नईदिल्ली I जब आप ‘आर-पार’ फिल्म का ‘बाबूजी जरा धीरे चलना’ गाना सुनते होंगे, तब शायद आपके जेहन में गुरु दत्त और श्यामा का नाम आता होगा. इसी तरह फिल्म ‘कागज के फूल’ के ‘वक्त ने किया क्या हसीन सितम’ गाने की बात करें तो आपकी नजरों के सामने गुरु दत्त और वहीदा रहमान का चेहरा आने लगता होगा. पहले मेरे साथ भी यही होता था. मुझे पुराने गाना सुनना पसंद था, लेकिन एक्टर और एक्टर के अलावा कभी उस गाने के लिए तीसरी शख्सियत के बारे में सोचा ही नहीं. जब गानों और फिल्मों में और रुचि हुई तो फिल्मी हस्तियों के बारे में जाना. फिर वो चाहे एक्टर हों, एक्ट्रेस हों, गीतकार हों या संगीतकार. अगर फिल्म की यूएसपी उसका संगीत होता है, तो उस संगीत को गानों का रूप देने वाले गीतकार और उन गानों को गाने वाले गायक इसकी जान होते हैं. जब फिल्मी सितारों को जाना तो तभी से गीता दत्त को सुनना शुरू किया.
जिन गानों का हमने इस आर्टिकल के शुरुआत में जिक्र किया, वो दोनों गीत गीता दत्त ने ही गाए हैं. इस तरह के उन्होंने अपने फिल्मी करियर में 500 से भी ज्यादा गानों को अपनी मधुर आवाज से सजाया. गीता दत्त अपने दौर की ऐसी गायिका थीं, जिनसे कई अन्य गायिका खौफ खाती थीं. उनमें से एक दिग्गज गायिका लता मंगेशकर भी रहीं. कहा जाता है कि गीता दत्त की गायिकी से लता मंगेशकर खौफ खाती थीं. हालांकि, इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो खुदा ही जाने, लेकिन लता मंगेशकर ने ये जरूर माना था कि गीता दत्त वाकई बहुत ही बेहतरीन गायिका थीं. कुछ लोग दिल के बहुत करीब होते हैं. उसी तरह गीता दत्त भी लता मंगेशकर के बेहद करीब थीं.
गीता दत्त के निधन की खबर से टूट गई थीं लता मंगेशकर
लता मंगेशकर को उस समय बहुत बड़ा धक्का लगा था, जब उन्हें गीता दत्त के निधन की खबर मिली. किताब लता सुरलता में गीता दत्त के निधन पर लता मंगेशकर की क्या प्रतिक्रिया थी, इसका जिक्र किया गया है. लता मंगेशकर ने कहा था- “गीता दत्त का क्या हुआ कि मुझे मालूम ही नहीं चल सका कि उसकी मृत्यु हुई है. ताज्जुब की बात तो यह थी कि मुझे सलिल चौधरी जी का फोन आया और उन्होंने कहा- ‘लता, तुम तुरंत चली आओ. गीता के साथ ऐसे-ऐसे हुआ है.’ मुझे एकाएक धक्का लगा और मैं जब गई तो वे ही मुझे ले गए थे गीता के अंतिम दर्शन कराने. गीता से मेरी बहुत पटती थी और वह बहुत नेकदिल लड़की थी. इसलिए उसका अचानक यूं चले जाना कहीं भीतर निराश कर गया.”
लता मंगेशकर और गीता दत्त की दोस्ती
यह 1946-47 की बात है. गीता दत्त और लता मंगेशकर पहली बार फिल्म शहनाई के एक गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान मिले थे. जवानी की रेल चली जाय रे… इस गाने को दोनों दिग्गज गायिकाओं ने अपनी मधुर आवाज दी. गीता दत्त से जुड़ी लता मंगेशकर ने एक दिलचस्प बात साझा की थी. वह बताती हैं कि आम बंगाली भाषा व्यक्ति के बात करने के तरीके में वो बंगाली टच नजर आता है, जब वो हिंदी बोलता है.
लता मंगेशकर ने बताया था कि गीता दत्त ने अनोखा ही गुण था. जब गीता दत्त माइक्रोफोन के सामने होती थीं, तब वह एकाएक अपना लहजा बदल लेती थीं. गीता दत्त के उच्चारण पर बात करते हुए लता मंगेशकर ने कहा था कि गीता जब माइक के सामने आती थीं, न जाने कहां से उसका हिंदी उच्चारण एकमद सही हो जाता था. गाना गाते समय उनका गायन एकदम शुद्ध और वर्तनी सटीक रहती थी. जब गीता गाने की रिकॉर्डिंग खत्म करती थीं, तब वे फिर से बंगालीनुमा हिंदी बोलने लगती थीं.
क्या गीता दत्त थीं लता मंगेशकर के गुरु दत्त संग ज्यादा काम न करने की वजह?
चूंकि सभी जानते हैं कि गीता दत्त, गुरु दत्त की पत्नी थीं. तो ऐसा कहा जाता था कि लता मंगेशकर के गुरु दत्त के साथ ज्यादा काम न करने की वजह गीता दत्त थीं. इन बातों मे कितनी सच्चाई थी, इसका खुलासा खुद लता मंगेशकर ने किताब लता सुरलता में किया. गुरु दत्त की फिल्मों में लता मंगेशकर ने केवल पांच गाने गाए. इस पर बात करते हुए लता मंगेशकर कहती हैं कि नहीं कोई खास वजह नहीं है. लता मानती थीं कि भले उन्होंने गुरु दत्त की फिल्मों में कम गीत गाए लेकिन इसके पीछे कोई खास वजह नहीं थी.
लता मंगेशकर ने कहा था- “उनके घर में ही एक बेहतरीन गायिका गीता दत्त मौजूद थीं. तो उस समय उनकी फिल्मों के प्रमुख किरदारों के लिए गीता ही गाती थीं, इसलिए मेरे गाने की वहां कोई जरूरत नहीं थी. अगर सहायक अभिनेत्रियों की आवाज की जरूरत होती थी, तो उसमें अकसर शमशाद बाई या आशा जी गाती थीं. यही एक कारण मुझे समझ आता है. और आप यह भी देखिए कि गीता ने गुरुदत्त की सारी फिल्म में कितना कमाल का गया है.”
मुफ्लिसी में गुजरे गीता दत्त के आखिरी दिन
गीता दत्त जो भी गाती थीं, वो लोगों के दिलों को छू जाता था. उनके गीत आत्मा को शांति पहुंचाते हैं. एक बार जब आप उनके मधुर गीतों को सुनना शुरू कर देते हैं, तो उन्हें बीच में छोड़ने का मन नहीं करता. 1940 और 50 के दशक में उनकी आवाज ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया लेकिन एक गायिका के रूप में उनकी सफलता के उनकी एक दुखद और असामयिक मृत्यु हुई. गीता ने सबसे ज्यादा किसी के साथ काम किया तो वो उनके पति गुरु दत्त ही थे. पर 10 अक्टूबर, 1964 को उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद गीता और उनके तीन बच्चे अकेले पड़ गए.
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