रायगढ़। विश्वासपुर में शुक्रवार को रत्नमुद कुंभ भराई महोत्सव कार्यक्रम के तहत तीनों मंदिर राधामाधव मंदिर, हनुमान मंदिर व कीर्तन मण्डली का विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना व वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भव्य एवं दिव्य रूप से कुंभ भरा गया। गुरु नरसिंह दास जी महाराज के मार्गदर्शन एवं अगुवाई में इस पुनीत कार्य से क्षेत्र की सभ्यता एवं संस्कृति के केन्द्रों के गौरव एवं भव्यता और अधिक प्रतिष्ठित तथा सुदृढ़ हुआ है।
यह प्रतीक है हमारे सनातन संस्कृति का। यह प्रतीक है हमारी आध्यात्मिक आत्मा का, यह प्रतीक है भारत की प्राचीनता का परम्पराओं का। इस ऐतिहासिक उत्सव की आभा से मंदिर परिसर पहुंचे हर एक जन में नए उत्साह एवं उमंग का संचार हुआ एवं हरिनाम महामंत्र हर हृदय में गुंजायमान हो रहा था। हरिनाम संकीर्तन वाद्ययंत्रों एवं संगीत की धुनों के बीच अद्भुत छटा के साथ रत्नमुद कुंभ भराई महोत्सव सम्पन्न हुआ।
इस ऐतिहासिक क्षण पर स्व.कुमार दिलीप सिंह जूदेव के पुत्रवधु संयोगिता युद्धवीर सिंह जूदेव, सामाजिक कार्यकर्ता जगन्नाथ पाणिग्राही एवं शंकरलाल अग्रवाल ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और इस पुनीत महोत्सव के साक्षी बनें।
विदित हो कि श्री राधामाधव मंदिर (वृन्दावन धाम) का निर्माण जनसहयोग से श्री राधामाधव मंदिर समिति द्वारा किया जा रहा है। यह स्थल सुंदर प्राकृतिक परिदृश्य से अत्यंत मनोरम है और इसकी अवस्थिति चंद्रपुर से बरमकेला की ओर जाने वाली मार्ग पर बायी ओर है। यह मंदिर परिसर चित्रोत्पला महानदी के दक्षिण तट पर तो उत्तर तट पर मां चन्द्राहासिनी एवं महानदी के बीचों-बीच मां नाथलदाई विराजित हैं।
कलयुग में हरिनाम की महत्ता तथा अंचल के गौरवशाली आध्यात्मिक परम्पराओं से लोगों को साक्षात्कार कराने हेतु मंदिर निर्माण का यह महत्वपूर्ण कार्य हुआ है।
आने वाले समय में भज-श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद। जप-हरे कृष्ण हरे राम श्री राधे गोविन्द।। के मंत्र को आत्मसात कर इस पवित्र स्थान का दर्शन लाभ लेंगे तथा हरिनाम संकीर्तन रूपी पवित्र एवं अविरल प्रवाह से निरंतर तृप्त होंगे। समिति के मीडिया प्रभारी चूड़ामणि पटेल ने बताया कि श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार कलियुग में हरे राम-हरे कृष्ण महामंत्र का संकीर्तन करने मात्र से प्राणी मुक्ति के अधिकारी बन सकते हैं तथा कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल और प्रबल साधन नाम-जप ही है।
जपतो हरिनामानिस्थानेशतगुणाधिक:।
आत्मानञ्चपुनात्युच्चैर्जपन्श्रोतृन्पुनातपच॥
अर्थात : हरि-नाम को जपने वाले की अपेक्षा उच्च स्वर से हरि-नाम का कीर्तन करने वाला अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि जपकर्ता केवल स्वयं को ही पवित्र करता है जबकि नाम- कीर्तनकारी स्वयं के साथ-साथ सुनने वालों का भी उद्धार करता है। कलियुग में नाम संकीर्तन के अलावा जीव के उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है।
बृहन्नार्दीय पुराण में आता है–
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं। कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा। यानी कलियुग में केवल हरिनाम से ही उद्धार हो सकता है। हरिनाम के अलावा कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय नहीं है!
कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार
यद्यपि कलियुग में दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बड़ा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुगमें यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापरयुगमें पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलियुग में वह पुण्यफल श्रीहरिके नाम-संकीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है। कार्यक्रम में आगंतुक अतिथियों ने मंदिर का जिक्र करते हुए कलयुग में हरिनाम संकीर्तन की महिमा का वर्णन विस्तार पूर्वक किया और कहा कि ऐसे देवस्थानों से आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजों रहा है। कार्यक्रम में हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु भक्तजनों ने इस गौरवशाली समारोह में भागीदारी की।
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