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कोल इंडिया लिमिटेड के लिए बढ़ती चुनौती: कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों का बढ़ता उत्पादन

Lalima Shukla
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कोरबा। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। लगातार दो वर्षों से लक्ष्य चूकने वाली सीआईएल को कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों से बढ़ते उत्पादन से बड़ी चुनौती मिल रही है। आने वाले समय में उत्पादन करने वाले कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों की संख्या बढ़ेगी, जिससे उत्पादन में वृद्धि होगी और सीआईएल के लिए चुनौती और भी बढ़ जाएगी।

कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों का बढ़ता उत्पादन
जानकारों के अनुसार, अगस्त 2024 तक 55 कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों से उत्पादन हो रहा है, जिनमें से 10 खदानों को कोयला बेचने का अधिकार प्राप्त है। इन खदानों में उत्पादन लागत सीआईएल से कम है, जिससे वे कोयला भी सीआईएल से कम दर पर बेच सकते हैं।

सीआईएल की उत्पादन स्थिति
सीआईएल में भारी संख्या में श्रम शक्ति है, लेकिन लगभग 80 प्रतिशत कोयले का उत्पादन आउटसोर्स और एमडीओ मोड से हो रहा है। वर्ष 2024-25 में सीआईएल ने निर्धारित लक्ष्य 838 एमटी के विरुद्ध 781.075 एमटी उत्पादन किया, जिसमें विभागीय उत्पादन का हिस्सा मात्र 268.859 एमटी है, जबकि आउटसोर्स और एमडीओ मोड की हिस्सेदारी 512.216 एमटी है।

भविष्य की चुनौतियां
कोयला खनन विशेषज्ञों के मुताबिक, सीआईएल द्वारा चुनौती से निपटने के लिए भविष्य में एमडीओ और आउटसोर्स की गति बढ़ाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। सीआईएल को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने और लागत को कम करने के लिए नए तरीकों को अपनाना होगा।

कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों का उत्पादन बढ़ने के कारण

  • कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों में उत्पादन लागत कम होने से वे कोयला कम दर पर बेच सकते हैं।
  • इन खदानों में उत्पादन बढ़ने से सीआईएल के लिए चुनौती बढ़ जाती है।
  • सीआईएल को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने और लागत को कम करने के लिए नए तरीकों को अपनाना होगा।

निष्कर्ष
कोल इंडिया लिमिटेड के लिए कैप्टिव और वाणिज्यिक खदानों से बढ़ते उत्पादन से बड़ी चुनौती है। सीआईएल को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने और लागत को कम करने के लिए नए तरीकों को अपनाना होगा। इसके अलावा, सीआईएल को अपनी श्रम शक्ति का बेहतर उपयोग करने और आउटसोर्स और एमडीओ मोड की गति बढ़ाने की आवश्यकता है।

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