माता कर्मा मंदिर दीपका में महतो परिवार के संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का कलश यात्रा के साथ हुआ शुभारंभ
कोरबा, 3 मई । जब हम मंदिर जाते हैं तो कोई कृष्ण को पूजते हैं कोई शिव जी ,कोई दुर्गा माता तो कोई हनुमान जी को पूजते हैं। इन सबके बीच भक्तों के मन में ईश्वर की श्रेष्ठता को लेकर सवाल उत्पन्न होते रहते हैं कि आखिर सबमें श्रेष्ठ कौन हैं तो पूजा सबकी करो पर निष्ठा किसी एक पर रखो । जिस पर आपकी निष्ठा है समझिए वो आपके इष्ट हैं ,और जिनका इष्ट प्रबल है उनका कभी अनिष्ट नहीं हो सकता।
उक्त बातें ग्राम तिलकेजा से पधारे प्रख्यात कथावक्ता पंडित नूतन कुमार पांडेय ने श्री माता कर्मा मंदिर प्रांगण बुधवारी बाजार दीपका में ग्राम सलिहाभांठा निवासी श्री भागीरथी महतो श्रीमती शांति देवी महतो द्वारा कुल एवं आत्मकल्याण निमित्त आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के द्वितीय दिवस मगंलवार को आयोजित कथा के दौरान कही । आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि हमारी नजरों में ईश्वर अलग अलग स्वरूप हैं पर सभी एक परमशक्ति हैं। उन्होंने उदाहरणार्थ बताया कि जिस तरह कोरबा जाने के लिए अलग अलग वाहनों के विकल्प हैं लेकिन हमारा लक्ष्य कोरबा जाने की है ,उसी तरह ईश्वर की भक्ति के लिए स्वरूप भले ही भिन्न भिन्न हों पर सभी की सतचित्त से पूजा अर्चना से मानव का कल्याण एवं मोक्ष का मार्ग प्रशस्त रहता है । आचार्य श्री नूतन पांडेय ने श्रोताओं को श्रीमद्भागवत कथा अमृत गंगा का रसपान कराते हुए बताया कि तन ,धन और मन की शुद्धिकरण के लिए तीन उपाय बताए। उन्होंने कहा कि तन शुद्धि करे सेवा ,धन शुद्धि करे दान,भक्ति करे से होत मन शुद्धि होत कल्याण । भावार्थ तन की शुद्धि के लिए सेवा करना चाहिए । और विभिन्न तरीकों से अर्जित धन की शुद्धि के लिए उसे धर्मार्थ कार्यों में लगाना चाहिए ,दान करना चाहिए । इसी तरह मन की शुद्धि के लिए भक्ति करना चाहिए। तन मन धन की शुद्धिकरण से मानव का कल्याण निश्चित है। उन्होंने द्वितीय दिवस
शुकदेव जन्म ,परीक्षित जन्म ,हिरण्याक्ष वध कथा प्रसंग का प्रभावपूर्ण ढंग से श्रवण कराया।
आचार्य श्री पांडेय ने उपस्थित श्रोताओं को कथा श्रवण कराते हुए बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने अश्वधामा के ब्रम्हास्त्र के प्रहार से उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव कुल के अंतिम चिराग अर्जुन पुत्र की रक्षा कर उसके मृतप्राय शरीर में प्राण डाले,वही बालक प्रतापी चक्रवती सम्राट परीक्षित कहलाए। आचार्य श्री पांडेय ने श्रोताओं को बताया कि ईश्वर यूँ ही अवतरित नहीं होते, जब जब धरती पर आततायियों का अत्याचार बढ़ जाता है । धर्म खतरे में पड़ जाता है । तब तब धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर भगवान नारायण अवतार लेते हैं उन्होंने महाअसुर हिरण्याक्ष द्वारा पृथ्वी को समुद्र की अथाह गहराई में डूबा देने के बाद जगतकल्याण के लिए वराह रूप में अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी की रक्षा की । उन्होंने बताया कि इस दौरान जब पृथ्वी को यह अहंकार हुआ कि उसके बगैर सृष्टि की रचना नहीं हो सकती तो भगवान श्री कृष्ण ने उसे अपने दाढ़ी में रखकर अपने परम निवास वृंदावन के अद्भुत नजारे दिखा उसका अहंकार समाप्त किया। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि महाभारत उपरांत जब श्री कृष्ण ने पांडवों सहित माता कुंती से अपनी इच्छानुरूप वर मांगने की बात कही। तो माता कुंती ने यह कहकर भगवान श्री कृष्ण सहित समूचे संसार को अचंभित कर दिया कि उन्हें संसार की जितने भी दुख हैं ,कष्ट हैं प्राप्त हों। यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि बुआ आप जन्म से इस अवस्था तक असहनीय पीड़ा कष्ट ही झेलती आई हैं तो आप पुनः कष्टों का वरण क्यों कर रही हैं। कुंती ने कहा कि जब हम कष्ट में थे, दुखी थे तो नारायण के अवतार आप हमारे साथ थे ,जब दुख कष्टों में ही आप साथ हों तो यह सांसारिक क्षणिक मोह सुख व्यर्थ हैं।
[metaslider id="347522"]