बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक गर्भवती महिला को अस्थायी जमानत दी, जो एक ड्रग मामले में गिरफ्तार की गई थी. अदालत ने यह फैसला दिया कि जेल में बच्चा पैदा करने से न केवल मां, बल्कि बच्चे पर भी गंभीर असर हो सकता है. न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फलके ने कहा कि जेल के वातावरण में गर्भवती महिला का बच्चे को जन्म देना एक मानवीय दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय है, और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
क्या था मामला?
यह मामला 2024 में हुई एक छापेमारी से जुड़ा है, जब 33.2 किलो गांजा बरामद किया गया था, जिसका मूल्य ₹6.64 लाख था. महिला पर आरोप था कि उसके पास 7.061 किलो गांजा था, जिसे उसने अपनी बैग में छुपा रखा था. उसके पति और अन्य आरोपियों के साथ मिलकर, उसे नशीले पदार्थों के वाणिज्यिक मात्रा को रखने का आरोपी ठहराया गया था.
कानूनी तर्क और जमानत का निर्णय
महिला के वकील ने उसे जमानत देने का अनुरोध करते हुए कहा कि वह गर्भावस्था के अंतिम चरण में हैं और जेल में उसे आवश्यक चिकित्सा देखभाल नहीं मिल पा रही है. वकील ने कहा कि उसका संविधानिक अधिकार है कि उसे सुरक्षित रूप से बच्चे को जन्म देने का अवसर मिले.
वहीं राज्य ने महिला के खिलाफ लगे आरोपों की गंभीरता का हवाला देते हुए जमानत का विरोध किया. राज्य का कहना था कि NDPS एक्ट की धारा 37 के तहत गंभीर अपराध में जमानत केवल तभी दी जा सकती है, जब कोर्ट संतुष्ट हो कि आरोपित निर्दोष हैं और अपराध को फिर से करने का खतरा नहीं है.
हालांकि, कोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखते हुए कि महिला गर्भवती है और जेल में बच्चे को जन्म देना उसकी और बच्चे की सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है, जमानत दी. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि गर्भवती महिलाओं को जेल से बाहर सुरक्षित माहौल में जन्म देने के लिए अस्थायी जमानत दी जा सकती है.
अदालत का आदेश
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 27 नवंबर को आदेश दिया कि महिला को छह महीने के लिए अस्थायी जमानत दी जाए, ताकि वह जेल से बाहर सुरक्षित तरीके से बच्चे को जन्म दे सके. कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच पूरी हो चुकी है और आरोपपत्र भी दायर किया जा चुका है, जिससे किसी भी तरह के सबूतों के साथ छेड़छाड़ का कोई खतरा नहीं है.
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