हमारे सुआ नृत्य की तरह ही उत्तरप्रदेश में होता है झींझी नृत्य

सिर पर कलश लेकर महिलाएं करती हैं नृत्य, धान का चढ़ावा लेती हैं और झींझी देवी को करती हैं अर्पित

थारू जनजाति की महिलाएं करती हैं, सुंदर वेशभूषा और खास जनजातीय उपकरणों के साथ आकर्षक नृत्य से जनसमूह झूमा

रायपुर, 03 नवम्बर | दीपावली के शुभ अवसर पर छत्तीसगढ़ में महिलाएं घर-घर जाकर सुआ नृत्य करती हैं उसी प्रकार उत्तर प्रदेश में थारू जनजाति भी झींझी देवी की आराधना में ऐसा नृत्य क्वांर और भादो के महीने में करती हैं। नई फसल आने के तुरंत बाद महिलाएं झींझी नृत्य करने घर घर जाती हैं। उनके सिर में कलश होता है और हाथों में दान लेने के लिए टोकरी। फिर सुआ गीत की तरह ही सुंदर गीत प्रस्तुत करती हैं और सुंदर झींझी नृत्य भी। बिल्कुल चटख रंगों के साथ और स्थानीय थारू आभूषणों के साथ उनकी साजसज्जा दर्शकों को चकित कर देती है। इसके बाद परंपरा अनुरूप झींझी का विसर्जन नदी में किया जाता है।

इस सुंदर नृत्य को देखकर बहुत से लोगों ने इसकी तुलना छत्तीसगढ़ के सुआ नृत्य से की और दोनों में जो अंतर हैं उनके बारे में चर्चा करने लगे। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से देश भर में चर्चित नृत्य के रूपों को दिखाने का शानदार मंच रायपुर में लोक कलाकारों को मिला है। इनमें से बहुत से नृत्य हमारी समृद्ध कृषक संस्कृति को दिखाते हैं। हमारी कृषक संस्कृति में श्रम के साथ दानशीलता की भी सुंदर परंपरा है। यह सुंदर परंपरा सुआ नृत्य में भी देखने को मिलती है और झींझी नृत्य में भी।

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