0.माता कर्मा मंदिर दीपका में महतो परिवार के संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह में उमड़ रही आस्था
कोरबा, 04 मई । इंद्रियों को नियंत्रित करना हो तो इच्छाओं को सर्वप्रथम ईश्वर को अर्पित करें। आंख ,जिव्हा ,कान ये वो इंद्रियां हैं जो मानव के पतन और उत्थान का माध्यम हैं। अतः इनको नियंत्रित करने में ही मानव का कल्याण निहित है। उक्त बातें ग्राम तिलकेजा से पधारे प्रख्यात कथावक्ता पंडित नूतन कुमार पांडेय ने श्री माता कर्मा मंदिर प्रांगण बुधवारी बाजार दीपका में ग्राम सलिहाभांठा निवासी भागीरथी महतो श्रीमती शांति देवी महतो द्वारा कुल एवं आत्मकल्याण निमित्त आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तृतीय दिवस बुधवार को आयोजित कथा के दौरान कही । आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि प्रेम सभी से करो लेकिन ममता किसी से नहीं । ममता के वशीभूत होकर ही मानव बंधन में बंधता है ।
अन्यथा मानव सभी बंधनों से मुक्त है। आचार्य श्री पांडेय ने कथा प्रसंग के मध्य समाज में बेटियों के महत्व पर भी प्रभावपूर्ण तरीके से प्रकाश डाला । उन्होंने उपस्थित श्रोताओं से कहा कि जितना महत्व समाज में बेटों की है उतना ही महत्व समाज में बेटियों की है । बेटा तो केवल एक कुल ही रौशन करती है। बेटी पिता और पति दोनों के कुल को रौशन करती है। वो जननी है जिससे संसार चल रहा ,लेकिन आधुनिक समाज में आज बेटियों की कमी हो गई है। शादी के लिए वर पक्ष सालों तक योग्य कन्या की तलाश करते रहते हैं। इन परिस्थितियों के जिम्मेदार हम सभी हैं। बेटे बेटियों में लिंग भेदभाव की संकीर्ण सोंच एवं कन्या भ्रूण हत्या की ही यह परिणीति है। इसलिए यह सोंच अब बदलने की जरूरत है,इसी में समाज एवं जगत का कल्याण निहित है।
आचार्य श्री पांडेय ने आधुनिक अंग्रेजी शिक्षा पद्धति में एक धर्म विशेष द्वारा संचालित स्कूलों में बच्चों को हिन्दू संस्कार से वंचित कर धर्मांतरण के लिए प्रेरित करने पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि हम ऐसे स्कूलों की जगह बच्चों को ऐसे स्कूलों में तालीम दिलाएं जिससे बच्चे काबिल बनने के साथ साथ संस्कारवान भी बनें।सनातन हिन्दू धर्म के प्रति उनकी आस्था बनी रहे। तृतीय दिवस आयोजित कथा प्रसंग ने आचार्य श्री पांडेय ने ऋषभ देव ,सती चरित्र एवं ध्रुव चरित्र की कथा श्रवण कराई। आचार्य श्री नूतन पाण्डेय ने कहा कि पति की इच्छा के विरुद्ध किया गया कार्य पत्नी के पतन का कारण बनती है। माता सती ने शिव जी के मनाही के बावजूद बिना आमंत्रण अपने पिता राजा दक्ष के यहां आयोजित यज्ञ समारोह में गईं। और शिव जी का अपमान तिरस्कार देख स्वयं यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति देकर सती हो गईं।
उन्होंने कहा कि भगवान शिव के अग्र गण वीरभद्र ने शिव -सती द्रोही यज्ञ में शामिल प्रमुख यजमान राजा दक्ष सहित सभी का संहार कर काल के पास पहुंचा दिया। इसलिए भगवान शिव ने उन्हें स्वयं से पूर्व पूज्य का आशीष दिया। वीरभद्र की पूजा उपरांत ही शिव पूजा पूर्ण मानी जाती है। आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि जिसे कोई स्वीकार नहीँ करता उसे ईश्वर अंगीकार करते हैं। कठोर तपस्या कर प्राण वायु तक को अपने साँसों में रोककर बालक ध्रुव ने भगवान नारायण को आने विवश कर दिया। जिसे पिता ,सौतेली माता ,सखा सब तिरस्कार कर रहे,भगवान के अंगीकार करते ही सम्पूर्ण जगत उसे एक श्रेष्ठ राजा के रूप में पूजने स्वीकार करने लगा। 4 मई को चतुर्थ दिवस शाम 5 बजे से नरसिंह अवतार ,वामन अवतार ,रामावतार एवं कृष्ण जन्मोत्सव होगा । 5 मई को पांचवे दिवस गोवर्धन पूजा ,छप्पन भोग एवं कृष्ण रुक्मणी विवाह संपन्न होगा।
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