Vedant Samachar

वैज्ञानिकों ने बनाया चावल के दाने से छोटा पेसमेकर, इंजेक्शन से शरीर में हो सकेगा इंजेक्ट

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नई दिल्ली ,14अप्रैल 2025। वैज्ञानिकों ने चिकित्सा जगत में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के इंजीनियरों ने आकार में चावल के दाने से भी छोटा पेसमेकर बनाया है। इसे इंजेक्शन के जरिये भी शरीर में इंजेक्ट किया जा सकता है।

खास बात यह है कि काम खत्म होते ही यह पेसमेकर अपने आप शरीर में घुलकर खत्म हो जाता है। यह न केवल दुनिया का सबसे छोटा पेसमेकर है, बल्कि इसके गुणधर्म और कार्यप्रणाली इसे पारंपरिक उपकरणों से कहीं अधिक उन्नत और सुरक्षित बनाते हैं। यह जानकारी अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित अध्ययन में सामने आई है। इससे पता चला है कि यह डिवाइस बड़े-छोटे जानवरों और मानव हृदय पर जो अंगदान करने वाले लोगों से लिए गए थे, सफलतापूर्वक काम करता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, इसकी विशेषताएं इसे हृदय रोगों के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव लाने में सक्षम बनाती हैं। आकार में सूक्ष्म होने के बावजूद यह अत्यंत प्रभावकारी है। यह पेसमेकर आकार में मात्र 1.8 मिमी चौड़ा, 3.5 मिमी लंबा और 1 मिमी मोटा है। इसका लघु आकार इसे विशेष रूप से नवजात शिशुओं के लिए उपयुक्त बनाता है, जिनके दिल में जन्मजात दोष होते हैं और जिन्हें सर्जरी के बाद कुछ दिनों के लिए हार्ट रिदम सपोर्ट की आवश्यकता होती है।

प्रकाश संचालित प्रणाली और वायरलेस नियंत्रण
इस पेसमेकर की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह त्वचा पर लगाए गए एक वायरलेस डिवाइस से इन्फ्रारेड लाइट के जरिये नियंत्रित होता है। जब डिवाइस दिल की धड़कन में गड़बड़ी का पता लगाता है तो यह एक प्रकाशीय संकेत भेजता है, जिससे पेसमेकर सक्रिय हो जाता है और हृदय गति को सामान्य करता है। यह नई तकनीक पारंपरिक तार-आधारित पेसमेकरों से कहीं अधिक सुरक्षित और सटीक है।

स्व-शक्ति निर्माण की क्षमता
इस पेसमेकर में दो विशिष्ट धातुओं का उपयोग किया गया है जो शरीर के तरल के संपर्क में बैटरी की तरह विद्युत धारा उत्पन्न करते हैं। यह विशेषता इसे बिना किसी बाहरी बैटरी के कार्य करने योग्य बनाती है, जिससे इसका आकार और अधिक संक्षिप्त हो गया है।

मल्टीपॉइंट पेसिंग और व्यक्तिगत नियंत्रण
इतने छोटे आकार के कारण डॉक्टर इसे हृदय के विभिन्न हिस्सों में स्थापित कर सकते हैं। प्रत्येक पेसमेकर को अलग-अलग रंग की प्रकाश किरणों द्वारा संचालित किया जा सकता है, जिससे दिल की अनियमित धड़कनों को ज्यादा प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। इससे इलाज की सूक्ष्मता और सफलता दर दोनों में वृद्धि होती है।

भविष्य की व्यापक संभावनाएं
हालांकि इस तकनीक को फिलहाल नवजात शिशुओं में अस्थायी उपयोग के लिए डिजाइन किया गया है, लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी उपयोगिता वयस्कों के इलाज में भी उतनी ही प्रभावी हो सकती है। इसके अलावा यह तकनीक सिर्फ हृदय तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि आने वाले समय में इसे बायो इलेक्ट्रॉनिक थेरेपीज जैसे नर्व कनेक्शन, फ्रैक्चर रिकवरी, दर्द प्रबंधन, और सर्जिकल घाव भरने जैसे क्षेत्रों में भी उपयोग किया जा सकता है।

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