प्रभात पटनायक के आलेख के अनुसार, नवउदारवादी दौर में आर्थिक विकास के बावजूद खाद्यान्न उत्पादन और उपभोग में वृद्धि नहीं हुई है। इसके विपरीत, लोककल्याणकारी राज्य के दौर में खाद्यान्न की कमी रहती थी, लेकिन लोगों की क्रय शक्ति अधिक थी।
नवउदारवाद के तहत खाद्यान्न सरप्लस
नवउदारवादी दौर में सरकार के पास खाद्यान्न भंडार का अंबार है, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित अनाज से कहीं अधिक संग्रह होता है। यह खाद्यान्न सरप्लस समृद्धि का नहीं, बल्कि श्रमिक वर्ग की बढ़ती दरिद्रता का प्रतीक है।
विकास के दो प्रतिमान
लोककल्याणकारी मॉडल में खाद्यान्न की कमी रहती थी, लेकिन लोगों की क्रय शक्ति अधिक थी। नवउदारवादी मॉडल में खाद्यान्न का अतिरेक है, लेकिन लोगों की क्रय शक्ति घट गई है।
निष्कर्ष और वैकल्पिक मॉडल
प्रति व्यक्ति जीडीपी के बजाय आवश्यक वस्तुओं के उपभोग को प्रगति का पैमाना बनाना चाहिए। रोजगार वृद्धि के लिए सरकारी खर्च बढ़ाना होगा, जो वित्तीय घाटा बढ़ाकर या धनी वर्ग पर कर बढ़ाकर संभव है। पूंजी नियंत्रण लागू करना होगा और नवउदारवादी नीतियों का अंत करना होगा।
वैकल्पिक दृष्टिकोण
लोककल्याणकारी दौर में लौटने के बजाय, कृषि-आधारित विकास को बढ़ावा देना चाहिए। बड़े पैमाने पर भूमि सुधार और सरकारी निवेश आवश्यक हैं। नवउदारवादी निर्यातोन्मुखी विकास का विकल्प सरकारी संरक्षण में कृषि-आधारित विकास है।