जब गंगा दरस संग होइस सउंहे तीरथ-बरत..

वइसे तो हमर छत्तीसगढ़ के ही साक्षात त्रिवेणी संगम महानदी, पैरी अउ सोढुल के मिलन ठउर राजिम ल ही मैं ‘अस सरोए’ खातिर जादा महत्व देथौं, फेर पारिवारिक आस्था अउ जोर देवई के सेती गंगा दरस के घलो संजोग दू पइत बने हे. पहिली बेर तो हमर सियान रामचंद्र जी ल लेके बड़े भाई सुरेश दूनों गे रेहेन. फेर वो बेरा के जवई ह बस रायपुर ले रेलगाड़ी म चढ़े बिहान भर इलाहाबाद प्रयागराज म उतरे अउ तहाँ ले जम्मो आवश्यक कर्मकांड ल पूरा कर के उल्टा पॉंव वापसी के रेलगाड़ी म उहुट आए तक ही होए रिहिस. दूसरइया पइत जब अपन मामी ल लेके गेन तेकर सुरता ह आज तक अंतस म समाए हे।

बछर 2017 के 14 नवंबर के हमन ममागाॅंव देवरी (धरसीवां) ले संझौती बेरा परिवार के आठ सदस्य, जेमा- मामी के दूनों बेटी, तीन बहू, एकक बेटा अउ दमाद अउ उंकर मनके संग म मैं भांचा सुशील ह पुरौनी म चरगोड़िया गाड़ी म खाए-पिए अउ रांधे-गढ़े के सबो सामान धर-जोर के हफ्ता भर बर निकले रेहेन. जाती बेरा तो देवरी ले निकल के सोझ इलाहाबाद म ही जाके सुरताएन। 15 नवंबर के मंझनिया इलाहाबाद म हबरेन. उहाँ कर्मकांडी पंडा के ठीहा पहुँचत अउ उहाँ असनाद करत संझौती झॉंके ले धर लिए रिहिसे. एकरे सेती सब गुनेन- आज तो चलौ संगम स्थल के बड़े हनुमान जी के ही दरस कर के उही डहार ले महल आदि मनला देखत-घूमत आबो अउ काली बिहाने ले अस सरोए अउ संगम असनाद के बुता ल सिध पारबो. वइसे तो मैं पहली घलो उहाँ चलदे रेहेंव, तेकर सेती मोर मन म वतेक जिज्ञासा अउ आकर्षण तो नइ रिहिस, तभो मामी के अंतिम इच्छा पूरा करे खातिर संघरगे रेहेंव।

मोटर के लम्हरा सफर तेमा ऊपर ले रेंगत बड़े हनुमान जी के दरस करई म भारी लरघिया गे राहन. अपन ठउर म आएन, रतिहा के बियारी करेन तहाँ ले रतिहा ह एकेच नींद म पहागे. बिहनिया उठेन. दतवन-मुखारी कर के गंगा असनादे खातिर तइयार होएन। हमन जेन पंडा इहाँ कर्मकांड खातिर रूके रेहेन, उहाँ ले सब निकलेन अउ यमुना जी के खंड़ म पहुँचेन. उहाँ पंडा मन कुछ नेंग-जोंग करवाईन तहाँ ले डोंगा म सवार होके संगम जाए खातिर आगू बढ़ेन. पूरा नंदिया भर परदेशी चिरई मनके मार चींव-चॉंव अउ हमर आठों झन के गोठ-बात म संगम तक पहुँचत सुरुज नरायन बने तरूआ म चघे कस होगे रिहिसे।

संगम मेर पहुँचेन तहाँ सबले पहिली मुड़ मुड़ाए के जोखा मढ़ाए गिस. मैं तो ए नेंग ल थोकन माने असन नइ करौं, फेर सबके जोजियई म महू ल अपन मामी ल चूंदी देना परिस. पिंडदान के नेंग ल हमर संग म गे भाई करिस, तब तक मैं ह हमर गाड़ी के चलइया दूनों एती-तेती किंजर आएंव. इही गाड़ी के चलाइया ह मोर वोती के हफ्ता भर के यात्रा के संगवारी बने रिहिसे. बाकी मन  संग तो लरा-जरा अउ बहू-बेटी के नेंग-नियम के सेती थोकिन मरजाद म रहे अस राहन। पिंडदान के जम्मो नेंग पूरा होए के बाद म फेर सबो झन संगम म असनादेन. जेमन पहिली बेर वो ठउर म गे रिहिन, वोकर मन बर वो बेरा ह बड़ा जिज्ञासा अउ आस्था के बेरा रिहिस. वोकर मन संग हमू मन गंगा यमुना के संगम म असनादेन, पूजा-अर्चना करेन, फल-फूल चढ़ा के आशीर्वाद लेन।

वोकर पाछू घर-परिवार अउ पूजा खातिर जेन सब सामान लिए जाथे वोमा भीड़ेन. वो सबला देखत-बिसावत संझौती होए लागिस. तब फेर पंडा के ठीहा म लहुटेन. रतिहा के बियारी करेन अउ थोर-बहुत आराम करे के पाछू चित्रकूट धाम जाए खातिर निकल गेन. हमर गाड़ी चलइया रस्ता मनके अच्छा जानकर रिहिसे. वो बतावय के अइसने अउ कतकों लोगन ल वोहा अपन गाड़ी म तीरथ-बरत करवा डरे हे, तेकर सेती चारों मुड़ा के रस्ता ल बनेच जानथे-चिन्हथे। बिहनिया सुरुज नरायन के दरसन पाते हमन चित्रकूट पहुँच गेन. उहाँ सबले पहिली मंदाकिनी नदी म दतवन-मुखारी करेन, फेर रामघाट म आके असनादेन. वोकर बाद भरत-मिलाप मंदिर संग आसपास के जम्मो देवाला मन म गेन. संत तुलसी दास जी के चंदन घिसे के ठउर म तो मैं फोटू घलो खिंचवाएंव. वोकर बाद वो कामदगिरि पहाड़ म गेन, जेमा भगवान राम वनवास काल म कुटिया बना के राहत रिहिन हें.

अइसे मान्यता हे के ए पहाड़ के परिक्रमा करे के जबर फल मिलथे. ए पहाड़ ल बहुत पवित्र घलो माने जाथे, एकरे सेती कोशिश ए होथे, के वोमा काकरो पॉंव झन माढ़य. इही बात ल गुन के वोकर चारों मुड़ा परिक्रमा बनाए गे हे. ए पहाड़ ह उत्तरप्रदेश अउ मध्यप्रदेश के सीमारेखा घलो आय. आधा पहाड़ उत्तरप्रदेश म अउ आधा ह मध्यप्रदेश म हे. एकरे सेती एकर परिक्रमा खातिर मध्यप्रदेश अउ उत्तर प्रदेश दूनों मुड़ा ले प्रवेश द्वार अउ मंदिर हे. हमन उहाँ दर्शन पूजा करे के पाछू फेर सती अनुसुइया आश्रम गेन. अउ फेर उही डहार ले मैहर वाली माँ शारदा के ठउर जाए बर निकल गेन. 

ए पूरा हफ्ता भर के यात्रा हमर मन बर एक किसम के पिकनिक पार्टी बरोबर घलो होगे राहय. खाए-पिए अउ रांधे-गढ़े के सब जिनिस हमर गाड़ी म ही राहय, तेकर सेती जेन जगा बढ़िया असन नंदिया-नरवा या पानी-कांजी के प्राकृतिक ठउर देखन उही जगा गाड़ी ल ठाढ़ कर के रंधना-गढ़ना खाना-पीना कर डारन। मैहर के पहुँचत ले अंधियार होगे रिहिसे. उहाँ जानकारी मिलिस के कोनो होटल या धरमशाला म चार घंटा पहवा लेवौ अउ मुंदरहा जल्दी उठ के नहा-धो के महतारी के दर्शन खातिर चले जाहू. काबर ऊँच पहाड़ म चघत बनेच बेरा लग जाथे. भीड़ घलो गजब रहिथे. माताजी के दर्शन करत गजब बेरा लग जाथे।

हमन मुंदरहा ले उठेन. नहा-धो के पूजा पाठ के समान बिसाएन अउ मंदिर चले गेन. लोगन उहाँ बताए राहय के उहाँ के पहाड़ के सिढ़िया हमर छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ वाली बम्लेश्वरी दाई के पहाड़ ले ऊँच हे कहिके. फेर मोला तो वतेक नइ जनाइस. हाँ उहाँ सिढ़िया संख्या म जादा हे, फेर उंकर सिढ़िया मनके ऊँचाई डोंगरगढ़  सिढ़िया मन ले कम-कम हे, तेकर सेती जादा नइ जनाइस. चारों मुड़ा बने घूमेन-फिरेन महतारी के दरसन करेन. पहाड़ के ऊपर ले ही आल्हा उदल के अखाड़ा स्थल ल देखेन. नीचे के बजार-हाट ल किंजरेन. अपन-अपन पसंद के जिनिस बिसाएन. तहाँ ले जेवन करत अमरकंटक जाए बर हमर चरगोड़िया गाड़ी म बइठ गेन।

अमरकंटक के पहुंचत ले रतिहा होगे राहय. उहाँ रतिहा बिताय बर एक धरमशाला म ठउर पाएन. रात भर बिलमे के पाछू मुंदरहा ले ही धरमशाला ले निकल गेन. पहिली हमन सोनमुड़ा के पहाड़ी ले सूर्योदय देखे के जोंग मढ़ाएन. तेकर पाछू फेर नर्मदा उद्गम कुंड म असनादे के। वइसे तो मैं सूर्योदय के नजारा कतकों जगा ले देखे हावौं फेर सोनमुड़ा के पहाड़ी ले जेन उवत सुरुज नरायन के  मनोहारी दृश्य देखे ले मिले हे, वो ह जिनगी के अद्भुत अनुभव आय. ए ह जिनगी के अंतिम बेरा तक अंतस म सजे रइही. सूर्योदय के नजारा देखे के पाछू उहें चाय-पानी लेके बाद नर्मदा उद्गम स्थल डहार बढ़ेन. उहाँ नहाए-धोए के ठउर के जानकारी लेन त बताइन, के वोती आखिरी वाले कुंड म नहाए जा सकथे. वो कुंड म असनादे के पाछू फेर सब मंदिर-देवाला मन के पूजन-दर्शन बर निकलेन. चारों मुड़ा किंजरत देखत कपिलधारा गेन।

वइसे तो मैं अमरकंटक एक बेर पहिली घलो गे रेहेंव अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय म आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम म भागीदारी निभाए खातिर. फेर वो जवई ह सिरिफ विश्वविद्यालय परिसर तक ही सिमित रहिस. पूरा अमरकंटक ल किंजर-किंजर के ससन भर देखे के ए दरी ह पहला अवसर रिहिसे। वइसे तो अमरकंटक ह हमर छत्तीसगढ़ के ही प्राचीन हिस्सा आय, फेर राज्य गठन के बेरा मध्यप्रदेश एमा अवैध कब्जा कर के हथिया लिस. छत्तीसगढ़ के पहला मुख्यमंत्री अजित जोगी ह एकर खातिर गजब आवाज उठाए रिहिसे, के अमरकंटक ल छत्तीसगढ़ म शामिल करे जाय कहिके, फेर वो मंशा ह पूरा नइ हो पाइस. बाद के मुखिया मन तो ए डहार चेत घलो नइ करिन. शायद ए मनला इहाँ के प्राचीन इतिहास के जानकारी नइ रहिस होही!  अमरकंटक अउ नर्मदा उद्गम के गोठ होवत हे, त वो ऐतिहासिक बात के घलो चर्चा होना चाही, जेकर खातिर ए भुइयॉं ल मानव जीवन के उत्पति स्थल के रूप म चिन्हित करे जाथे।

हमर इहाँ के आदिवासी समाज के बुद्धिजीवी मन नर्मदा उद्गम स्थल ल ही मानव जीवन के उत्पति स्थल मानथें. मोर ए वर्ग के बहुत झन विद्वान मन संग ए विषय म गोठबात होए हे. एमा के प्रमुख विद्वान ठाकुर कोमल सिंह मरई जी तो हमर समिति ‘आदि धर्म जागृति संस्थान’ संग जुड़े घलो रिहिन हें. वोमन एकर ऊपर एक किताब घलो लिखे रिहिन. ‘गोंडवाना दर्शन’ नॉव के एक मासिक पत्रिका म उंकर ‘नर मादा की घाटी’ शीर्षक ले धारावाहिक लेख घलो छपे रिहिसे. वोकर मनके कहना रिहिस के, नर+मादा के मेल ले ही ‘नर्मदा’ शब्द बने हे. वोमन बताय रिहिन- आजकल जे भूगर्भ विज्ञानी मन धरती के उत्पति के ऊपर शोध कारज करत हें, उहू मन अब ए बात ल स्वीकार कर डारे हें, के नर्मदा घाटी श्रृंखला ही पृथ्वी के नाभि स्थल आय. इहें ले ही मानव जीवन के शुरुआत होए हे. नर्मदा घाटी श्रृंखला, जेला मैकाल पर्वत श्रृंखला घलो कहे जाथे, ए ह नर्मदा उद्गम स्थल ले लेके हमर छत्तीसगढ़ के भोरमदेव-कवर्धा तक विस्तारित हे।

अमरकंटक पर्वत श्रृंखला ले फेर छत्तीसगढ़ म प्रवेश करत हमन महामाया माता के भुइयॉं रतनपुर खातिर आगू बढ़ेन. वइसे तो मैं रतनपुर कई बेर पहिली घलो गे रेहेंव. नवरात्र के बेरा म माता मनके सिद्ध स्थल जाए के मोर ठउका आदत रिहिसे. एकरे सेती हमर छत्तीसगढ़ के चारों मुड़ा महतारी मनके ठीहा म जातेच राहंव. फेर वोमन सिरिफ मंदिर देवाला जवई अउ पूजन-दर्शन के पाछू तुरते लहूट आना तक ही चलय. ए दरी जब रतनपुर गेन त पूरा दिन भर चारों मुड़ा के दर्शनीय स्थल मनला घूमेन. जेमा महामाया मंदिर परिसर के चारों मुड़ा किंजरेन. ऊँचहा टेकरी म बिराजे हनुमान जी अउ प्रसिद्ध भैरवबाबा के मंदिर के संगे-संग अउ जम्मो प्रमुख ठउर. 

संझौती होवत फेर उहाँ ले सीधा अपन ममागाॅंव देवरी लहूट आएन. वइसे ए हफ्ता भर के यात्रा म जतका प्रमुख जगा के उल्लेख करे गे हे उनमा तो जाबेच करेन संग म तीर्थराज प्रयागराज ले लेके पूरा घर के वापसी तक बीच-बीच म अउ कोनो दर्शनीय स्थल भेंट परन उहू मन म हमा जावत रेहेन। 

[metaslider id="122584"]
[metaslider id="347522"]