विष्णु नागर के तीन व्यंग्य

1. धर्मा जी और मंत्री जी

यह तब की बात है, जब धर्मा जी घर में शर्ट में पजामा खोंसे रहते थे और बाहर जाते थे तो पैंट- शर्ट पहन लेते थे। तब तक वे आगे बढ़ते-बढ़ते अखबार के सहायक संपादक पद पर पहुंच चुके थे। उनकी कलम में इतनी धार आ चुकी थी कि उनके लेखों से प्रभावित होकर एक मंत्री जी ने उन्हें अपने दफ्तर में सलाह-मशविरे करने के लिए ठीक ग्यारह बजे बुला लिया था। मंत्री जी और सलाह मांगे, तो धर्मा जी गदगद भाव से दस बजकर पैंतालीस मिनट पर ही तिपहिया से वहां पहुंच गए, जबकि उन दिनों वह अमूमन कहीं भी बस से ही आया-जाया करते थे। तिपहिया पर चलने को वह अय्याशी मानते थे।

वह पहुंचे, तो पता चला कि मंत्री जी आए नहीं हैं और कब आएंगे या नहीं आएंगे, इसका भी किसी को पता नहीं है। बताया गया कि आपका नाम आज के एप्वाइंटमेंट की लिस्ट में नहीं है, मगर आप कहते हैं कि आपको बुलाया है, तो बाहर बैठ जाइए। बता देंगे मंत्री जी को।

सलाह लेने के लिए मंत्री जी ने बुलाया है, तो धर्मा जी, जो छोटी से छोटी बातों से आहत हो जाया करते थे, चुपचाप बैठ गए। आधे घंटे बाद मंत्री जी अलग दरवाजे से आए। उनके चपरासी से धर्मा जी ने निवेदन किया कि सर को बता दो कि हम आए हुए हैं। मंत्री जी ने संदेश भिजवाया, उनसे कहो, अभी बुलवाते हैं। तब तक चाय पिएं। धर्मा जी चाय पीने लगे।वे चाय के साथ बिस्कुट भी चाहते थे, मगर मंत्री के चपरासी से यह कहने का साहस नहीं कर पाए। उन्हें लगा कि मंत्री जी का चपरासी है, डांट देगा कि यहां चाय के साथ बिस्कुट नहीं मिलता!

पहले मंत्री जी ने दो सेठों और अफसरनुमा आदमी को अंदर बुलवाया। उनके साथ चाय-नाश्ता किया। खूब गप्पें लड़ाईं। मंत्री जी इतने विनम्र हो गए कि उन्हें अपने कक्ष के दरवाजे तक छोड़ने आए। तब डेढ़ घंटे बाद धर्मा जी को अंदर बुलवाया। धर्मा जी को संतोष हुआ कि दस लोग अभी इंतजार में हैं और देखिए, मुझे बुला लिया है। कमीज़ का कालर ठीक करते हुए वह अंदर की ओर बढ़े।

अंदर कुर्सी पर साधिकार बैठने लगे, तो मंत्री जी ने इशारे से कहा कि आप अभी खड़े रहें। उधर घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया। उसे डांटा कि तुमने धर्मा जी की जगह कहीं वर्मा जी को तो नहीं भेज दिया है? ये धर्मा जी नहीं हो सकते। ये धर्मा जी हुए होते, तो पजामे में कमीज़ खोंसकर यहां नहीं आते, पैंट -कमीज़ में आते। उन्होंने धर्मा जी को इशारा किया कि आप चपरासी के साथ बाहर चले जाएं। धर्मा जी इतने शर्मिंदा हुए कि कुछ बोल नहीं पाए। बाइज्जत बाहर चले आए और प्रस्थान करने के लिए पूर्व दिशा में बढ़ने लगे।

अब उन्हें समझ में आया कि वाकई वह यहां भी कमीज़ में पजामा खोंसकर चले आए हैं, जबकि यह जीवन का इतना अधिक महत्वपूर्ण अवसर था कि पहली बार किसी मंत्री ने उन्हें इतना योग्य समझा था कि सलाह-मशविरे के लिए बुलाया था। उन्हें याद आया कि यहां से वहां तक सब उन्हें देखकर शायद इसीलिए मुस्कुरा रहे थे। फिर यह भी याद आया कि उन्होंने चलते समय पैंट तो पहनी थी। फिर यह पजामा कहां से आ गया?

ध्यान से अपने को देखा, तो धर्मा जी को समझ में आया कि उन्होंने पैंट के ऊपर ही पजामा चढ़ाया हुआ है। खैर वह वहीं बाथरूम में गए। पजामा खोला। पैंट-शर्ट में फिर से मंत्री जी के यहां हाजिर हुए। सूचना दी कि असली धर्मा जी आ गए हैं। चपरासी ने आनाकानी की, तो पीए के पास पहुंचे। किसी तरह पीए माना कि अंदर साहब को संदेश दे दो।

लेकिन मंत्री जी का तब तक धर्मा जी से मोहभंग हो चुका था। उन्होंने कहा कि उनसे कहो, आज समय नहीं है, फिर कभी समय हुआ, तो बुलाएंगे। तब से आज का दिन है, वह सुबह दस बजे पैंट-शर्ट पहनकर तैयार होकर बैठे जाते हैं और बुलावे का इंतजार करते हैं। न उन मंत्री जी ने धर्मा जी को आज तक बुलाया है और न किसी और मंत्री जी ने उन्हें आमंत्रित किया है, जबकि धर्मा जी के पास हर मंत्री को देने के लिए इतनी सारी सलाहें हैं कि सरकार आज उन्हें लागू कर दे, तो कल ही देश की आधी समस्याएं हल हो जाएं और परसों तक देश पूरी तरह समस्या रहित हो जाए!


2. अधूरी रामलीला

पाखंड करने में तो आम आदमी पार्टी भी भाजपा से कम नहीं है। दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी मुख्यमंत्री की उस कुर्सी पर नहीं बैठ रही हैं, जिस पर अरविंद केजरीवाल बैठा करते थे, मगर वह कुर्सी उन्होंने अपनी कुर्सी के पास ही रख छोड़ी है। वह इतनी बार इतने कम समय में केजरीवाल के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन कर चुकी हैं कि ऊब होने लगी है। वह कहती हैं कि जैसे भरत ने राम के वनवास के दौरान उनकी गद्दी पर खड़ाऊं राज चलाया था, उसी तरह मैं भी चार महीने यह कुर्सी संभाल रही हूं।भरत ने तो जो भी राज चलाया होगा, अपनी समझ से चलाया होगा, क्योंकि तब न तो मोबाइल फोन थे, न टेलीफोन और न हर दिन वन में जाकर राम से सलाह लेना मुमकिन था, मगर हमारी मुख्यमंत्री तो लगता है अपना दिमाग इस्तेमाल करेंगी नहीं, जबकि वह खासी पढ़ी-लिखी हैं और उन्हें प्रशासनिक अनुभव भी है।

आज ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने राम-राम भजनेवाली इस पार्टी पर दिलचस्प स्टोरी की है। सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ यह पार्टी करवाती रही है। केजरीवाल जी सब काम छोड़कर कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर जरूर जाते हैं। तिहाड़ से छूटने के बाद भी वहां गए थे।

कल जंतर-मंतर पर आयोजित जनता की अदालत में तिहाड़ जेल में केजरीवाल के गिरफ्तार रहने की तुलना राम के वनवास से की गई थी। केजरीवाल ने पिछले सप्ताह अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए इसे अग्निपरीक्षा से गुजरना बताया था। मनीष सिसोदिया अपने को राम रूपी केजरीवाल का लक्ष्मण बताया है। पिछले बजट के समय आतिशी ने अपने 90 मिनट के बजट भाषण में चालीस बार राम और रामराज्य का उल्लेख किया था। लोकसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल रामराज्य में अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करते रहे हैं। दो साल पहले दिल्ली नगर निगम के चुनाव के समय त्यागराज स्टेडियम में राम की प्रतिकृति प्रदर्शित की गई थी। भाजपा से लड़ने की कुल यह इनकी रणनीति है। दिल्ली दंगों के समय इसने मुसलमानों से दूरी बनाकर रखी थी।

तो आम आदमी पार्टी में राम हैं, लक्ष्मण हैं,भरत हैं, मगर सीता और शत्रुघ्न का अभाव है। इनका इंतजाम भी जल्दी करना चाहिए। सौभाग्य से रावण हैं मगर दुर्भाग्य से विभीषण, मेघनाद आदि नहीं हैं। यह रामलीला अधूरी है।

और ये अगल-बगल बाबा साहेब और भगतसिंह की फोटो क्यों लगा रखी है? रामलीला में इनका क्या काम?राम भी चाहिए, भगतसिंह और अंबेडकर भी! वाह क्या कहने!


3. झूठ के बिना अपना देश अपना नहीं लगता !

सोशल मीडिया पर पढ़ा कि प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि न तो मैं झूठ बोलता हूं, न मेरी पार्टी के लोग झूठ बोलते हैं। यह तो बहुत ही अच्छी खबर है, बल्कि पिछले एक दशक की सबसे धमाकेदार खबर है। इसे तो ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दैनिक भास्कर ‘ सहित सभी समाचार पत्रों को उस दिन की लीड खबर बनाना चाहिए था। बेईमानी की गई, नहीं बनाया गया। मैं इसकी घोर निंदा करता हूं। अगर मैं संयोग या दुर्योग से आज कहीं संपादक हुआ होता और संपादक न सही, चीफ सब एडिटर भी हुआ होता, तो मेरे परिवार जनों, चाहे सुनामी आ जाती, चाहे भूकंप में हजारों लोग मारे जाते, मगर लीड खबर मैं इसे ही बनाता। अब अखबार छपते हैं‌, मगर संपादकों को लीड खबर की समझ नहीं रही। हर दिन प्रधानमंत्री जी का हर सड़ा-गला भाषण फ्रंट पेज पर छापते हैं, मगर इतनी बड़ी बात उन्होंने कही, इतनी बड़ी खबर उन्होंने दी और उसे ऐसे पी गए, जैसे खबर न हो, दारू का पैग हो!

मुझे तो गहरा संदेह है कि सोशल मीडिया पर भी प्रधानमंत्री जी के इस कथन को किसी नेक इरादे से प्रचारित नहीं किया गया, बल्कि उनकी हंसी उड़ाने के ‘अपवित्र उद्देश्य’ से, प्रधानमंत्री जी को ‘झूठों का मसीहा’ साबित करने के लिए किया गया है, जो कि अटल जी के शब्दों में कहूं, तो अच्छी बात नहीं है।

प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं, तो निश्चय ही सच कह रहे होंगे, क्योंकि उनकी छवि वैसे भी हमेशा से ‘सत्य वक्ता’ की रही है। इस छवि में सेंध लगाने की बहुत कोशिश की गई, मगर किसी को सफलता नहीं मिली। वे गांधी जी के प्रदेश गुजरात से आते हैं, जहां वे 2002 से ही झूठ बोलना पाप घोषित कर चुके हैं। उन्होंने तब से झूठ बोलना छोड़ा, तो आज तक छोड़ रखा है, इसीलिए तो वे यह कहने का ‘साहस’ कर सके कि न तो मैं झूठ बोलता हूं, न मेरी पार्टी के लोग झूठ बोलते हैं! उन्हें यह सफाई देनी पड़ी, यह हमारे लिए शर्मिंदगी की बात है। नहीं प्रधानमंत्री जी, मुझे पूरा विश्वास है कि आप सच बोलते हैं और सच के सिवा भी सच ही बोलते हैं।

वैसे भी आपके पास, आपकी पार्टी के पास आज सत्ता है, आपको झूठ बोलने की जरूरत भी क्या? झूठ तो विपक्ष के लोग बोलते हैं, जिनके पास आपको पता है, ‘झूठ की मशीन’ है। यह आपकी ‘महानता’ है कि उसे आज तक आपने जब्त नहीं करवाया। उनके पास रहने दिया कि बोलो जितना झूठ बोल सकते हो, बोलो। झूठ बोलो, झूठ बोलो, झूठ बोलो। जीत तो अंततः ‘सत्य’ की होगी और गोदी मीडिया सच ही बताता है, सच आपके साथ है। सच हमेशा सत्ता के साथ होता है। वैसे भी आप चाल, चरित्र, माशाअल्लाह आपका चेहरा वाले लोग हैं और क्या ही खूब चेहरा पाया है आपने वरना आपके लिए क्या मुश्किल था! फ़ौरन मशीन जब्त करवाते और एके-47 की तरह आप खुद धड़ -धड़ आप खुद झूठ बोलना शुरू कर देते, मगर आपने ऐसा नहीं किया। सच्चरित्र जो हैं आप!

मगर प्रधानमंत्री कितना ही सच्चरित्र हो, कितना ही सत्यवादी हो, उसे आज अगर देश चलाना है, तो झूठ बोलने का दायित्व भी सबसे अधिक उसे ही निभाना पड़ेगा। केवल सच बोलना खतरनाक है। यह देश हित और हिंदुत्व के हित में नहीं है, इसे प्रधानमंत्री जी आपसे बेहतर कौन जानता है! अच्छा होता, आप स्पष्ट रूप से कह देते कि वैसे तो मैं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र और महात्मा गांधी की परंपरा का हूं, मगर देशहित में झूठ बोलना पड़ा तो एक बार क्या, सौ बार और हज़ार बार भी बोलूंगा! उत्तर प्रदेश में बोलूंगा, महाराष्ट्र में बोलूंगा, अमेरिका हो या जापान, हर जगह, हर दिन झूठ बोलूंगा और झूठ के अलावा भी झूठ ही बोलूंगा। देश से बड़ा मेरे लिए कुछ नहीं है।

जनता ने तीसरी बार यह सोच कर आपको देश की बागडोर सौंपी है कि यही एक आदमी है, जो झूठ बोलने सहित सभी जिम्मेदारियां संभालने में पूर्णतया सक्षम है, इसलिए आप कृपया झूठ बोलें और बार -बार बोलें। जनता का भरोसा मुश्किल से हासिल होता है, उसे टूटने न दें। जयश्री राम कहने का मौसम चला जाए, तो जय जगन्नाथ कहने में संकोच न करें! झूठ बोलें और अपनी पार्टी के लोगों को भी इसकी इजाज़त दें। झूठ की हमें ऐसी बुरी आदत पड़ चुकी है महोदय कि इसके बगैर अपना देश, अपना देश नहीं लगता!

(कई सम्मानों से सम्मानित विष्णु नागर व्यंग्यकार, पत्रकार, कवि और कहानीकार हैं। संपर्क : 98108-92198)