उत्तरी अमेरिकी देश मैक्सिको हिंसा (Mexico Violence) और मानवाधिकारों के हनन के मामले में दुनियाभर में पहले से ही जाना जाता है, लेकिन अब इन्हीं अपराधों के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों को भी बख्शा नहीं जा रहा. यहां पत्रकारों पर लगातार हमले (Attacks on Journalists) हो रहे हैं. बीते महीने चार पत्रकारों की हत्या की गई है. 31 जनवरी को हथियार सहित आए तीन लोगों ने कथित तौर पर वीडियो एडिटर रॉबर्ट टोलेडो की हत्या कर दी. वह मैक्सिको सिटी (Mexico City) में एक इंटरव्यू की तैयारी कर रहे थे. इससे कुछ दिन पहले रिपोर्टर लॉर्डेज मलडोनाडो लोपेज की गोली मारकर हत्या की गई.
ठीक इसी शहर में क्राइम सीन कवर करने वाले फ्रीलांस पत्रकार मार्गारिटो मार्तिनेज की 17 जनवरी को गोली मारकर हत्या की गई (Mexico Crime Data). बीते महीने की शुरुआत में एक न्यूज साइट के डायरेक्टर जोस लुइस गंबोआ एरेनस की चाकू से गोदकर हत्या की गई. ये मामला वेराक्रूज शहर का था. जहां हमेशा ही हिंसा रहती है. ऐसे ही दो पत्रकारों पर भी हमले हुए थे. इनमें से एक को गोली मारने की कोशिश हुई, तभी वह बच निकलने में कामयाब रहा. जबकि दूसरे पर चाकू से हमले किए गए, जो कि घायल हो गया.
काफी हिंसक रहा बीता महीना
मैक्सिको में पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़ी जानकारी रखने वाली समिती जान-अल्बर्ट हूटसेन ने कहा, ‘हमने बीते कई दशकों में इस महीने पत्रकारों पर होने वाले हमलों के कारण सबसे हिंसक समय को देखा है.’ अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करने वाले समूह आर्टिकल-19 की पॉला मारिया सॉसेडो रुइज ने कहा, ‘हर साल, स्थिति बदतर हो रही है.’ मीडिया समूहों ने कहा है कि हिंसा कम होने का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है. 1980 के दशक में भी इस देश में पत्रकारों के खिलाफ खूब हिंसा देखने को मिली थी.
2006 से हिंसा ज्यादा बढ़ी
हूटसेन ने कहा, ताजा ट्रेंड की शुरुआत हम 2006 से होती देख सकते हैं. तब सरकार ने संगठित अपराध के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी और सेना की तैनाती कर दी थी. इसके बाद देश में और भी बड़े स्तर पर हिंसा होने लगी. यहां तक कि पत्रकारों के खिलाफ भी हमले बढ़े, जो इस युद्ध की जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे थे. संगठित अपराध करने वाले समूह एक दूसरे के खिलाफ जंग करने लगे. देश की न्याय व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई. स्थानीय और राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार फैल गया. हैरानी इस बात की भी रही कि अपराध करने वालों को अपने किए की सजा नहीं मिल पा रही है. पत्रकारों के खिलाफ होने वाले लगभग 99 फीसदी अपराधों में मुकदमा ही नहीं चलाया गया.
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