Asthma in Monsoon: बारिश हल्की हो या तेज अस्थमा के मरीजों के लिए यह परेशानी ही लेकर आती है। कई जगहों पर अभी भी हल्की-फुल्की बारिश हो ही रही है, जिस वजह से अस्पतालों में अस्थमा के मरीजों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। मॉनसून के दौरान सांस फूलने, गले में खराश और अस्थमा अटैक का खतरा अक्सर बढ़ जाता है। इस विषय में किए गए अध्ययनों में आंधी-तूफान और अस्थमा के बीच सीधा संबंध देखा गया है, जिससे ‘‘थंडरस्टॉर्म अस्थमा’’ शब्द का जन्म हुआ। इस मौसम में सांस से जुड़ी किसी भी समस्या से बचे रहने के लिए अस्थमा के ट्रिगर्स को समझना और इसे कंट्रोल करने के उपायों पर गौर करना बेहद जरूरी है।
मॉनसून के मौसम से जुड़े कुछ खास तरह के एलर्जन होते हैं, जो अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा सकते हैं। इनमें शामिल हैं –
– ठंडी हवा, जिससे शरीर के तापमान में कमी आती है, और सांस की नलियों में हिस्टेमाईन निकलता है, जो खराश और अस्थमा के लक्षणों को बढ़ाता है।
– मॉनसून के दौरान हवा में पोलन की मौजूदगी बढ़ जाती है।
– लगातार बारिश और धूप की कमी की वजह से वातावरण में नमी बढ़ जाती है। नमी फंगस और एल्गी को बढ़ने के लिए अनुकूल माहौल देती है। जिसके चलते अस्थमा के साथ ही अन्य दूसरी सांस संबंधी बीमारियां भी बढ़ने लगती हैं।
डॉ. पराग खटावकर, कंसल्टिंग चेस्ट फिजिशियन, पुणे ने बताया कि, बारिश के मौसम में अस्थमा को कंट्रोल करन के लिए कुछ उपायों पर ध्यान देना जरूरी है जिससे इसके संभावित ट्रिगर्स को कम करने में मदद मिलती है।
• इनडोर स्पेसेज़ को खुला और हवादार रखें, जिससे इन जगहों पर नमी भी न बढ़ने पाएं। इससे मोल्ड और फफूंद को बढ़ने से रोका जा सकता है।
• डस्ट माईट्स से बचे रहने के लिए नियमित तौर से वैक्यूम क्लीनर से सफाई करें।
• मॉनसून में वायरल बुखार तेजी से फैलते हैं। इसके लिए हाथ धोते रहें, बीमार व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।
• हवा की क्वालिटी देखते रहें और बहुत ज्यादा पॉल्यूशन वाले इलाकों में जाने से बचें। कोई दवाइयां ले रहे हैं, तो उसे लेना बिल्कुल मिस न करें। इसके लिए मोबाइल पर रिमांइडर लगाकर रखें।
• ऐसी एक्टिविटीज करें, जिससे श्वसन प्रणाली मजबूत बने। एक्सपर्ट से बात करके योग और व्यायाम को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं। इसके साथ ही डाइट पर भी ध्यान दें।
इन सावधानियों के साथ-साथ डॉक्टर से समय-समय पर कंसल्ट करते रहें। डॉक्टर आपको इन्हेलेशन थेरेपी का सुझाव दे सकते हैं, जो अस्थमा के इलाज में एक कारगर थेरेपी है और इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जरूरी भी है। इन्हेलेशन थेरेपी द्वारा दवाइयां सीधे फेफड़ों में पहुंचती हैं। इसकी खुराक ओरल दवाइयों के मुकाबले काफी कम होती है। इसलिए इसके साइड इफेक्ट भी काफी कम होते हैं और मरीज को जल्द आराम मिलता है।
डॉक्टर द्वारा दिए गए इन्हेलर के नियमित इस्तेमाल से अस्थमा के लक्षणों को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। साथ ही इसमें अस्थमा के दौरे पड़ने की संभावना भी नहीं रहती। इसके अलावा एक डिवाईस पीक फ्लो मीटर भी है, जिससे यह माप होती है कि व्यक्ति सांस छोड़ते वक्त कितनी ताकत से फेफड़ों से हवा को बाहर निकाल सकता है। यह डिवाइस अपने पास रखें। इससे पता चलता है कि फेफड़े कितने मजबूत हैं और हवा की नली कितनी खुली है। इन्हेलर, दवाइयों और डॉक्टर की मदद से इसे अस्थमा को हर एक मौसम में कंट्रोल में रखा जा सकता है।
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