कलयुग में कबीर (Kabir) की अमृतवाणी (Amrit Vani) जीवन की सही दिशा दिखाने का काम करती है. यदि आपको जीवन की आपाधापी में एक सच्चे गुरु (Guru) की तलाश है और आपको वह अभी तक तमाम कोशिशों के बाद नहीं मिल पाया है तो आपके लिए कबीर की अमृत वाणी वरदान साबित हो सकती है, जिसमें उन्होंने गुरु को ईश्वर (God) से श्रेष्ठ बताते हुए सच्चे गुरु की असल परिभाषा बताई है. आइए अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाने वाली संत कबीर साहेब (Kabir Saheb) के दोहों से जानते हैं कि आखिर हमारे जीवन में कैसा गुरु होना चाहिए?
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपणै, गोविन्द दियो बताय।।
कबीर की अमृत वाणी का यह सबसे लोकप्रिय दोहा है, जिसमें उन्होंन गुरु की महत्ता बताते हुए कहा है कि गुरु के समान जीवन में कोई भी हितैषी नहीं होता है. गुरु ही ईश्वर का ज्ञान देने वाले हैं. ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को गुरु कृपा मिल जाये तो वह पल भर इंसान से देवता बन जाता है.
सद्गुरु ऐसा कीजिए, लोभ मोह भ्रम नाहि। दरिया सो न्यारा रहे, दीसे दरिया माहि।।
संत कबीरदास जी कहते हैं कि जीवन में सद्गुरु ऐसा होना चाहिए, जिसके हृदय में किसी भी प्रकार लोभ, मोह-माया और भ्रम न हो. ऐसा सद्गुरु इस संसार रूपी सागर में दिखाई तो अवश्य पड़ता है, परन्तु वह संसार को कुवासनाओं और महत्वाकांक्षाओं से अलग रहता है.
कबीर हरि के रूठते, गुरु के शरण जाय। कहे कबीर गुरु रूठते, हरि नहीं होत सहाय।।
कबीरदास जी गुरु की महिमा का गान करते सभी लोगों को सचेत करते हें कि यदि जीवन में हरि यानि भगवान रूठ जाएं तो निश्चिंत होकर अपने गुरु की शरण में चले जाओ क्योंकि गुरु आपकी मदद करते हुए सब कुछ संभाल लेंगे, लेकिन ध्यान रहे कि यदि गुरु नाराज हो गए तो फिर ईश्वर भी आपकी मदद नहीं करेंगे. कहने का मतलब यह है कि गुरु के नाराज होने पर कोई मददगार नहीं मिलता है.
आगे अंधा कूप में, दूजा लिया बुलाय। दोनों डूबे बापुरे, निकसे कौन उपाय।।
कबीरदास जी कहते हैं कि यदि अज्ञानता में डूबा हुआ गुरु ही भ्रम कूप में पड़ा हो और उसने शिष्य को भी अपने पास बुला लिया हो तो ऐसे में दोनों गुरु शिष्य भ्रम कूप में डूब जाते हैं. फिर उन्हें निकालने कोई उपाय नहीं है और ऐसे गुरु और शिष्य का कभी भी कल्याण नहीं हो सकता. वे दोनों ही हमेशा भौतिक जंजाल में फंसे रहेंगे.
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