Vedant Samachar

CG NEWS:बस्तर में आमा पंडुम शुरू…राहगीरों से लिया चंदा,पूजा के बाद तोड़ सकेंगे आम; कोई पहले तोड़ता पाया गया तो 5 हजार जुर्माना

Vedant Samachar
3 Min Read

बस्तर,16अप्रैल 2025 (वेदांत समाचार) : छत्तीसगढ़ के बस्तर में आमा पंडुम यानी आम का त्योहार मनाने की परंपरा है। बिना त्योहार और पूजा-पाठ के पेड़ों से आम तोड़ना वर्जित है। यदि अनजाने में कोई ऐसा करता है तो उसपर 5 हजार रुपए का दंड लगाने का भी नियम है। हालांकि, अलग-अलग लोकेशन में अलग-अलग तरह से दंड देने का प्रावधान है।

बस्तर में आमा पंडुम मनाया जा रहा है। बस्तर के लगभग हर एक गांव में आमा पंडुम मनाने की परंपरा है। आदिवासी प्रकृति के भी पूजक होते हैं और आम का फल उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करता है। इसलिए ग्रामीण हर साल आम त्योहार मनाते हैं। पेड़ों की पूजा करते हैं। क्षेत्रीय ग्राम देवी-देवताओं की भी आराधना करते हैं। साथ ही पूर्वजों को भी याद करते हैं।

चंदा वसूली का मनाते हैं त्योहार

वहीं एक दिन पहले बागमुंडी पनेडा, किलेपाल समेत आस-पास के इलाके के लोगों ने जगदलपुर-बीजापुर नेशनल हाईवे 63 पर अस्थाई नाका लगाया था। राहगीरों से चंदा लिया। चंदा के पैसे का उपयोग पूजन सामग्री समेत त्योहार में अन्य जरूरत के सामान लाने के लिए करते हैं।

पूजा से पहले तोड़ने पर देते हैं दंड

बागमुंडी पनेड़ा के ग्रामीण मद्दा, शिवराम हेमला और पायकु वेको का कहना है कि बिना पूजा-पाठ के पेड़ों से आम तोड़ना वर्जित है। यदि कोई ऐसा करता हुआ पाया गया तो उसपर गांव के लोग 5 हजार रुपए दंडूम यानी जुर्माना लगाते हैं। ऐसा पहले लगा भी चुके हैं। इसलिए पूजा से पहले गांव का कोई भी व्यक्ति न तो आम तोड़ता है और न ही तोड़ने देता है।

आय का साधन है आम

बस्तर के ग्रामीणों के लिए आम फल उनके आय का सबसे प्रमुख साधन है। ग्रामीण बाजार में आम बेचते हैं। इसके अलावा कच्चे आम से अमचूर भी बनाकर गल्ला व्यापारियों को बेचते हैं। जिससे उन्हें अच्छी खासी आमदनी होती है।

जानकार बोले- पितरों को याद करने का है पर्व

बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार और आदिवासी संस्कृति के जानकार हेमंत कश्यप ने कहा कि, आमा तिहार या फिर आमा पंडुम आम का पेड़ लगाने वाले पितरों को याद करने का पर्व है। आदिवासी ग्रामीण अपने पितरों को तर्पण देते हैं। ये परंपरा सालों से चली आ रही है।

Share This Article