कोरबा/कटघोरा 26 जुलाई (वेदांत समाचार) सुशासन का तात्पर्य होता है कि किसी सामाजिक- राजनैतिक इकाई (जैसे नगर निगम, राज्य सरकार आदि) को इस प्रकार चलाना कि वह वांछित परिणाम दे और जिनमे अच्छा बजट, सही प्रबंधन, कानून का शासन, सदाचार आदि हो। इसके विपरीत पारदर्शिता की कमी या संपूर्ण अभाव, जंगलराज, लोगों की कम भागीदारी, भ्रष्ट्राचार का बोलबाला आदि दुशासन के लक्षण है। शासन शब्द में “सु” उपसर्ग लग जाने से सुशासन शब्द का जन्म होता है। जिसका अर्थ शुभ, अच्छा, मंगलकारी आदि भावों को व्यक्त करने वाला होता है। राजनीतिक और सामाजिक जीवन की भाषा मे सुशासन की तरह लगने वाले कुछ और भी बहुप्रचलित शब्द है जैसे प्रशासन, स्वशासन, अनुशासन आदि। इन सभी शब्दों का संबंध शासन से है। शासन आदिम युग की कबीलाई संस्कृति से लेकर आज तक कि आधुनिक मानव सभ्यता के विकासक्रम में अलग- अलग विशिष्ट रूपों में प्रणाली के तौर पर विकसित और स्थापित होते आई है। इस विकासक्रम में परंपराओं से अर्जित ज्ञान और लोक कल्याण की भावनाओं की अवधारणा प्रबल प्रेरक की भूमिका में रही है। इस प्रकार हम कह सकते है कि सुशासन व्यक्ति को भ्रष्ट्राचार एवं लालफीताशाही से मुक्त कर प्रशासन को स्मार्ट, साधारण, नैतिक, उत्तरदायी, जिम्मेदारी योग्य, पारदर्शी बनाता है। किंतु इसके विपरीत कटघोरा वनमंडल में भ्रष्ट्राचार, कमीशनखोरी, भाई- भतीजावाद, अफसरशाही व प्रभारवाद सर चढ़कर बोल रहा है जहां तानाशाही एवं भर्राशाहीपूर्ण कार्य रवैया और गत संचालित विधानसभा सत्र में अपने कुकृत्य छिपाकर सदन को गुमराह करने का कारनामा तो प्रदेश भर में चर्चित है, इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी कोई परवाह नही कर डिप्टी रेंजरों को बतौर प्रभारी रेंजर बनाकर रेंजों में प्रभार देने का दुस्साहस करते हुए अघोषित पद उन्नति का खुल्ला खेल किया गया है।
कटघोरा वनमंडल अंतर्गत कुल 07 रेंज संचालित है। जिनमे पदस्थ रेंजरों में 02 रेंजर की पदोन्नति हो गई जबकि 02 अन्य रेंजर ने वनमंडल में व्याप्त अफसरशाही व जंगलराज के चलते अपना स्थानांतरण अन्यंत्र करा लिया और इस प्रकार 04 रेंज रेंजर विहीन हो गए। देखा गया है कि वर्तमान कटघोरा, एतमानगर, जटगा व पसान रेंज में डिप्टी रेंजरों को बतौर प्रभारी रेंजर के पद पर पदस्थ कर मनमाने कार्य कराया जा रहा है। वहीं डिप्टी रेंजर भी ऐसे कि जो जिस रेंज में प्रभारी रेंजर बतौर बैठा है वो वहीं बैठा रहना चाहता है। क्योंकि इसके बदले उन्हें ज्यादा कुछ नही करना होता सिर्फ अपने शीर्ष आका को खुश करना होता है। जिसमे प्रभारी रेंजर के रूप में चार्ज लेने के लिए भारी- भरकम चढ़ावा के साथ विभिन्न योजनाओं में स्वीकृत कार्यों पर निश्चित मोटी कमीशन देना होता है। जिसके एवज में अनियमित्तापूर्ण कार्य करने की पूरी छूट मिल जाती है। सूत्रों के अनुसार उक्त 04 रेंज में प्रभारी रेंजर के रूप में पदस्थ डिप्टी रेंजरों द्वारा प्रभारी परिक्षेत्र अधिकारी के सील का उपयोग करने के स्थान पर समस्त विभागीय कार्यों में परिक्षेत्राधिकारी के ही सील का उपयोग किया जा रहा है जो कि रेंजर पद का दुरुपयोग के साथ नियम विरुद्ध भी है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट शब्दों में आदेश है कि किसी भी टैरीटोरियल रेंज (सामान्य वन क्षेत्र) का चार्ज सिर्फ फुल रेंजर को ही सौंपा जाए इसके अलावा वर्ष 2014 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव ने प्रदेश के समस्त विभागों के सचिवों व विभागाध्यक्ष को एक आदेश जारी किया गया था जिसमे स्पष्ट कहा गया था कि किसी भी विभाग में कोई भी कनिष्ठ कर्मी को वरिष्ठ के पद पर ना रखा जाए किंतु कटघोरा वनमंडल में दोनों आदेशों की अवहेलना कर और नियमों को ताक पर रखकर डिप्टी रेंजरों को बतौर प्रभारी रेंजर पदासीन किया गया है। बता दें कि सरकारी संगठनों में डिप्टी रेंजर का पदरूप “सी” स्तर का होता है और उन्हें एसआई (टू स्टार रैक्ड) के समकक्ष माना जाता है तथा उनका कार्य अपने तैनाती क्षेत्र के वनों में पेड़- पौधों, मृदा, नमी, वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अपने सहयोगी कर्मचारियों के साथ काम करना होता है। जबकि रेंज आफिसर (एफ आर ओ) के पद पर तैनात किए जाते है जो कि सर्किल इंस्पेक्टर (थ्री स्टार रैक्ड गजटेड आफिसर) का पद होता है। लेकिन प्रभारवाद नीति के तहत वनमंडल कटघोरा में डिप्टी रेंजरों को फारेस्ट रेंज अफसर के पद पर बिठाने का कार्य किया गया है और मनमर्जी से कार्य कराए जा रहे है जहां मुख्य वन संरक्षक, प्रधान मुख्य वन संरक्षक सहित वन मंत्रालय द्वारा कटघोरा वनमंडल में हावी लालफीताशाही व कुशासन प्रणाली को जानते समझते हुए भी गंधारी की तरह अपनी आंखों में पट्टी बांध, चुप्पी साधे बैठे रहना और भी गंभीर विषय बनकर रह गया है।
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