एमसीबी/24 फरवरी 2025/ भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में कर प्रणाली की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसमें केंद्रीय उत्पाद शुल्क एक ऐसा कर है, जो देश में निर्मित वस्तुओं पर लगाया जाता है। यह कर सरकार के राजस्व का एक बड़ा स्रोत है और औद्योगिक विकास में सहायक होता है। यह अप्रत्यक्ष कर है, जिसका भार अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ता है। सरकार इस कर से प्राप्त राजस्व का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास, सामाजिक कल्याण योजनाओं और अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए करती है। यह घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा प्रदान करता है और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं को मजबूती देता है।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क का इतिहास ब्रिटिश शासन से जुड़ा हुआ है। अंग्रेजों ने इसे प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने के लिए लागू किया था। स्वतंत्रता के बाद भी इसे जारी रखा गया और समय-समय पर इसमें सुधार किए गए। 1944 में भारतीय केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम लागू किया गया, जिसने कर प्रणाली को अधिक संगठित और प्रभावी बनाया। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के दौरान सरकार ने कर दरों को औद्योगिक विकास के लिए तर्कसंगत बनाया। 2017 में जब वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू हुआ, तब अधिकांश उत्पाद शुल्क समाप्त कर दिया गया।
हालांकि, पेट्रोल, डीजल, तंबाकू और शराब जैसी वस्तुओं पर यह आज भी लागू है। वर्ष 2024 में भारत ने जीएसटी संग्रह में कई रिकॉर्ड बनाए, जिससे सरकार की वित्तीय स्थिति मजबूत हुई। अप्रैल 2024 में पहली बार जीएसटी संग्रह 2.10 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंचा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 12.4% अधिक था। अगस्त 2024 में यह 1.75 लाख करोड़ रुपये रहा, जो घरेलू राजस्व और आयात में बढ़ोतरी के कारण 10% की वृद्धि को दर्शाता है।
अक्टूबर 2024 में जीएसटी संग्रह 1.87 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो सालाना आधार पर 8.9% की वृद्धि है। यह भारत के अब तक के दूसरे सबसे ऊंचे जीएसटी संग्रह के रूप में दर्ज किया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह वृद्धि देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी, कर चोरी पर नियंत्रण और डिजिटल कर प्रणाली को अपनाने का परिणाम है। वित्त मंत्रालय के अनुसार, जीएसटी राजस्व में यह बढ़ोतरी आर्थिक सुधारों और व्यापार में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में सरकार के प्रयासों का संकेत देती है। सरकार के डिजिटल मॉनिटरिंग और ई-वे बिल प्रणाली को सख्ती से लागू करने से कर संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
जीएसटी लागू होने के बाद उत्पाद शुल्क की भूमिका सीमित हो गई है। वर्तमान में यह कुछ ही उत्पादों पर लागू है, लेकिन ये सरकार के राजस्व का बड़ा स्रोत बने हुए हैं। पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले उत्पाद शुल्क से सरकार को भारी राजस्व प्राप्त होता है, लेकिन इसकी वजह से ईंधन की कीमतें भी बढ़ती हैं, जिससे महंगाई पर असर पड़ता है। इसी तरह, तंबाकू और शराब पर उच्च कर लगाने से सरकार को लाभ होता है, लेकिन इससे जुड़े उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
राज्यों और केंद्र सरकार के बीच उत्पाद शुल्क और जीएसटी को लेकर सामंजस्य की कमी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। कई राज्य सरकारें पेट्रोल, डीजल और शराब को जीएसटी के अंतर्गत लाने के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि इससे उन्हें होने वाली आय प्रभावित हो सकती है। इसके कारण कर संरचना में असमानता बनी रहती है। इसके समाधान के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है, ताकि एक संतुलित कर प्रणाली बनाई जा सके। केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस का उद्देश्य करदाताओं और कर अधिकारियों को जागरूक करना, कर अनुपालन को बढ़ावा देना और कर प्रशासन में पारदर्शिता लाना है। इस अवसर पर सरकार विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करती है, जैसे कि सेमिनार, कार्यशालाएँ और जागरूकता अभियान। कर प्रणाली को अधिक कुशल और जनता के लिए सुविधाजनक बनाने के लिए नई योजनाओं की घोषणा भी की जाती है। सरकार ने हाल के वर्षों में डिजिटलीकरण के माध्यम से कर प्रशासन को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने की दिशा में कई सुधार किए हैं। ऑनलाइन कर भुगतान और ई-फाइलिंग जैसी सुविधाओं से करदाता आसानी से अपने कर दायित्वों को पूरा कर सकते हैं।
तकनीकी निगरानी और डिजिटल ट्रैकिंग से कर चोरी को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे राजस्व की हानि को कम किया जा सके। इसके अलावा, छोटे और मध्यम उद्योगों को करों में राहत देने की जरूरत है, ताकि वे प्रतिस्पर्धा में बने रह सकें और देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकें। केंद्रीय उत्पाद शुल्क न केवल सरकार के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है, बल्कि यह आर्थिक स्थिरता और औद्योगिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि जीएसटी लागू होने के बाद इसकी भूमिका सीमित हो गई है, लेकिन यह अब भी कुछ महत्वपूर्ण उत्पादों पर लागू होता है।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस हमें याद दिलाता है कि कर प्रणाली को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाए रखना सरकार और नागरिकों दोनों की जिम्मेदारी है। यदि कर प्रणाली को सुव्यवस्थित रखा जाए, तो यह देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। इस अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम कर नियमों का पालन करेंगे, कर प्रणाली को पारदर्शी बनाए रखने के लिए सरकार के प्रयासों का समर्थन करेंगे और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाएंगे। कर अनुपालन को बढ़ावा देकर और कर प्रणाली को सरल बनाकर हम एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।