भ्रष्टाचार का गढ़ बना कटघोरा वनमंडल : घटिया सीमेंट, जंगल के पत्थरों की गिट्टी, नदियों की रेत निकाल कर हो रहा स्टॉप डेमों का निर्माण

कोरबा 12 जून ( वेदांत समाचार ) कटघोरा वनमंडल के जंगलों में कार्य कराए जा रहे हैं। कराए जाने वाले निर्माण कार्यों का कोई माई- बाप नहीं, भ्रष्टाचार हावी है। ठेकेदार जंगल से ही गिट्टी, रेत निकाल कर स्टॉप डेम में खपा दे रहे हैं। ठेकेदार सीमेंट भी घटिया दे रहा,रेत व गिट्टी का पैसा बचा रहा और मजदूरी भी कम दे रहा है तो भला अधिकारियों से सांठगांठ में कोई कसर कैसे छोड़ेगा। अगर अधिकारी और अधीनस्थ जिम्मेदार कर्मचारी बिके नहीं हैं तो ऐसे घटिया कार्यों पर रोक लगाकर ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट/ठेका निरस्तीकरण की कार्यवाही क्यों नहीं करते?

कटघोरा वनमंडल के पाली वनपरिक्षेत्र के जेमरा सर्किल अंतर्गत बगदरा बीट के कोकमा (आराडबरा) नाला में करीब 28 लाख के स्टापडेम का निर्माण कार्य शुरू किया गया है। इस कार्य में अधिकारियों की मिलीभगत से सीमेंट के आपूर्तिकर्ता ठेकेदार द्वारा हाईटेक एवं पॉवर प्लस जैसे बेहद सस्ते सीमेंट की आपूर्ति की गई है। इस तरह के घटिया सीमेंट का निर्माण में किये जा रहे उपयोग से स्टापडेम की मजबूती व पानी को रोके रख पाने पर संदेह उठना जायज है। मौके पर हमने पाया कि बेस कार्य में 40 एमएम क्रशर गिट्टी के स्थान पर समीप से ही पत्थर खोदकर उसे बड़े-बड़े हथौड़ों से तोड़कर गिट्टी का आकार दिया गया और इसी गिट्टी का उपयोग किया जा रहा है जो कि गलत है। उपरोक्त नाला के निर्माण कार्य के लिए बाकायदा गिट्टी की मांग भी जारी हुई है लेकिन ठेकेदार के द्वारा गिट्टी की सप्लाई ना कर जंगल से ही पत्थरों को तोड़कर डाला जा रहा है। स्थानीय बगदरा निवासी मजदूरों के माध्यम से 1 हजार रुपये प्रति ट्रेक्टर की दर से पत्थर तोड़वाने की जानकारी मजदूरों ने दी है। इसी तरह निकटस्थ आराडबरा नाला के ही रेत को जेसीबी के माध्यम से उत्खनन कर कार्य में लगाया जा रहा है।



मजदूरों के खाते में मजदूरी भुगतान के बजाय नगद 200 के हिसाब से किया भुगतान किया जा रहा है जबकि वन विभाग के कार्यो में शासकीय दर 280 रुपये के हिसाब से भुगतान किया जाना निर्धारित है। मजदूरों को च्वाइस दी गई है कि खाता में पैसा लोगे तो 280 रुपये मिलेगा और न जाने कब पैसा आये, न आये और नगद लोगे तो 200 रुपये मिलेंगे। अब मजदूर हालात से वाकिफ हैं इसलिए कम ही सही नगद ले रहे हैं। लाखों के निर्माण कार्य में कहीं पर भी छड़ का उपयोग नजर नहीं आया और ना ही आसपास भंडारण देखने को मिला है।


इस मामले में रेंजर केदार नाथ जोगी की सफाई यह रही कि स्थल पर गुणवत्तापूर्ण कार्य कराया जाएगा। एसीसी और अच्छे क्वालिटी के सीमेंट का उपयोग किया जा रहा है लेकिन जब हाईटेक और सुपर पावर सीमेंट मौजूद होने की जानकारी दी गई तो कहा कि धोखे से आ गया होगा लेकिन अच्छा सीमेंट लगाएंगे। वहीं स्टॉप डेम कार्य के लिए खोदे जा रहे पत्थरों को तोड़कर लगाने के जवाब में कहा कि 65 एमएम एन ब्रोकर का उपयोग का प्रावधान है। अकलतरा से गिट्टी मंगवाई गई है, काम पूरी तरह गुणवत्तापूर्ण होने का उन्होंने दावा किया।


जब हमने इस तरह के कार्यों के जानकारों से जानना चाहा तो बताया कि बेस में 40 एमएम क्रेशर की गिट्टी का ही उपयोग अनिवार्य है। इसके बाद के कार्यों में 20 एमएम की गिट्टी उपयोग होना है। यदि बड़े नाले पर स्टॉप डैम का निर्माण हो रहा हो तो वहां एक दो ट्रैक्टर बड़े पत्थरों की गिट्टी का उपयोग किया जा सकता है लेकिन प्रावधान में कहीं भी नहीं है कि जंगल से पत्थर तोड़ कर गिट्टी लगाया जाए। यह तो अवैध खनन का अपराध भी है जिसके लिए माइनिंग एक्ट और वन अधिनियम के तहत कार्यवाही होनी चाहिए। भला जंगल से पत्थर तोड़ने की जरूरत क्यों जबकि टेंडर गिट्टी आपूर्ति का हुआ है। स्थानीय मजदूरों के बताए अनुसार उपरोक्त स्टॉप डेम के ठेकेदार ने उन्हें 70 ट्रैक्टर गिट्टी तोड़ने के लिए कहा है। प्रति ट्रैक्टर 1000 रुपये की मजदूरी तय की गई है। अब 70 ट्रैक्टर गिट्टी में तो स्टॉप डैम का निर्माण भी पूरा हो जाएगा। हालांकि दिखाने के लिए निर्माण स्थल के निकट लगभग तीन हाईवा गिट्टी अकलतरा से मंगा कर डंप करा दी गई है। अवैध गिट्टी का उपयोग कब और कितना किया जाएगा यह तो ठेकेदार और कार्य की देखरेख करने वाले रेंजर तथा डिप्टी रेंजर ही जानें लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि स्टॉप डेमो के निर्माण में जमकर बंदरबांट और गुणवत्ता हीन कार्य हो रहा है।

इस विषय में ग्राम पंचायत जेमरा के सरपंच भंवर सिंह उइके ने भी कहा है कि कार्य पूरी तरह गुणवत्ता हीन नजर आ रहा है। घटिया से घटिया क्वालिटी के सीमेंट का उपयोग, जंगल का पत्थर और नदी से निकाली गई रेत उपयोग की जा रही है जिससे कार्य कितना टिकाऊ हो पाएगा यह संदेहास्पद है। जंगल में पानी रोकने के लिए बनाया जा रहा स्टॉप डेम ज्यादा समय तक लाभ नहीं दे पाता और बरसात में बह जाता है। इसका लाभ ना तो जंगल के आसपास रहने वाले किसानों को और ना ही गर्मी के मौसम में जानवरों को मिल पाता है। यही कारण है कि पानी के अभाव में जंगली जानवर इधर-उधर भटक कर शहर और गांव में पहुंच जाते हैं। सरपंच ने इस तरह के कार्यों पर रोक लगाने, ठेकेदार पर कार्यवाही और जिम्मेदार अधिकारियों पर भी सख्ती की अपेक्षा जाहिर की है।

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