उत्तराखंड,18फरवरी 2025: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को एक 23 वर्षीय याचिकाकर्ता जय त्रिपाठी के तर्कों पर सवाल उठाए, जिन्होंने राज्य के हाल ही में लागू किए गए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को चुनौती दी है, जिसे उन्होंने अपनी निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन माना।
याचिकाकर्ता ने लिव-इन रिश्तों के पंजीकरण के लिए UCC के विशिष्ट प्रावधानों को चुनौती दी। इस पर मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर और न्यायमूर्ति अलोक महरा की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “क्या गुप्त है? दोनों एक साथ रह रहे हैं, आपका पड़ोसी जानता है, समाज जानता है, और दुनिया जानती है। तो आप किस गोपनीयता की बात कर रहे हैं? …कौन सी गपशप? क्या आप किसी सुनसान गुफा में गुप्त रूप से रह रहे हैं? आप सभ्य समाज में रह रहे हैं। आप बिना शादी के खुलेआम एक साथ रह रहे हैं। तो फिर क्या गुप्त है? कौन सी निजता भंग हो रही है?”
वकील ने कहा कि एक 23 वर्षीय के रूप में, याचिकाकर्ता अपने लिव-इन रिश्ते की घोषणा नहीं करना चाहता क्योंकि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इस पर कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार लिव-इन रिश्तों को प्रतिबंधित नहीं कर रही है बल्कि उनके पंजीकरण का प्रावधान कर रही है और इससे उन रिश्तों की घोषणा का अर्थ नहीं निकलता।
कोर्ट ने कहा कि निजता के उल्लंघन के दावों को विशिष्ट होना चाहिए और याचिकाकर्ता सामान्य तर्क नहीं दे सकता। कोर्ट ने आगे कहा, “कौन बीच में आ रहा है? आपको समझना होगा कि आप आरोप लगा रहे हैं कि वे आपकी निजता का उल्लंघन कर रहे हैं, आपकी जानकारी प्रकट कर रहे हैं। यदि ऐसा कोई सामग्री है, तो कृपया उसे प्रकट करें। कोई सामान्य दलीलें नहीं। यदि आप आरोप लगाते हैं, तो विशिष्ट हों।”