नई दिल्ली,25फ़रवरी2025: सृष्टि को सर्वनाश से बचाने के लिए भोले भंडारी ने वो किया जो सिर्फ उनके बूते की बात थी। भगवान हलाहल पी गए। विष के असर को कम करने के लिए देवताओं ने उनके सिर पर भांग, धतूरा, बेलपत्र रख दिया। इससे विष का असर कम हो गया और भोले बाबा को शीतलता मिली। माना जाता है तभी इन्हें शिवलिंग पर अर्पित किया जाने लगा। चाहे वो सावन का सोमवार हो या फिर विवाह पर्व महाशिवरात्रि। भगवान को अर्पित किए जाने वाले हर प्राकृतिक फल-फूल के पीछे जीवनोपयोगी संदेश छिपा है! संदेश जिसमें मानव कल्याण का मर्म छिपा है।
भगवान शिव को भांग, धतूरा, आक, और बेलपत्र अर्पित करने के पीछे भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। शिव महापुराण के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो उसमें से पहले हलाहल विष निकला। यह विष इतना जहरीला था कि इसकी गर्मी से पूरी सृष्टि जलने लगी थी। देवता और असुर इस विष से भयभीत हो गए और इसका नाश करने का कोई उपाय नहीं दिखा। तब भगवान शिव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए इस विष का पान कर लिया। हालांकि, उन्होंने इसे अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीलवर्ण हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष के प्रभाव को संतुलित करने के लिए शिव को ठंडी चीजें पसंद आईं, जिनमें भांग, धतूरा, आक और बेलपत्र प्रमुख हैं। ये सभी चीजें शीतलता प्रदान करती हैं और इसी कारण शिवलिंग पर इन्हें अर्पित किया जाता है।
ये तो हुई भगवान को चढ़ाए जाने वाले फल-फूल की बात, लेकिन उनके सारथी, उनका अपने रूप में भी खास संदेश समाहित है। नंदी भगवान शिव के वाहन के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उनका महत्व केवल एक वाहन तक सीमित नहीं है। नंदी प्रतीक्षा, भक्ति, धर्म और शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं। शिव मंदिरों में अक्सर नंदी की प्रतिमा शिवलिंग के सामने स्थापित की जाती है, जिससे यह संदेश मिलता है कि हमें धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए और ईश्वर की आराधना में समर्पित रहना चाहिए। नंदी की तरह ही हमें अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार और सतर्क रहना चाहिए।
भांग और धतूरा भगवान शिव को चढ़ाने के पीछे एक और गहरा अर्थ छिपा हुआ है। ये दोनों वस्तुएं सामान्यतः नशीली और जहरीली मानी जाती हैं, लेकिन इन्हें शिव को अर्पित करने का तात्पर्य यह है कि हमें अपने जीवन की सारी नकारात्मकता, बुरी आदतें और कड़वाहट को शिव को समर्पित कर देना चाहिए। इसका प्रतीकात्मक अर्थ है कि हमें अपनी सभी बुरी भावनाओं और नकारात्मक विचारों का त्याग कर अपने जीवन को शुद्ध और शांत बनाना चाहिए। भांग और धतूरा शिव के प्रति हमारी समर्पण भावना और बुराइयों से मुक्ति का संकेत देते हैं।
भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी कहा जाता है, क्योंकि उनके तीन नेत्र हैं। यह तीसरा नेत्र सिर्फ एक शारीरिक विशेषता नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिकता का प्रतीक है। शिव का तीसरा नेत्र जागरूकता, ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। यह यह भी दर्शाता है कि मनुष्य को केवल बाहरी दुनिया ही नहीं, बल्कि अपने भीतर भी झांकना चाहिए और आत्मज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। कहा जाता है कि जब शिव क्रोधित होते हैं, तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है और संहार कर देता है। इसका गहरा अर्थ यह है कि जब ज्ञान और विवेक जागृत हो जाता है, तो अज्ञानता और बुराई का नाश हो जाता है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानना चाहिए और आत्मबोध के मार्ग पर चलना चाहिए।