मुंबई: हिंदुस्थान में बेरोजगारी का संकट दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण करता जा रहा है. युवा वर्ग चाहे वो शहरी हो या ग्रामीण, उच्च शिक्षित हो या कम पढ़ा-लिखा उन्हें काम नहीं मिल रहा है. ऐसी भयंकर स्थिति देशभर में नजर आ रही है. ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी’ (सीएमआईई) संस्था की ताजी रिपोर्ट में बेरोजगारी के संबंध में जो स्थिति सामने आई है, वह बेहद ही चिंता बढ़ानेवाली है. मार्च महीने में 7.60 प्रतिशत बेरोजगारी की दर अप्रैल महीने में बढ़कर 7.83 प्रतिशत हो गई. विशेषकर शहरों में बेरोजगारी दिनों-दिन बढ़ रही है. शहरों में बेरोजगारी की दर मार्च महीने में 8.28 प्रतिशत थी. वो एक ही महीने में बढ़कर 9.22 प्रतिशत हो गई.
करोड़ों युवाओं ने नौकरी की तलाश करनी ही छोड़ दी
सामना में आगे लिखा है, ‘देश में आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ने से अप्रैल महीने में 38 लाख कामगारों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, ऐसा सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है. देश में केवल कामकाजी लोगों की नौकरियां जा रही हैं, ऐसा नहीं है तो बार-बार आवेदन करने के बाद भी नौकरी के साक्षात्कार के लिए कहीं से बुलावा नहीं आ रहा है. बाजार में नौकरियां उपलब्ध नहीं हैं. ये बातें युवा वर्ग के मन में घर कर गई हैं. लिहाजा, नौकरी के लिए पात्र होने के बावजूद भी करोड़ों युवाओं ने नौकरी की तलाश करना ही छोड़ दिया है.’ ऐसे चौंकानेवाला अवलोकन सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया है. देश के युवा वर्ग में रोजगार के संबंध में इस तरह का संदेश जा रहा है तो यह असफलता किसकी है?
रोजगार नहीं मिलेगा, तो देश कैसे आगे बढ़ेगा
केवल ‘पढ़ेगा इंडिया, तो बढ़ेगा इंडिया’ लोक लुभावन नारे लगाना आसान है लेकिन पढ़े-लिखे सुशिक्षित युवक-युवतियों को रोजगार नहीं मिलेगा तो देश कैसे आगे बढ़ेगा? युवाओं के सबसे अधिक आबादी वाले देश के तौर पर शासक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने देश की प्रशंसा करते रहते हैं. लेकिन देश की बेरोजगारी की मौजूदा स्थिति को देखते हुए ‘बेरोजगारी की सबसे अधिक संख्यावाले देश’ के तौर पर आज विश्व के सामने तस्वीर जा रही है.
हरियाणा में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा
सीएमआईई द्वारा घोषित की गई राज्यवार आंकड़ेवारी के अनुसार देश में बेरोजगारी की सबसे अधिक दर हरियाणा में (34.5 प्रतिशत) है. उसके बाद राजस्थान में बेरोजगारी की दर 28.8 प्रतिशत है. बड़े राज्यों की तुलना में रोजगार सृजन के मामले में महाराष्ट्र का प्रदर्शन अपेक्षाकृत अच्छा दिखाई देता है. महाराष्ट्र की बेरोजगारी दर 3.1 प्रतिशत है और बेरोजगारी की संख्या में महाराष्ट्र सातवें पायदान पर है. यानी बेकारी या बेरोजगारी एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय संकट है.
सवाल पूछने वालों को देशद्रोही ठहराकर जेल में ठूंस देते हैं
सत्ता में आने से पहले देश में हर साल दो करोड़ नए रोजगार निर्माण करेंगे, ऐसी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी. इस घोषणा का क्या हुआ? यह किसी ने सवाल पूछा तो उसे देशद्रोही ठहराकर जेल की हवा खिलाई जाती है. बेरोजगारी का संकट दूर करने की कोई ठोस उपायोजना नहीं बनाई जा रही है. इसके विपरीत देश प्रगति की राह में घुड़दौड़ वगैरह कर रहा है, इस तरह डींगे सत्ता पक्ष की ओर से मारी जा रही हैं. लेकिन वास्तविकता कुछ और ही कह रही है. मूलरूप से विकास एक शाश्वत और निरंतर प्रक्रिया है इसलिए बदलते समय के साथ विकास तो होना ही चाहिए. परंतु उसके साथ समस्याओं का विकास न हो इस पर भी सरकार का ध्यान होना चाहिए.
राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा करने की जरूरत
भाषणबाजी में सबसे आगे रहनेवाले मौजूदा शासक ‘सतत विकास’ इत्यादि शब्दों का उपयोग बड़े पैमाने पर करते हैं. तथापि बेरोजगारी के ताजे आंकड़ों पर गौर करें तो इन शब्दों का खोखलापन तुरंत समझ में आता है. सतत विकास के शासक की संकल्पना से रोजगार, नौकरी और हाथों को काम मिलने की गारंटी नहीं मिलेगी तो ‘सतत विकास’ के शब्द का बुलबुला किस काम का? सीएमआईई की हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश में बेरोजगारी का संकट भीषण कहा जाए, इस तरह तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन बेरोजगारी के मुद्दे से जनता का ध्यान भटकाने के लिए देश में धार्मिक और जातीय तनाव निर्माण करनेवाला उन्मादी वातावरण निर्माण किया जा रहा है. देश के सभी जाति-धर्म के युवाओं को बेकारी की कुल्हाड़ी चलानेवाली सरकार की इस मंशा को पहचानकर रोजगार के अधिकार के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा करना चाहिए.
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