पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई नाबालिग जो “विवेक की उम्र” में है, स्वेच्छा से किसी के साथ अपने माता-पिता का घर छोड़ देती है, तो उस पर अपहरण के अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. जस्टिस मनीषा बत्रा की हाईकोर्ट बेंच ने एक आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की. आरोपी पर फतेहगढ़ साहिब पुलिस ने कथित तौर पर 17 वर्षीय लड़की का अपहरण करने और उसे शादी करने के लिए मजबूर करने का मामला दर्ज किया था.
आरोपी ने अपने बचाव में अदालत से कहा कि उसे झूठा फंसाया गया है. उसने यह भी कहा कि वह लड़की के साथ रिश्ते में था और वे एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन उसके परिवार वाले इसके खिलाफ थे.
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आरोपी को राहत देते हुए कोर्ट ने तर्क दिया कि चूंकि लड़की 17 साल और 4 महीने की थी, इसलिए वह विवेक की उम्र में थी और वयस्क होने के कगार पर थी. अदालत ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित कानून है कि नाबालिग को उसकी कानूनी संरक्षकता से “लेने” का सवाल सभी परिस्थितियों के संदर्भ में तय किया जाना चाहिए, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या लड़की अपने बारे में सोचने और खुद के मन के निर्णय लेने के लिए पर्याप्त परिपक्व और बौद्धिक क्षमता वाली थी.
कोर्ट ने आगे कहा गया कि जब लड़की स्वेच्छा से अभिभावक या पिता का घर छोड़ देती है और आरोपी के साथ जाती है, तो उसके कृत्य को केवल “अभियोक्ता की इच्छा की पूर्ति को सुविधाजनक बनाने वाला” माना जा सकता है. जस्टिस बत्रा ने कहा, “यह अभियोजक को उसके कानूनी अभिभावक के संरक्षण से बाहर निकलने के लिए एक प्रलोभन से कम है और यह आईपीसी की धारा 361 के तहत अपहरण की परिभाषा के तहत “लेने” के समान नहीं है.”
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