नेशनल डेस्क,17 मई 2025 : डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान एक दिलचस्प कूटनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को कम करने में अपनी भूमिका का दावा किया है। इसने न केवल अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को लेकर उनकी सक्रिय भूमिका को उजागर किया है, बल्कि भारत-पाकिस्तान संबंधों पर भी प्रकाश डाला है। आइए इस बयान को विस्तार से समझते हैं…
भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव
आपको बता दें कि ट्रंप ने यह कहा कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने लगा था, तो स्थिति परमाणु युद्ध की ओर बढ़ रही थी। पाकिस्तान और भारत दोनों ही परमाणु शक्ति से संपन्न देश हैं, और ऐसे में कोई भी सैन्य संघर्ष न केवल इन देशों, बल्कि पूरी दुनिया के लिए विनाशकारी हो सकता था। 2019 के पुलवामा हमले और उसके बाद की घटनाओं को देखते हुए, इस तनाव का अत्यधिक बढ़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।
ट्रंप का व्यक्तिगत दावा
ट्रंप का दावा है कि उन्होंने दोनों देशों को बातचीत के लिए प्रेरित किया और व्यापार को शांति की दिशा में एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया। वह कहते हैं, “यह मेरी इतनी बड़ी सफलता है कि इसका उचित श्रेय मुझे कभी नहीं मिलेगा।” उनका कहना है कि उन्होंने दोनों देशों के नेताओं से सीधे बात की और स्थिति को नियंत्रण में लाने में मदद की। यह बयान ट्रंप की कूटनीतिक भूमिका पर प्रकाश डालता है, लेकिन यह सवाल भी उठाता है कि क्या उनकी मध्यस्थता वास्तव में उतनी प्रभावी थी, जितनी वे दावा कर रहे हैं।
कूटनीति में व्यापार का महत्व
ट्रंप ने यह भी कहा कि उन्होंने व्यापार को शांति स्थापित करने के एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया। उनका कहना था कि भारत उच्चतम टैरिफ लगाने वाले देशों में से एक है, जिससे अमेरिका के लिए व्यापार करना मुश्किल हो जाता है। ट्रंप के मुताबिक, भारत ने अमेरिका के लिए अपने शुल्कों में 100 प्रतिशत कटौती करने का प्रस्ताव दिया था, और वह जल्दी ही भारत के साथ व्यापार समझौता करने को लेकर उत्साहित हैं।
अमेरिका की मध्यस्थता में संघर्षविराम
ट्रंप के बयान के अनुसार, 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम हुआ, जो अमेरिका की मध्यस्थता से संभव हुआ। इससे पहले, 7 मई को भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए थे, और पाकिस्तान ने भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की थी। चार दिनों तक सीमा-पार संघर्ष के बाद, अंततः अमेरिका की मध्यस्थता में दोनों देशों ने संघर्षविराम पर सहमति व्यक्त की।
यह मध्यस्थता की प्रक्रिया इस बात का प्रतीक है कि अमेरिका की भूमिका इस संघर्ष को शांत करने में महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन इस पर भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह मध्यस्थता वाकई प्रभावी रही।
भारत सरकार की चुप्पी
हालांकि ट्रंप ने अपनी कूटनीतिक सफलता का श्रेय लेने का दावा किया है, भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह दर्शाता है कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी बाहरी प्रभाव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, खासकर जब यह सीधे तौर पर उसकी सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से जुड़ा मामला हो। भारत ने हमेशा से ही अपनी कूटनीति को स्वतंत्र और स्वायत्त रूप से संचालित करने की प्राथमिकता दी है।
डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन इस दावे को सत्यापित करना मुश्किल है। जबकि उनकी कूटनीतिक पहल और व्यापार से जुड़े दावे महत्वपूर्ण हैं, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या उनकी मध्यस्थता वास्तव में दोनों देशों के बीच स्थायी शांति स्थापित करने में सफल रही। साथ ही, भारत सरकार की चुप्पी इस बात का संकेत है कि वह अपने मुद्दों को खुद ही संभालने को प्राथमिकता देती है, बिना किसी बाहरी दबाव या मध्यस्थता के।