लूजन इंडेक्स (Financial Inclusion Index) पेश किया. यह इस साल अप्रैल में पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति में की गई घोषणाओं का हिस्सा था. केंद्रीय बैंक ने कहा, फाइनेंशियल इंक्लूजन इंडेक्स (FI-Index), हर साल जुलाई में प्रकाशित किया जाएगा.
FI-Index को सरकार और संबंधित क्षेत्रीय नियामकों के परामर्श से बैंकिंग, निवेश, बीमा, डाक के साथ-साथ पेंशन सेक्टर के विवरण को शामिल करते हुए एक कॉम्प्रीहेंसिव इंडेक्स के रूप में विकसित किया गया है. मार्च 2021 को समाप्त अवधि के लिए FI-Index 53.9 था, जबकि मार्च 2017 को समाप्त अवधि में यह 43.4 था.
इंडेक्स में तीन पैरामीटर शामिल
FI-Index में तीन व्यापक पैरामीटर शामिल हैं- यूजेज (45 फीसदी), एसेस (35 फीसदी) और क्ववालिटी (20 फीसदी). इनकी गणना कई संकेतकों के आधार पर की जाती है. इंडेक्स सभी 97 इंडिकेटर्स को शामिल करते हुए सेवाओं की पहुंच, उपलब्धता और उपयोग और सेवाओं की गुणवत्ता में आसानी के लिए उत्तरदायी है.
आरबीआई ने कहा, इंडेक्स की एक खास विशेषता क्वालिटी पैरामीटर है जो वित्तीय साक्षरता, कंज्यूमर प्रोटेक्शन और सेवाओं में असमानताओं और कमियों से फाइनेंशियल इन्क्लूजन के गुणवत्ता पहलू का पता लगाती है.
केंद्रीय बैंक ने कहा, एफआई-इंडेक्स का निर्माण बिना किसी आधार वर्ष के किया गया है और इस तरह यह फाइनेंशियल इन्क्लूजन की दिशा में वर्षों से सभी स्टेकहोल्डर्स के प्रयासों को दर्शाता है.
बता दें कि 15 जुलाई 2021 को RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने भारत में फाइनेंशियल इन्क्लूजन के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए तीन चुनौतियों की रूपरेखा तैयार की थी. देश में वित्तीय समावेशन की सीमा को मापने के लिए केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने कहा कि था एफआई इंडेक्स का निर्माण और समय-समय पर प्रकाशित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जनधन योजना के खाते खोलने से लाखों भारतीयों को वित्तीय उत्पादों तक पहुंचने में मदद मिली है. वहीं मांग पक्ष पर उठाए गए कदमों का उद्देश्य जन जागरूकता बढ़ाना है.
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