रायपुर ,24 फरवरी । क्रोध पर केवल नम्रता से काबू पाया जा सकता है क्रोध पर यदि क्रोध से काबू पाने का प्रयास करने पर नुकसान के अलावा कुछ हाथ में नही आता। इसलिये क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिये। जब क्रोध आता है तो उस समय मनुष्य बुद्धी नहीं रहती ज्ञान नहीं रहता और सबसे अधिक नुकसान क्रोध करने वाले का ही होता है। सीता स्वंयवर मेंं भगवान शिव के धनुष तोड़ने केे दृष्टांत पर संत शंभूशरण लाटा ने वर्णन करते हुए बताया कि क्रोध में आदमी पहचान भी खो देता है। परिवार में यदि किसी को क्रोध आ जाए तो बाकी सभी को शांत रहना चाहिए और नम्रता से क्रोध करने वाले को शांत कराना चाहिए।
आवेश में आकर वह कुछ भी अनुचित कदम उठा सकता है क्योंकि उस समय उसकी मति और ज्ञान दोनों ही उसके साथ नहीं होते। भगवान परशुराम के क्रोध को भगवान श्रीराम ने अपनी मीठी वाणी और नम्रता से शांत किया। शांत होने पर भगवान परशुराम ने भगवान के अस्तित्व को जाना और उनके चरणों में प्रणाम करके और अपनी गलती को स्वीकार कर भगवान से क्षमा मांगकर वे वहां से चले गए। गलती होने पर क्षमा मांग लेना चाहिए, उस समय यह नहीं देखना चाहिए कि कौन बड़ा है और कौन छोटा है।
शंभूशरण लाटा ने कहा कि आज धर्म कि जो अव्हेलना हो रही है उसके दोषी मनुष्य स्वयं है, उसने अपने धर्म की परंपराओं का त्याग कर दिया है। भगवान श्रीराम के विवाह प्रसंग पर कहा कि विवाह की तैयारियां कैसी होनी चाहिए, लोगों को कैसे आमंत्रित करना चाहिए यह सारी व्यवस्थाएं घर के बड़े बुजुर्ग पहले किया करते थे, उन्हीं से सब पूछा जाता था लेकिन आज स्थिति ठीक विपरीत हो गई। न बड़े बुजुर्गों का घर में कोई आदर है और न ही कोई स्थान और न उनसे किसी बात की सलाह ली जाती है। उसका परिणाम यह हो रहा है कि आज परिवार में विवाह टिकते नहीं है और टूट रहे है। संस्कार और परंपराओं को यदि हम छोड़ देंगे तो उसका परिणाम यही हमे मिलेगा।
अपने धर्म और परंपराओं को छोड़कर दूसरे धर्म के नाटक-नौटंकियों से हमे बचना चाहिए, बजाए उसे स्वीकार करने के। रही सही कसर टीवी चैनलों ने पूरी कर दी है। टीवी पर प्रसारित होने वाले जितने भी कार्यक्रम दिखाई जा रहे है उनमें परिवार को जोड़ने की बजाए तोड़ने की कुटील योजना दिखाई जाती है। एक ही व्यक्ति और महिला के अनेक लोगों के साथ संबंध और विवाह दिखाए जाते है। क्या यह भारतीय परंपरा है। कोई भी शुभ कार्य होने से पहले घर में दीपक को जलाया जाता है ताकि घर और जीवन में अंधेरा न हो सकें लेकिन विडंबना यह है कि आज केक काटे जा रहे है, दीये बुझाए जा रहे है और लोग आनंदित हो रहे है। यह आनंद नहीं है यह हमारे विनाश के कारण बनते जा रहे है।
संत लाटा ने कहा कि आज धर्म की जो स्थिति है उसे बिगाडऩे में कथावाचक और धर्म के आचार्य भी दोषी है। धर्म की रक्षा के बजाए उन्होंने उसका व्यापारीकरण कर दिया। धर्म केवल नाम मात्र के लिए बचा हुआ है, हमने धर्म को छोड़ दिया है, धर्म की बातें करना बहुत सरल है लेकिन धर्म पर चलना बहुत ही कठिन। गुरु के प्रति उनके चरणों में भाव भगवान के समर्पण का होना चाहिए, उसका लाभ मिलता ही है। गुरु कैसा भी हो इसकी व्याख्या हमें नहीं करनी है उसे भगवान देख रहे है और वही उसका निराकरण भी करते है। गुरु का त्याग और वेद का विरोध करना भगवान का अपमान करने के सामान है। वेद और गुरु दोनों भगवान है इसलिए उनका कभी विरोध नहीं करना चाहिए।
कथा स्थल बना विवाह स्थल
जनता कॉलोनी गुढ़ियारी में चल रही रामकथा में संत शंभूशरण लाटा ने भगवान श्रीराम के विवाह प्रसंग पर जो दृष्टांत श्रद्धालुओं को बताया। कथा स्थल आनंदित हो उठा। उनके भजन पर महिलाएं और पुरुष अपने को थिरकने से रोक नहीं सकें। पूरे कथास्थल पर विवाह समारोह जैसी सजावट की गई थी।
[metaslider id="347522"]