World Tribal Day : आदिवासियों की संस्कृति, लोकनृत्य, वेशभूषा, बोली पंरपराओं एवं रीति-रिवाज का संवर्धन एवं संरक्षण हम सबका कर्तव्य – डॉ. संजय गुप्ता

कोरबा, 09 अगस्त I इंडस पब्लिक स्कूल दीपका में विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में विद्यार्थियों ने आदिवासियों की परंपराओं व संस्कृति को जाना । आदिवासियों की विभिन्न पारंपरिक परिधानों को पहनकर विद्यार्थियों ने नृत्य किए । अलग-अलग प्रकार के परिधानों में विद्यार्थी आदिवासियों की वेशभूषा को प्रदर्शित कर उन्हें सम्मान अर्पित कर रहे थे । विद्यालय के नृत्य प्रशिक्षक श्री हरिशंकर सारथी ने इंडस पब्लिक स्कूल दीपका के विद्यार्थियों को विभिन्न आदिवासी नृत्यों का प्रशिक्षण देकर नृत्य करवाया जिसमें करमा, ददरिया, डंडा, सरहुल इत्यादि नृत्य सम्मिलित थे । सभी विद्यार्थियों ने पूरे जोश व ऊर्जा के साथ नृत्य का आनंद लिया । विभिन्न आदिवासी परिधानों को भी पहनकर विद्यार्थियों ने अपनी खुशी जाहिर की ।


पूरा विद्यालय परिसर अलग-अलग आदिवासी परिधानों से सुशोभित हो रहा था । विद्यालय शिक्षक श्री सचिन लकरा ने विद्यार्थियों के शंकाओं को दूर करते हुए आदिवासियों की परंपराओं, संस्कृतियों, त्योहारों, वेशभूषा, नृत्य, बोली इत्यादि से परिचित करवाया ।
श्री सचिन लकरा ने बताया कि जीवन में सरलता, सहजता व परिश्रम का ही नाम आदिवासी है । आदिवासी अर्थात वो समुदाय जो प्रकृति की गोद में जीवन के प्रारंभिक काल से हो । आदिवासी अर्थात जो अब भी जल, जंगल व जमीन के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर दे व इन्हीं जल, जंगल व जमीन को अपना सब कुछ मानते हैं ।


प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने सभी को विश्व आदिवासी दिवस की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि यदि हमें जीवन जीने की कला करीब से देखना व जानना है तो हम आदिवासियों की जीवनशैली का अध्ययन करें । विश्व में आज भी यदि प्रकृति ने अपनी सुंदरता सहेजी हुई है तो सिर्फ इन्हीं प्रकृति के रखवालों अर्थात आदिवासियों के कारण । हमने तो दिन-प्रतिदिन विकास की अंधदौड़ में जल, जंगल, जमीन, पर्वत व धरा को नुकसान ही पहुँचाया है ।

मगर इन सभी का दर्द अगर इस विश्व में कोई समझता है तो यही आदिवासी भाई-बहन है । हमें हर हाल में इन समुदायों की सुरक्षा व संरक्षण के साथ-साथ इनके उत्थान पर ध्यान देना चाहिए । हमें इनके पर्व, व्रत, त्योहार, संस्कृति, परंपरा व रीति-रिवाज को बचाना ही होगा । ये देवपुत्र हम सभी के लिए वरदान हैं । इनकी बोली, वेशभूषा व रहन-सहन में एक अलग पहचान है । ये एक अनकही व अनगढ़ कहानी है । ये सीधे-सादे प्रकृति-प्रेमी आदिवासी है ।

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