पुण्यतिथि पर याद किये गए आदिवासियों के मसीहा बिरसा मुंडा

युसुफ खांन

गौरेला पेण्ड्रा मरवाही:- आदिवासियों के मसीहा लोकनायक अमर शहीद बिरसा मुंडा जी की पुण्यतिथि पर वनवासी विकास समिति के तत्वाधान में स्थानीय लोगों ने ग्राम विशेषरा में शिव मंदिर में हवन पूजन किया और आदिवासी संस्कृति के रक्षक जनजाति गौरव के प्रति उनके कार्यों को याद करते हुए दीप प्रज्ज्वलित कर आरती पूजन किया गया व शिव मंदिर प्रांगण में हवन कर कोरोना महामारी से राष्ट्र की सुरक्षा की कामना की गई इस बीच भगवान बिरसा मुंडा को याद कर श्रद्धांजलि पुष्प अर्पित किया गया।


आदिवासी समाज के प्रमुख पूर्व सरपंच मूलचन्द कुशराम ने इस अवसर पर समाज के सभी लोगों का अभिनन्दन किया एवं आदिवासी समाज की ओर से माटीपुत्र भगवान बिरसा मुंडा को यादकर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि प्रदान की गई इस बीच समाज के लोगों ने भी बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर यादकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी
इस अवसर पर अन्य समाज के प्रमुखों द्वारा शिवमन्दिर में पूजन हवन कर लोगों को समरसता, प्रेमभावना का सन्देश दिया गया तथा हिन्दू धर्म की मान्यता अनुसार भगवान के प्रति अपनी आस्था प्रकट की और आदिवासी समाज के मसीहा क्रांतिकारी लोकनायक बिरसा मुंडा के आदर्शों और कार्यों को संस्कृति के संवाहक व संरक्षक के रूप में श्रेष्ठतम कार्य बताया गया।


इस अवसर पर जिला भाजपा मंत्री केशव पाण्डेय ने कहा कि आदिवासी समाज का सच्चा माटीपुत्र संस्कृति का संरक्षक बिरसा मुंडा ने लोगों को हिन्दू धर्म के सिद्धांतों को समझाया और गौ हत्या का विरोध कर अन्याय के विरुद्ध लड़ने की प्रेरणा दी आज हमारी आस्था गाय के प्रति समर्पित है हम गौमाता की पूजा करते हैं।समाज व राष्ट्र के प्रति क्रन्तिकारी बिरसा मुंडा जी ने अपनी चेतना से अंग्रेजो को भी लोहा मनवाया था मिशनरियों के प्रति बिरसा मुंडा जी ने जनजाति समाज को जागृत किया व धर्मान्तरण के खेल को बंद कराने हेतु मोर्चा खोला था।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भूपेंद्र राठौर ने कहा आदिवासी समाज के लोग बिरसा मुंडा को भगवान के बिरसा मुंडा के रूप में पूजा करती है।वीर क्रांतिकारी आदिवासी संस्कृति के संरक्षक हैं इसके साथ ही हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कृत संकल्पित थे।इनका जन्म रांची जिले के उलिहतु गाँव में 15 नवम्बर 1875 को बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था मुंडा रीति रिवाज के अनुसार बृहस्पति वार के दिन जन्म होने से नाम बिरसा पड़ा बचपन से ही इन्होंने संघर्ष किया और किसानों का शोषण करने वाले जमींदारों के खिलाफ इन्होंने मोर्चा लेकर संघर्ष किया। आदिवासी समाज के लोगों को धर्मान्तरण कराये जाने पर पुरजोर विरोध किया और हिन्दू धर्म के सिद्धांतों का पाठ पढ़ाया।अंग्रेजी हुकूमत अन्याय के विरुद्ध इन्होंने ब्रिटिश सरकार से मोर्चा लेकर आदिवासी समाज के लोगों को जगाने का कार्य किया इस बीच जेल की यातनाएं भी सहनी पड़ी और आज के ही दिन सच्चे आदिवासी पुत्र बिरसा मुंडा 09 जून को जेल में रहकर ही अंतिम सांस ली आज क्रांतिकारी वीर पुरुष आदिवासियों के मसीहा बिरसा मुंडा इस धरातल पर न रहकर भी लोगों के दिलों में जीवन्त हैं अमर हैं।


इस अवसर पर ग्राम के वरिष्ठ पूर्व सरपंच मूलचन्द कुशराम, नकुलजी, बलराम तिवारी,नरसिंह जी,केशव पाण्डेय, भूपेन्द्र राठौर,जनार्दन श्रीवास,अनिल उदय, संजय,उपेन्द्र कुशराम सहित ग्रामीणजन उपस्थित रहे।