ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है. भारत में तो यह बहुत की कम हुआ है. एकल स्पर्धा में सिर्फ दो बार. नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) ऐसा करने वाले दूसरे भारतीय हैं. उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक-2020 (Tokyo Olympics-2020) में भालाफेंक में स्वर्ण पदक जीत इतिहास रचा. अपने पहले ही ओलिंपिक मे नीरज ने वो सपना पूरा कर लिया जो अच्छे-अच्छे खिलाड़ी पूरा नहीं कर पाते. नीरज जानते हैं कि इसके क्या मायने हैं लेकिन वो यहीं तक नहीं रुकना चाहते हैं. निश्चित तौर पर वह पेरिस में होने वाले ओलिंपिक खेलों में अपने खिताब का बचाव करना चाहेंगे और इसके लिए उन्हें पता है कि क्या करना है. इसलिए नीरज ने अपना अगला टारगेट सेट कर लिया है. उन्होंने कहा है कि आगामी प्रतियोगिताओं में 90 मीटर भाला फेंकने उनका अगला लक्ष्य है.
ओलिंपिक में भारत के दूसरे व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता नीरज तो शनिवार को ही खेलों के रिकार्ड (90.57 मीटर) को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे लेकिन वह वहां तक नहीं पहुंच पाए. चोपड़ा ने अपने ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद कहा, ‘‘भाला फेंक एक तकनीकी स्पर्धा है और काफी कुछ दिन की फॉर्म पर निर्भर करता है. इसलिए मेरा अगला लक्ष्य 90 मीटर की दूरी तय करना है. मैं इस साल केवल ओलिंपिक पर ध्यान दे रहा था. अब मैंने स्वर्ण पदक जीत लिया है तो मैं भावी प्रतियोगिताओं के लिए योजनाएं बनाऊंगा. भारत लौटने के बाद मैं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए विदेशों के वीजा हासिल करने की कोशिश करूंगा.’’
दबाव नहीं था
चोपड़ा ने 13 जुलाई को गेटशीड डायमंड लीग से हटने के बाद कहा था कि वह ओलिंपिक के बाद इस शीर्ष स्तर की एक दिन की सीरीज के बाकी चरणों में हिस्सा ले सकते हैं. लुसाने (26 अगस्त) और पेरिस (28 अगस्त) के चरणों के अलावा ज्यूरिख में नौ सितंबर को होने वाले फाइनल में भी भाला फेंक की स्पर्धा शामिल है. हरियाणा के पानीपत के खांद्रा गांव के रहने वाले 23 वर्षीय नीरज ने कहा कि वह किसी तरह के दबाव में नहीं थे और वैसा ही काम कर रहे थे जैसा कि अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के दौरान करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘किसी तरह का दबाव नहीं था और मैं इसमें (ओलिंपिक) किसी अन्य प्रतियोगिता की तरह ही भाग ले रहा था. यह ऐसा ही था कि मैं पहले भी इन एथलीटों के खिलाफ भाग ले चुका हूं और चिंता की कोई बात नहीं है. इससे मैं अपने प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित कर पाया. इससे मुझे स्वर्ण पदक जीतने में मदद मिली. हां, मैं यह सोच रहा था कि भारत ने अब तक एक एथलेटिक्स में पदक नहीं जीता है लेकिन एक बार जब मेरे हाथ में भाला आया तो ये चीजें मेरे दिमाग में नहीं आईं. ’’
इन लोगों ने की मदद
चोपड़ा ने ओलिंपिक से पहले तीन अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था लेकिन केवल एक में चोटी के एथलीट शामिल थे. उन्होंने कहा, ‘‘सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मुझे ओलिंपिक से पहले अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका मिला. मैं इसके लिए बेताब था. मैंने टॉप्स, भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) और भारतीय एथलेटिक्स महासंघ (एएफआई) से कुछ प्रतियोगिताओं की व्यवस्था करने के लिए कहा. उन्होंने ऐसा किया जिसकी बदौलत मैं आज यहां हूं. मुझे जो भी सुविधाएं मिली उनके लिए मैं साई, एएफआई और टॉप्स का आभारी हूं. ’’
ऐसे किया कमाल
चोपड़ा से पूछा गया कि वह अपने पहले दो प्रयास में लंबी दूरी तक भाला फेंकने में कैसे सफल रहे, उन्होंने कहा, ‘‘यदि पहला थ्रो अच्छा जाता है तो इससे दबाव समाप्त हो जाता है. ऐसा हुआ. दूसरा थ्रो भी बहुत अच्छा था. दोनों अवसरों पर भाला छोड़ते ही मुझे लग गया था कि यह बहुत दूरी तक जाएगा. इससे दूसरे एथलीटों पर दबाव बन जाता है. ’’
अपने प्रतिद्वंदी वेटर के बारे में कहा ये
जर्मनी के दिग्गज और पदक के दावेदार योहानस वेटर अच्छा नहीं कर सके थे. वेटर पहले तीन प्रयासों के बाद बाहर हो गये थे और कुल नौवें स्थान पर रहे. अपने मित्र और पदक के दावेदार जर्मनी के योहानेस वेटर के बारे में चोपड़ा ने कहा, ‘‘वह संघर्ष कर रहा था. मैं नहीं जानता कि यह दबाव के कारण था या इसकी वजह बहुत अधिक प्रतियोगिताओं में भाग लेना था. वह अपनी लय में नहीं था.’’
सफलता का श्रेय बचपन के कोच को
चोपड़ा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने बचपन के कोच जयवीर चौधरी को भी दिया. वह जयवीर ही थे जिन्होंने उन्हें पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में भाला फेंक से जुड़ने के लिए कहा था. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने जयवीर के साथ शुरुआत की. जब मैं भाला फेंक के बारे में कुछ भी नहीं जानता था तब उन्होंने मेरी बहुत मदद की. वह अब राष्ट्रीय शिविर में प्रशिक्षण दे रहे हैं. वह बेहद समर्पित हैं. जयवीर के साथ अभ्यास करने से मेरे मूल तकनीक में काफी सुधार हुआ. ’’
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