⭕ इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के विद्यार्थियों ने गुरूओं के सम्मान में प्रस्तुत किए कर्णप्रिय संस्कृत श्लोक, गुरू-वंदना एवं नयनाभिराम नृत्य ।
⭕ नव-प्रवेशी नन्हे मुन्हें बच्चों ने सह अभिभावक आनंद लिया विभिन्न गेम्स का, दिया गुरूओं का सम्मान ।
⭕ आपसे सीखा और जाना, आपको ही गुरू माना, सीखा सब आपसे हमने, कलम का मतलब आपसे जाना-डॉ. संजय गुप्ता ।
⭕ अक्षर ज्ञान ही नहीं, गुरू ने सीखाया जीवन ज्ञान,गुरूमंत्र को कर आत्मसात हो जाओ भवसागर से पार-श्री अविनाश सिंह(थाना प्रभारी दीपका)
⭕ सही क्या है गलत क्या है ये सबक पढ़ाते हैं आप झूठ क्या है सच क्या है ये बात समझाते हैं आप जब सूझता नहीं कुछ भी हमको तब राहों को सरल बनाते हैं आप -श्री शशिभूषण सोनी(तहसीलदार एवं कार्यपालिक दंडाधिकारी दीपका)
गुरू ब्रम्हा, गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरः, गुरू साक्षात् परमब्रम्हा, तस्मै श्री गुरूवै नमः ।।
कोरबा 23 जुलाई (वेदांत समाचार) हमारी धरा को गुरूओं की भूमि कहा गया है । गुरूओं ने अनादिकाल से समाज को एक नई दिशा दी है । गुरूओं ने पूरे विश्व को जीवन जीने का एक नया तरीका सिखाया है । हमारे देश में प्राचीनकाल से ही गुरूओं को सम्मान दिया जाता रहा है जो आज भी और भविष्य में भी अनवरत जारी रहेगा । गुरूओं के एक शब्द से ही किसी का भी जीवन सुधर जाता है । गुरूओं का आशीर्वाद ही शिष्यों के लिए सबसे बड़ा वरदान होता है । जिससे उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों सुधर जाती है । गुरू दो शब्दों से मिलकर बना है गु + रू अर्थात ‘गु’ अर्थात अंधकार और ‘रू’ अर्थात प्रकाश मतलब गुरू वो जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए । हम सभी जानते हैं कि आजकल जो अंधकार है वह बाह्य न होकर आंतरिक है । प्रत्येक इंसान के अंदर की नकारात्मकता जैसे-दुख, अशांति, ईष्या, नफरत, कलह, कलेश यही अंधकार है और गुरू हमें इन्हीं अंधकारों से निकलकर प्रकाश की ओर ले जाते हैं । सच्चे अर्थों में जो हमें संसार की बुराइयों से निकालकर सात्विक व सुंदर जीवनशैली प्रदान करें वही सच्चा सद्गुरू होता है । आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा मनाई जाती है । जो महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास की जन्मतिथि भी है । महर्षि वेद व्यास को आदिगुरू माना गया है । इसलिए उनके जनम की तिथि गुरू पूर्णिमा के तौर पर मनाते हैं । भगवान से भी बड़ा दर्जा गुरू को दिया गया है । गुरू के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है । गुरूओं का ज्ञान व शिक्षा ही जीवन का आधार होता है ।
इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का प्रारंभ आगंतुक मुख्य अतिथियों के स्वागत हेतु तिलक लगाकर सम्मान देकर किया गया तत्पश्चात सप्राचार्य अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का आगाज किया गया । कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम की संचालिका..स्नेहा अग्रवाल ने गुरूओं के महत्व पर प्रकाश डाला एवं कहा कि इस धरती पर यदि हमने अपने जीवन में गुरूओं का सान्निध्य प्राप्त नहीं किया तो हमारा जीवन व्यर्थ है । गुरूओं के सम्मान की परंपरा हमारे देश की पहचान है । गुरूओं ने अपनी आभा से संपूर्ण विश्व को आलोकित किया है । तत्पश्चात इंडस पब्लिक दीपका के विद्यार्थियों द्वारा कर्णप्रिय स्वागत गीत व संस्कृत के श्लोकों का संगीतमय वाचन किया गया । कार्यक्रम की अगली कड़ी में इंडस पब्लिक स्कूल के नृत्य शिक्षक प्रशिक्षक श्री रामयादव एवं मुस्कान ने गुरूओं के सम्मान में नयनाभिराम नृत्य की प्रस्तुति दी । यह कार्यक्रम गुरूओं के सम्मान हेतु आयोजित तो किया ही गया था साथ ही साथ विद्यालय में नवप्रवेशी छात्र-छात्राओं को सहअभिभावक भी विद्यालय में आमंत्रित कर कार्यक्रम का सहभागी बनाया गया । नन्हे-मुन्हें विद्यार्थियों ने भी आकर्षक नृत्य की प्रस्तुति दी । कार्यक्रम में आगंतुक अभिभावकों के लिए भी गेम का आयोजन किया गया जिसका सभी अभिभावकों भरपूर आनंद उठाया ।
गौरतलब है कि गुरू-पूर्णिमा के पावन अवसर पर गुरूओं की महिमा और महत्व पर प्रकाश डालने के लिए विशेषकर प्रजापिता ब्रम्हाकुमारीज के भाई एवं बहन पधारे थे । जिन्होंने बहुत ही सुंदर तरीके से सरल व सधे हुए शब्दों में गुरू के महत्व की व्याख्या की । बहन कुसुम दीदी ने कहा कि बिना गुरू के सानिध्य के इंसान एक अधूरी मूर्ति के समान है । गुरू का ज्ञान शिष्य के जीवन की दशा और दिशा दोनों तय करता है । गुरू को त्यागी और निष्कामी होना चाहिए । गुरू हमारे जीवन से अंधकार को दूर करता है । गुरू वह है जो अज्ञान का निराकरण करता है अथवा गुरू वह है जो धर्म का मार्ग दिखाता है । ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है लेकिन गुरू के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हुआ । गुरू के महत्व को सभी ने स्वीकार किया है ।
अतिथि श्री अविनाश सिंह(थाना प्रभारी दीपका) ने कहा भगवान से भी बड़ा दर्जा गुरू को दिया गया है, गुरू के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है । माता-पिता हमें संस्कार देते हैं, तो गुरू हमें ज्ञान देते हैं । गुरू का ज्ञान एवं शिक्षा ही जीवन का आधार होता है ।
अतिथि श्री शशिभूषण सोनी(तहसीलदार एवं कार्यपालिक दंडाधिकारी दीपका) ने कहा कि एक छात्र जो सीख और ज्ञान प्राप्त कर सकता है वह अक्सर इस बात पर निर्भर करता है कि उसका शिक्षक कितना शिक्षित और धैर्यवान है । गुरू पूर्णिमा के त्यौहार का नाम सूर्य के प्रकाश से पड़ा जो चंन्द्रमा को चमकाता है अर्थात एक छात्र तभी चमक सकता है जब उसे गुरू का प्रकाश मिले । हमें सदैव अपने गुरूओं का सम्मान करना चाहिए ।
विद्यालय के प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरू शब्द ही अपने आप में असीमित व अनंत है । गुरूओं के प्रति प्रत्येक के हृदय में सदा सम्मान का भाव होना चाहिए । जीवन को सही दिशा देकर प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने का माध्यम गुरू ही होते हैं । वे हमें सच्चे अर्थों में जीवन जीना सिखाते हैं । गुरू की भूमिका भारत में केवल आध्यात्म या धार्मिकता तक ही सीमित नहीं रही है, देश में राजनीतिक विपदा आने पर गुरूओं ने देश को उचित सलाह देकर विपदा से उबारा भी है । अर्थात अनादिकाल से गुरू ने शिष्य का हर क्षेत्र में व्यापक एवं समग्रता से मार्गदर्शन किया है । गुरू की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है । हमें ताउम्र गुरूओं के प्रति श्रध्दा व सम्मान का भाव रखना चाहिए । वे हमारे प्रेरणास्त्रोत होते हैं ।
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